Rajat Sharma’s Blog । कोरोना महामारी के बीच गंगा नदी में क्यों मिलीं तैरती लाशें
भारत में बुधवार को एक बार फिर कोरोना के 3.5 लाख से ज्यादा नए मामले सामने आए। इसके साथ ही भारत दुनिया में इस घातक महामारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित देश बना हुआ है।
भारत में बुधवार को एक बार फिर कोरोना के 3.5 लाख से ज्यादा नए मामले सामने आए। इसके साथ ही भारत दुनिया में इस घातक महामारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित देश बना हुआ है। दूसरे नंबर पर ब्राजील है जहां पिछले 24 घंटों में सिर्फ 25,200 नए मामले सामने आए हैं। लगातार दूसरे दिन इस बीमारी के चलते अपनी जान गंवाने वाले मरीजों की संख्या 4 हजार के पार रही। बुधवार को कोविड-19 से पीड़ित 4,136 मरीजों ने दम तोड़ दिया।
एक तरफ जहां मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में खतरा कुछ कम हुआ है, वहीं दूसरी तरफ बेंगलुरु में हालात बद से बदतर हो गए हैं। भारत के ग्रामीण इलाकों में भी महामारी का प्रसार हुआ है और इसे लेकर काफी चिंताएं हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के तमाम गांवों में कोरोना वायरस से संक्रमण के नए मामले देखने को मिल रहे हैं।
पिछले 24 घंटों के दौरान महाराष्ट्र में कोरोना वायरस से संक्रमण के 46,781 नए मामले सामने आए और 816 लोगों की मौत हुई। केरल में 43,529 नए कोरोना संक्रमित मिले और 95 मरीजों की जान गई। इसी तरह कर्नाटक में 39,998 नए मामले मिले और 517 मौतें हुईं, तमिलनाडु में 30,355 नए मरीज मिले और 293 की जान गई, आंध्र प्रदेश में 21,452 नए मामले सामने आए और 89 लोगों की मौत हुई, पश्चिम बंगाल में 20,377 नए मामले सामने आए और 135 की मौत हुई, उत्तर प्रदेश में 18,125 नए मरीज मिले जबकि 329 मरीजों की जान गई, रजास्थान में 16,384 नए केस मिले और 164 की मौत हुई, गुजरात में 11,017 नए मामले सामने आए और 102 की जान गई, मध्य प्रदेश में 8,970 नए केस मिले और 84 मरीजों की मौत हुई और उत्तराखंड में 7,749 नए संक्रमित मिले और 109 लोगों की जान गई।
महाराष्ट्र की सरकार ने पूरे राज्य में 31 मई तक लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा की है। देश में ऐसे 13 राज्य हैं जहां शहरी इलाकों के मुकाबले गांव-देहात से कोरोना के नए मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं। गांव के लोग उचित बुनियादी ढांचे के अभाव में अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में ग्रामीण इलाकों में होने वाली तमाम मौतें आंकड़ों में दर्ज ही नहीं हो पा रही हैं।
उत्तर प्रदेश के गांव-देहात में श्मशान घाटों पर दिन-रात लाशें जलाई जा रही हैं। जैसे कि यही काफी नहीं था, कोविड -19 के चलते अपनी जान गंवाने वाले कई मरीजों की लाशें गंगा नदी में फेंक दी गईं। सबसे पहले कई लाशों को गाजीपुर में गंगा नदी के किनारों पर देखा गया, और इनकी संख्या 22 से 52 तक बताई गई। उत्तर प्रदेश के बलिया में गंगा के किनारे 12 लाशें पाई गईं, जबकि पड़ोसी राज्य बिहार के बक्सर में स्थित चौसा घाट पर 71 लाशें गंगा में तैरती हुईं मिलीं।
गाजीपुर और बक्सर दोनों ही जिलों के डीएम ने इस बात से इनकार किया कि ये लाशें उनके स्थानीय लोगों की हैं। नदी के किनारों पर निगरानी के लिए ड्रोन कैमरे तैनात किए जा रहे हैं। बिहार के DGP ने कहा कि बक्सर में नदी में 71 लाशें तैरती हुईं मिली थीं, और मंगलवार की शाम जब बक्सर के ही महादेव घाट पर नदी में जाल लगाया गया तो 6 और लाशें बरामद हुईं। बिहार पुलिस चीफ ने दावा किया कि इसके बाद कोई शव नहीं मिला है। पुलिस नावों में सवार होकर गश्त लगा रही है और लोगों से अपील कर रही है कि वे शवों को नदी में न फेंकें।
उत्तर प्रदेश सरकार ने गाजीपुर के सभी 18 श्मशान घाटों पर पुलिस की तैनाती कर दी है। पुलिस और राजस्व विभाग की 20 से अधिक टीमें नदी के किनारों पर गश्त कर रही हैं। गाजीपुर में अब तक गंगा किनारे मिले 23 शवों का अंतिम संस्कार किया जा चुका है। गाजीपुर में श्मशान घाट के कर्मचारियों ने इंडिया टीवी के संवाददाता को बताया कि कुछ दिन पहले तक रोजाना 90 से ज्यादा लाशें दाह संस्कार के लिए आती थीं, इसलिए काफी दबाव था। ऐसे में कुछ लोगों ने इंतजार करने की बजाय अपने प्रियजनों के शवों को सीधे गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। उन्होंने बताया कि अब प्रेशर कम हो गया है और रोजाना 20 से 22 शवों का दाह संस्कार किया जा रहा है।
