Rajat Sharma's Blog: मोदी भारत और अमेरिका के बीच मजबूत रिश्ते क्यों चाहते हैं
दुनिया अब भारत की तरफ देख रही है, न कि चीन की तरफ। दुनिया की बड़ी कंपनियां चीन को छोड़ना चाहती हैं और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में इस गैप को भरने के लिए भारत तैयार है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल की तरफ से आयोजित इंडिया आइडियाज़ समिट को संबोधित किया, जहां उन्होंने अमेरिकी निवेशकों को भारत में रक्षा, बीमा, कृषि, वित्त, चिकित्सा, ऊर्जा और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में निवेश करने के लिए पुरजोर तरीके से आमंत्रित किया। उन्होंने कहा, " अब वक्त आ गया है कि हमारे दोनों मुल्क साझेदार बन कर दुनिया को महामारी के बाद तेजी से उबरने में अहम भूमिका निभाएं ।"
मोदी ने चीन का नाम तो नहीं लिया लेकिन उनका संकेत कमोबेश उन अमेरिकी कंपनियों के लिए था जो महामारी के बाद चीन छोड़ना चाहती हैं और अपनी सप्लाई चेन को दुनिया के दूसरे देशों में शिफ्ट करने के मौके तलाश रही हैं। मोदी ने कहा, “उन्हें (अमेरिकी निवेशकों को) मैं यही कहूंगा, भारत में पूंजी लगाने का इससे बेहतर मौका पहले कभी नहीं आया। ”
मोदी ने कहा, “भारत में आपको मिलेगा - खुलापन, अवसर और विकल्पों का एक सही मिश्रण। अगर मैं विस्तार से कहूं, तो भारत की जनता खुलेपन में जीती है और यहां के शासन में भी आपको खुलापन मिलेगा। सोच में अगर खुलापन है, तो बाज़ार में भी खुलापन रहेगा.. यह ऐसा सिद्धांत हैं जिस पर भारत और अमेरिका दोनों समान विचार रखते हैं।”
पहली बार, प्रधानमंत्री अमेरिकी कंपनियों को भारत के उस कृषि क्षेत्र में निवेश करने के लिए आमंत्रित कर रहे थे, जिसे पारंपरिक रूप से स्वतंत्रता के बाद से विदेशी निवेश से दूर रखा गया है। मोदी ने कहा कि कैसे आधे अरब से ज्यादा भारतीय अब इंटरनेट से जुड़े हैं, और पहली बार गांवों में इंटरनेट यूजर्स की संख्या शहरों में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों से ज्यादा हो चुकी है। मोदी ने कहा, भारत " 5जी, बिग डाटा एनालिसिस, क्वांटम कंप्यूटिंग, ब्लॉक-चेन और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी" के मौकों को तलाश रहा है।
मोदी ने बताया कि कैसे भारत ने रक्षा सामान बनाने वाली कंपनियों के लिए दो बड़े डिफेंस कॉरिडोर तैयार किए हैं और डिफेंस सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को 74 प्रतिशत कर दिया है।
यह शिखर सम्मेलन ऐसे मौके पर हुआ जब भारत और अमेरिका के बीच 2 साल से लंबित विवादों को खत्म कर एक नई प्रिफरेन्शियल ट्रेड डील पर काम कर रहे हैं। इस ट्रेड डील को भारतीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने अमेरिका के वाणिज्य सचिव विल्बर रॉस से एक फोन कॉल पर सुलझा लिया था। दोनों देश एक फ्री ट्रेड एग्रीमैंट पर भी काम कर रहे हैं, लेकिन यह अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के बाद ही हो सकता है।
गोयल चाहते हैं कि अमेरिका भारत से निर्यात होने वाले एल्यूमीनियम, स्टील और कृषि उत्पादों पर ड्यूटी कम करे। अमेरिका चाहता है कि भारत कृषि, मैन्युफैक्चरिंग और मेडिकल उपकरण के क्षेत्रों में अमेरिकी कंपनियों को आने की अनुमति दे। भारत, अमेरिकी और यूरोपियन कंपनियों के लिए चीन की टक्कर में एक बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब बनना चाहता है।
मोदी का संदेश साफ था, दुनिया अब भारत की तरफ देख रही है, न कि चीन की तरफ। दुनिया की बड़ी कंपनियां चीन को छोड़ना चाहती हैं और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में इस गैप को भरने के लिए भारत तैयार है।
