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Rajat Sharma's Blog: यदि भीड़ सोशल डिस्टेंसिंग के नियम न माने तो शराब की दुकानों को बंद कर दें

शराब की दुकानों को केवल इस शर्त पर इजाजत दी गई थी कि सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन किया जाएगा और शराब की दुकानों के बाहर कोई भीड़ नहीं होगी। लेकिन जब लोग खुद इन नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, तो सरकार के पास एकमात्र विकल्प शराब की दुकानों को बंद करना है।

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भारत में कोरोना वायरस महामारी का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। इस वायरस के संक्रमण से होने वाली मौतों का आंकड़ा 1600 को भी पार करते हुए 1688 तक पहुंच गया है और संक्रमितों की संख्या 50 हजार के आंकड़े को छूने जा रही है। इस समय यह 49,333 पर है। भारत में पिछले 24 घंटों में 3,875 ताजा मामलों के साथ एक दिन में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई। हमारे कोरोना वॉरियर्स के अथक प्रयासों के चलते अभी तक 12,726 लोग इस बीमारी से ठीक भी हो चुके हैं।

मैं ये डरावने आंकड़े इसलिए दे रहा हूं क्योंकि मैं अपने दर्शकों को उस खतरे से सावधान करना चाहता हूं जो हमारे सामने मुंह बाए खड़ा है। लगभग सभी महानगरों में शराब खरीदने के लिए निकलने वाले हजारों लोगों द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरु जैसे शहरों में शराब की अधिकांश दुकानों के बाहर पूरा पागलपन देखने को मिला। कल रात बृहन्मुंबई नगर निगम ने भारी भीड़ को देखते हुए मुंबई में शराब की दुकानों को अनिश्चितकाल तक बंद करने का आदेश दिया।

शराब की बिक्री से प्रतिबंध हटने के बाद होने वाले पारिवारिक झगड़ों और अपराधों की खबरें इस मामले में सबसे ज्यादा परेशान करती हैं। अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने यूपी के इटावा का एक वीडियो दिखाया जिसमें एक शराबी अपनी पत्नी से शराब खरीदने के लिए ज्यादा पैसे मांग रहा था और ऐसा करते हुए उसने सिर पर मारने के लिए ईंट तक उठा ली थी। इस शख्स को किसी तरह काबू में किया गया, पुलिस बुलाई गई और उसे हिरासत में ले लिया गया।

यूपी से ही एक और वीडियो सामने आया, जिसमें वर्दी पहने एक पुलिसवाला नशे की हालत में शराब की एक दुकान के बाहर इंतजार कर रही भीड़ पर धौंस जमाने की कोशिश करता है। इसके बाद भीड़ ने पुलिसवाले की पिटाई कर दी और उसे वहां से अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। उस पुलिसवाले को सस्पेंड करके पुलिस लाइन भेज दिया गया है। बेंगलुरु में शराब से जुड़ी 2 हत्याएं हुईं। दोनों ही मामलों में 2 लोगों ने दारु पीने के बाद हुए झगड़े में अपने दोस्तों की हत्या कर दी।

यूपी के बांदा में 2 युवकों ने एक बूढ़े व्यक्ति की गोली मारकर जान ले ली क्योंकि उसने उनके शराब पीने पर आपत्ति जताई थी। राजस्थान के बारां में शराब पीने के बाद कुछ पियक्कड़ सड़क पर ही गुंडागर्दी करने लगे। कोलकाता में तो एक अलग ही नजारा देखने को मिला, जहां एक तरफ तो शराब की दुकान के बाहर शराबियों की लंबी लाइन लगी थी, तो दूसरी तरफ भूख से बेहाल लोगों की एक और कतार कम्युनिटी किचन के सामने खड़ी थी।

उत्तराखंड के नैनीताल में शराब की एक दुकान के बाहर भयंकर तूफान, बारिश और ओले को झेलते हुए तमाम शराबी छाता लेकर एक लंबी कतार में खड़े होकर इंतजार कर रहे थे। राजस्थान के जोधपुर में अपने सिर पर 'घूंघट' डाले महिलाएं अपने घरवालों के लिए शराब खरीदने के लिए शराब की दुकानों के बाहर खड़ी थीं। महिलाओं ने शराब की बिक्री को लेकर विरोध प्रदर्शन भी किया। रायपुर और विशाखापत्तनम में महिलाओं ने शराब की दुकानों के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें घरेलू झगड़ों का हवाला देते हुए शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई।

