सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर रोक: SC ने कहा- रीति-रिवाज और धार्मिक परंपराएं संविधान अनुरूप हों
पीठ ने टिप्पणी की कि 1950 में संविधान लागू होने के बाद सभी कुछ संविधान के दायरे में है।
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि प्रसिद्ध सबरीमला मंदिर में 10-50 साल के आयुवर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित करने जैसे रीति रिवाज अथवा धार्मिक प्रथाओं को संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप होना होगा। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का हवाला देते हुये कहा कि किसी भी व्यक्ति को सिर्फ ‘‘ सार्वजनिक स्वास्थ , सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता ’’ के आधार पर रोका जा सकता है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन , न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर , न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ भी शामिल हैं। पीठ ने टिप्पणी की कि 1950 में संविधान लागू होने के बाद सभी कुछ संविधान के दायरे में है। न्यायालय ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब 800 साल पुराने भगवान अय्यप्पा मंदिर का संचालन करने वाले त्रावंकोर देवास्वम बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि न्यायालय को यह परखना होगा कि क्या यह प्रथा सही विश्वास पर आधारित है जो एक समुदाय में सदियों से चली आ रही है।
उन्होंने कहा कि देश की मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है और आस्था पर आधारित इन परंपराओं के परखने से मुद्दों का पिटारा खुल जायेगा। पीठ ने सिंघवी से कहा कि देवस्वाम बोर्ड को यह स्थापित करना होगा कि एक निश्चित आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेशन वर्जित करना धार्मिक परपंरा का आवश्यक और अनिवार्य हिस्सा है। पीठ ने केरल उच्च न्यायालय में बोर्ड के कथन में अंतर्विरोध की ओर ध्यान आकर्षित किया और कहा कि यह स्वीकार्य स्थिति थी कि तीर्थयात्रा शुरू होने पर पहले पांच दिन सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्गो की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति होती थी और इसके बाद भीड़ बढ़ने की वजह से उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया था। इससे पहले , 19 जुलाई को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने केरल के इस प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर में 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित करने के औचित्य पर सवाल उठाया था। पीठ का कहना था कि महिलाओं में दस वर्ष की आयु से पहले भी मासिक धर्म शुरू हो सकता है। इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका में वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचन्द्रन का कहना था कि एक विशेष आयु वर्ग की महिलाओं को अलग करना उन्हें अछूत मानने जैसा है जो संविधान के अनुच्छेद 17 में निषिद्ध है।
पीठ इस तर्क से सहमत नहीं थी और उसका कहना था कि संविधान का अनुच्छेद 17 इस मामले में शायद लागू नहीं हो सके क्योंकि मंदिर में प्रवेश से वंचित की जा रही महिलाओं में सवर्ण वर्ग की भी हो सकती हैं और यह प्रावधान सिर्फ अनुसूचित जातियों से संबंधित है। केरल सरकार ने पहले न्यायालय से कहा था कि वह इस मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में है। सबरीमला मंदिर में दस से पचास आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने की व्यवस्था को ‘ इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन’ और अन्य ने चुनौती दे रखी है।