तीन दिन पहले, अमेरिकी नौसेना के विमानवाहक पोत USS Nimitz ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास भारतीय नौसेना के साथ एक नौसैनिक अभ्यास किया था। वो दिन अब चले गए, जब 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय अमेरिका ने भारत के खिलाफ अपने वॉरशिप को बंगाल की खाड़ी में भेजा था। लेकिन इस बार जब चीन के साथ सरहद पर तनाव बढ़ा, गलवान वैली में चीन ने हद पार करने की कोशिश की, तो अमेरिका ने हालात को देखते हुए चीन को सबक सिखाने के लिए अपना युद्धपोत अंडमान सागर में भेजा।
हाल के वर्षों में, भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी बढ़ी है। भारत ने अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने के लिए अमेरिका से C-130J ट्रांस्पोर्ट एयरक्राफ्ट, अपाचे और चिनूक हेलीकॉप्टर्स और अन्य हथियारों की खरीद की है। बुधवार को अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने सम्मेलन में कहा कि वे, “20 सैनिकों की शहादत (गलवान घाटी में) से दुखी हैं.... यह जरूरी है कि चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी ने जो चुनौतियां पेश की है, उससे निपटने के लिए हमारे दोनों लोकतांत्रिक देशों को मिलकर काम करना चाहिए। भारत को चीनी कंपनियों पर निर्भरता त्याग कर वैश्विक सप्लाई चेन को प्रोत्साहित करना चाहिए।”
अंडमान सागर में अपना नौसैनिक विमानवाहक पोत भेजकर, अमेरिका ने चीन को यह संदेश दिया है कि, चीन के दुस्साहस को अब ज्यादा सहन नहीं किया जाएगा। भारत सरकार द्वारा चीन के 59 ऐप्स पर लगाये गए प्रतिबंध का भी अमेरिकी विदेश मंत्री ने स्वागत किया।
अमेरिकी एजेंडा साफ है - वह चीन को उसकी हांगकांग, दक्षिण चीन सागर और लद्दाख में आक्रामक नीतियों के लिए सबक सिखाना चाहता है। अमेरिका को उम्मीद है कि भारत इस मामले में एक बड़ी भूमिका निभाएगा। प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच पहले से ही प्रगाढ़ व्यक्तिगत संबंध हैं। मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान, ट्रम्प ने भारतीय पीएम के साथ एक लंबी अनौपचारिक चर्चा की थी। फरवरी में जब ट्रम्प भारत आए थे, तो अहमदाबाद में नमस्ते ट्रम्प की रैली में लाखों लोगों की भीड़ पहुंची थी। ट्रम्प को मोदी की कार्यशैली पसंद है, और वह कभी-भी यह बताना नहीं भूलते कि भारत में उनके स्वागत के लिए लाखों लोग इकट्ठा हुए थे।
दूसरी तरफ, चीन ने पहले भारत के साथ मित्रता की भाषा में बात की और फिर लद्दाख में LAC पर अतिक्रमण करके पीठ में छुरा घोंपा। चीनी सैनिकों के साथ निहत्थे लड़ते हुए हमारे 20 जांबाज सैनिक शहीद हुए। भारत इस वीरता को कभी नहीं भूलेगा। चीन के विश्वासघात को भी भारत कभी नहीं भूलेगा। मोदी इस बात को समझते हैं, और वह चाहते हैं कि भारत और अमेरिका मिलकर चीन की चुनौती का सामना करें। चीन ने भारत के साथ अपनी सीमा के पास लगभग दो लाख सैनिकों को तैनात कर रखा है। इसी संदर्भ में अमेरिकी विदेश मंत्री ने गलवान घाटी में चीनी सैनिकों द्वारा 20 भारतीय जवानों की हत्या की निंदा की।
अमेरिका का यह दृढ़ मत है कि चीन ने जानबूझकर खतरनाक कोरोना वायरस को दुनिया भर में फैलने दिया, जिससे लाखों लोग मारे गए। वहीं भारत, अपनी ओर से, दुनिया को एक प्रभावी कोरोना वैक्सीन देने का प्रयास कर रहा है। पहली बार, अमेरिकी राष्ट्रपति ने महामारी के दौरान भारत से दवाएं मांगी और मोदी ने तुरंत हवाई जहाज से दवाएं भेजी। संक्षेप में कहें तो महामारी के दौरान अमेरिका और भारत के बीच नजदीकियां बढ़ी हैं। भारत को उम्मीद है कि अमेरिकी पूंजी आने से भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी और अमेरिका के साथ उसके रिश्तों में बड़ा बदलाव आएगा। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 22 जुलाई 2020 का पूरा एपिसोड