श्रीराम के 'सलमान' नहीं रहे मुसलमान? भगवान राम की आरती करने पर इस्लाम से खारिज
यूपीए सरकार में कानून और विदेश मंत्री का जिम्मा संभाल चुके सलमान खुर्शीद के श्रीराम की आरती करने पर बवाल मच गया है। विवाद इस कदर बढ़ गया है कि कुछ मौलाना सलमान खुर्शीद को इस्लाम धर्म से बाहर करने...
नई दिल्ली: यूपीए सरकार में कानून और विदेश मंत्री का जिम्मा संभाल चुके सलमान खुर्शीद के श्रीराम की आरती करने पर बवाल मच गया है। विवाद इस कदर बढ़ गया है कि कुछ मौलाना सलमान खुर्शीद को इस्लाम धर्म से बाहर करने की बात करने लगे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सलमान खुर्शीद ने श्रीराम और सीता की आरती की जबकि इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता।
क्या है पूरा मामला?
सलमान खुर्शीद यूपी के संभल में हुए कल्कि महोत्सव में शामिल हुए थे, जहां पर यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव, स्वामी चक्रपाणी और प्रमोद कृष्णम भी मौजूद थे। मंच पर मौजूद मेहमानों के साथ ही वहां मौजूद लोगों ने श्रीराम की आरती में हिस्सा लिया था लेकिन जैसे ही ये तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल हुई तो बवाल मच गया। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही श्रीराम की आरती की इसी तस्वीर ने एक ऐसे विवाद को जन्म दे दिया है जिसके लपेटे में पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद आ गए है।
पूर्व विदेश और कानून मंत्र सलमान खुर्शीद ने संभल में कल्कि महोत्सव के उद्घाटन समारोह में भगवान राम की आरती की थी। सलमान खुर्शीद की श्रीराम की आरती की ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होने लगी। ये फोटोज और वीजियोज धर्म के ठेकेदारों तक भी पहुंची तो उनके कान खड़े हो गए और खुर्शीद की श्रद्धा पर मौलानाओं ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। जिस तेजी से सोशल मीडिया पर आरती के वीडियो और फोटोज वायरल हुए उतनी ही तेजी से मौलानाओं ने भी सलमान खुर्शीद को तौबा करने की हिदायत दे दी।
सोशल मीडिया पर आरती के फोटोज वायरल होने के बाद मौलानाओं ने सलमान खुर्शीद को इस्लाम से खारिज कर दिया यानी कि मनमोहन सिंह की सरकार में कानून मंत्री रहे सलमान खुर्शीद को मौलानाओं ने इस्लाम से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया और श्रीराम की आरती पर इस्लाम से बेदखल करने का फरमान सुना दिया है। मौलानाओं ने साफ तौर पर कहा कि इस्लाम में किसी और की इबादत नहीं की जा सकती। यदि कोई ऐसा करता है तो उसे इस्लाम से बाहर कर दिया जाएगा।
धर्म के ठेकेदारों ने कहा है कि अगर सलमान खुर्शीद ने ऐसा किया है तो उन्हें तौबा कर अपने गुनाह की माफी मांगनी होगी और फिर से इस्लाम में शरीक होने के लिए कलमा पढ़ना होगा। हालांकि कई मुस्लिम धर्मगुरू अब भी ये मानते हैं कि इस्लाम एक ऐसा मजहब है जहां कट्टरपंथ का कोई स्थान नहीं है.. इस्लाम में दूसरी की भावनाओं का सम्मान किया जाता है।