नदी में तैरती लाशों के इन वीडियो ने देश के अधिकांश लोगों की आत्मा को झकझोर कर रख दिया है। ये दिखाता है कि लोगों ने दाह संस्कार के दौरान मानवता की भावना को कैसे भुला दिया और शवों को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। यह सब एक दिन में नहीं हुआ। स्थानीय लोगों की मानें तो नदियों में शवों का विसर्जन कम से कम 10 से 15 दिनों तक चलता रहा। गंगा के किनारे रहने वाले लोगों को अब जाकर अपने बंधु-बांधवों द्वारा किए गए पापों का अहसास हुआ है। स्थानीय अधिकारी लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने करने की कोशिश कर रहे हैं और उनसे शवों का उचित अंतिम संस्कार करने का अनुरोध कर रहे हैं। जिला प्रशासन को चौकन्ना रहना होगा क्योंकि खतरा अभी टला नहीं है। अभी भी महामारी हजारों गांवों में फैलती जा रही है।
दिल दहलाकर रख देने वाली इन घटनाओं के बीच ऐसी और रिपोर्ट्स सामने आई हैं जिनमें पीएम केअर्स फंड के तहत केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए महंगे वेंटिलेटर्स पर विभिन्न जिला अस्पतालों में या तो धूल जम रही है, या उन्हें प्राइवेट हॉस्पिटल्स को किराए पर दिया जा रहा है।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर मनीष भट्टाचार्य ने बताया कि राजस्थान के भरतपुर जिला अस्पताल को केंद्र की तरफ से कुल 60 वेंटिलेटर मिले थे, जिनमें से 40 का ‘इस्तेमाल’ अस्पताल द्वारा किया जा रहा है और 10 वेंटिलेटर्स को एक स्थानीय निजी अस्पताल को 60 हजार रुपये प्रतिमाह, या 2 हजार रुपये प्रतिदिन की दर से किराए पर दिया गया है। यह पूछे जाने पर कि ऐसे समय में जबकि महामारी पूरे उफान पर है, इन वेंटिलेटर्स का इस्तेमाल जिला अस्पताल में क्यों नहीं हो रहा है, अस्पताल के अधिकारियों ने कहा कि चूंकि ऑक्सीजन प्वाइंट्स नहीं थे और स्टाफ की भी कमी है, इसलिए इन वेंटिलेटर्स को प्राइवेट हॉस्पिटल को किराए पर देने का फैसला किया गया।
केंद्र ने पंजाब सरकार को 809 वेंटिलेटर भेजे थे, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि सूबे के जिला अस्पतालों में 150 से ज्यादा वेंटिलेटर बेकार पड़े हैं। कुछ वेंटिलेटर तो स्टोर रूम में पड़े हैं, जबकि कुछ अस्पतालों में इन्हें चलाने के लिए स्पेशलिस्ट ही नहीं है।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर पुनीत परिंजा ने बताया कि फरीदकोट मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में 62 वेंटिलेटर बेकार पड़े हुए थे। AAP के एक स्थानीय विधायक ने सोशल मीडिया पर इन अन्यूज्ड वेंटिलेटर्स की तस्वीरें डालीं और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से यह सुनिश्चित करने की अपील की कि इन वेंटिलेटर्स को कोविड रोगियों के लिए इस्तेमाल किया जाए। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक ने दावा किया कि 90 वेंटिलेटर काम नहीं कर रहे थे और अब उनकी मरम्मत की जा रही है।
पंजाब के मुक्तसर साहिब में कोरोना के 3000 से ज्यादा ऐक्टिव केस हैं जबकि वेंटिलेटर्स की संख्या सिर्फ 11 है। इन वेंटिलेटर्स का भी इस्तेमाल नहीं हो पा रहा था क्योंकि ऐसे प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी थी जो इन्हें चला सकें। जनपद के सिविल सर्जन ने बताया कि पूरे जिला अस्पताल में एक भी ऐसा स्पेशलिस्ट नहीं है जो इन वेंटिलेटर्स को चला सके। उन्होंने बताया कि अब बाहर से सिर्फ एक या दो सप्ताह के लिए स्पेशलिस्ट बुलाए जा रहे हैं।
केंद्र सरकार सिर्फ इतना कर सकती है कि वेंटिलेटर खरीद कर राज्यों को भेज दे, और राज्य इन्हें जिला अस्पतालों को दे दें। ये वेंटिलेटर एक साल पहले भेजे गए थे जब महामारी की पहली लहर चल रही थी। इन वेंटिलेटरों को चलाने के लिए तकनीशियनों और प्रशिक्षित कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए पूरे एक साल का वक्त था, लेकिन राज्य सरकारों ने ऐसा नहीं किया।
इसके बारे में सोचिए। पिछले साल जुलाई में भरतपुर के सरकारी अस्पताल में 40 वेंटिलेटर्स पहुंच गए थे, लेकिन इनमें से सिर्फ 20 वेंटिलेटर्स के लिए ही ऑक्सीजन प्वाइंट का इंतजाम हुआ। जिला प्रशासन चाहता, हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन चाहता तो पिछले साल ही कई और ऑक्सीजन प्वाइंट्स बनवाए जा सकते थे, लेकिन किसी ने इस बारे में नहीं सोचा। ये महंगे वेंटिलेटर 10 महीने से भी ज्यादा समय तक अस्पताल के स्टोर रूम में यूं ही पड़े रहे, जबकि बाहर मरीज एक-एक सांस के लिए जूझ रहे थे।
ये संयोग की बात है जिन दो राज्यों में पीएम केयर्स फंड से मिले वेंटिलेटर्स को लेकर हेराफेरी हुई, उन दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं। कांग्रेस के जो नेता लगभग रोजाना PM CARES फंड पर सवाल उठाते हैं, उन्हें अब अपनी राज्य सरकारों से पूछना चाहिए कि ये वेंटिलेटर्स अस्पतालों के स्टोर रूम में धूल क्यों फांक रहे थे।