जानिए कौन हैं के पाराशरण, जिन्होंने 92 साल की उम्र में लड़ा रामजन्मभूमि के लिए केस
के पाराशरण का जन्म साल 1927 में तमिलनाडु के श्रीरंगम में हुआ। वकालत विरासत में मिली थी, उनके पिता वकील थे, साल 1958 में उन्होंने प्रैक्टिस शुरू की।
नई दिल्ली। अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आज 9 नवंबर 2019 की तारीख को ऐतिहासिक बनाते हुए सर्वसम्मति से दिए गए फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और नई मस्जिद के निर्माण के लिये सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर चली सुनवाई में सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन और रामलला विराजमान की तरफ से के पाराशरण ने पैरवी की। पाराशरण की उम्र 92 वर्ष है, उन्हें भारतीय बार का ‘पितामाह’ भी कहा जाता है। आइए आपको के पाराशरण के बारे में बताते हैं कुछ महत्वपूर्ण बातें।
साल 1927 में तमिलनाडु में हुआ जन्म
के पाराशरण का जन्म साल 1927 में तमिलनाडु के श्रीरंगम में हुआ। वकालत विरासत में मिली थी, उनके पिता वकील थे, साल 1958 में उन्होंने प्रैक्टिस शुरू की। पाराशरण साल 1976 में तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल रहे। साल 2003 में वाजपेयी सरकार के दौरान उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से नवाजा गया। साल 2011 में मनमोहन सरकार ने पाराशरण को पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
भारत के सॉलिसिटर जनरल रहे हैं पाराशरण
के पाराशरण भारत के सॉलिसिटर जनरल रह चुक हैं। इसके बाद वो अटॉर्नी जनरल भी बने। सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान जब के पाराशरण दलील पेश कर रहे थे. तह CJI रंजन गोगोई ने उनकी उम्र को ध्यान में रखकर जब उनसे पूछा कि क्या आप बैठकर बहस करना चाहेंगे, तो पाराशरण ने जवाब दिया- इट्स ओके, बार की परंपरा खड़े होकर बहस करने की है और मुझे इस परंपरा का ध्यान रखना है।
पाराशरण की इन दलीलों ने बटोरी सुर्खियां!
रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान जब जस्टिस अशोक भूषण ने के पाराशरण से पूछा कि जन्म स्थान को एक व्यक्ति के रूप में कैसे जगह दी जा सकती है और मूर्तियों के अलावा बाकी चीजों के कानूनी अधिकार कैसे तय होंगे, तो उन्होंने ऋग्वेद का उदाहरण दिया- जहां सूर्य को भगवान माना जाता है, लेकिन उनकी कोई मूर्ति नहीं है। मगर देवता होने के नाते उन पर कानून लागू होते हैं।
एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने दलील दी कि अयोध्या में 55-60 मस्जिदें हैं। मुस्लिम समुदाय के लोग किसी दूसरी मस्जिद में नमाज पढ़ सकते हैं, लेकिन यह हिंदुओं के लिए भगवान राम का जन्मस्थान है और हम उनके जन्मस्थान में बदलाव नहीं कर सकते। अयोध्या मामले के अलावा के पराशरण सबरीमाला मामले में भगवान अयप्पा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।