घर-घर में अब यह चर्चा आम है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने एक ऐसे समय में शराब की बिक्री की इजाजत क्यों दी जब महामारी अभी भी कम नहीं हुई है। इसका कारण पैसा है। पिछले 42 दिनों से जनकल्याण पर खर्च कर रहीं राज्य सरकारें अब आर्थिक तौर पर अनिश्चितता की स्थिति से गुजर रही हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या सार्वजनिक स्वास्थ्य पैसे से कम महत्वपूर्ण है? जवाब है: दोनों समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। पैसे के बिना राज्य सरकारें COVID-19 के खिलाफ अपनी लड़ाई को अंजाम तक नहीं पहुंचा सकती हैं। मैं समझाता हूं। जीएसटी संग्रह के अलावा, जिसे केंद्र और राज्य सरकारें जो आपस में बांटती हैं, शराब और फ्यूल राज्य सरकारों द्वारा राजस्व संग्रह के 2 मुख्य स्रोत हैं। राज्यों द्वारा राजस्व संग्रह का लगभग 15-20 प्रतिशत शराब से आता है।

RBI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान भारत में राज्य सरकारों ने अकेले शराब से 1,50,658 करोड़ रुपये कमाए। वित्त वर्ष 2019-20 में यह आंकड़ा 16 प्रतिशत बढ़कर 1,75,501 करोड़ रुपये हो गया। उत्तर प्रदेश इस मामले में सबसे ऊपर है जिसने सिर्फ शराब से 31,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का रेवेन्यू इकट्ठा किया। जाहिर है, शराब की दुकानें राज्य सरकारों के लिए किसी एटीएम से कम नहीं हैं। इस मामले में कर्नाटक दूसरे नंबर पर आता है। इसने 2019-20 में शराब से 20,950 करोड़ रुपये जुटाए। तीसरा नंबर महाराष्ट्र का है जिसने शराब से 17,478 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाया।

पश्चिम बंगाल ने 11,874 करोड़ रुपये कमाए और चौथे स्थान पर रहा, तो तेलंगाना, जहां काफी गरीबी है, ने पांचवें स्थान पर कब्जा जमाते हुए 10,901 करोड़ रुपये एकत्र किए। पंजाब, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां के पीने वाले 'पटियाला पेग' पीते हैं, ने शराब से केवल 5000 करोड़ रुपये की कमाई की। गुजरात और बिहार में शराब की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध है, जबकि आंध्र प्रदेश, जिसने शराब पर प्रतिबंध लगाया था, ने प्रॉहिबिशन सेस का सहारा लेकर रेवेन्यू इकट्ठा करने के लिए शराब की बिक्री की इजाजत दे दी है।

ये आंकड़े संक्षेप में बताते हैं कि क्यों मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दबाव डाला कि वह शराब की बिक्री से प्रतिबंध हटाने के लिए हामी भर दें ताकि उनके राज्यों के खाली खजाने भर सकें। दूसरी ओर, महिलाओं द्वारा शराब की बिक्री पर विरोध भी जायज है। राज्य शराब से राजस्व कमा सकते हैं, लेकिन शराब के चलते घरों की शांति भंग हो रही है। शराब पीना किसी शख्स की अपनी पसंद है और यह भी समझ में आता है कि राज्य सरकारों को शराब की बिक्री से मिले पैसे की जरूरत है। लेकिन, हमें एक पल के लिए विचार करना चाहिए: इसके लिए हम क्या कीमत चुका रहे हैं?

पिछले 42 दिनों से उन्हीं पुलिसवालों को, जो गरीबों के लिए भोजन के पैकेट तैयार कर रहे थे, आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के बीच राशन पहुंचा रहे थे, तबलीगी जमात के छिपे हुए सदस्यों का पता लगाकर उन्हें क्वॉरन्टीन सेंटर्स में भेज रहे थे, अब शराब की दुकानों के बाहर भीड़ को कतार में खड़ा करने और नियंत्रित करने के लिए तैनात किए जा रहे हैं। राज्य सरकारों ने पुलिस पर एक और बोझ लाद दिया है। पिछले डेढ़ महीने से, देश के नागरिक अपने घरों में ही हैं, बच्चों को पार्क में जाने की इजाजत नहीं है, पुलिसकर्मियों के साथ-साथ डॉक्टर और नर्स पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से अपने परिवारों से दूर हैं, ताकि हम सुरक्षित रहें और हमारा देश इस महामारी के कहर से बचा रहे।

कोरोना वायरस बीमारी को ठीक करने के लिए कोई टीका या दवा नहीं है, केवल सोशल डिस्टेंसिंग ही इससे बचाव का सबसे आसान तरीका है। शराब की दुकानों को केवल इस शर्त पर इजाजत दी गई थी कि सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन किया जाएगा और शराब की दुकानों के बाहर कोई भीड़ नहीं होगी। लेकिन जब लोग खुद इन नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, तो सरकार के पास एकमात्र विकल्प शराब की दुकानों को बंद करना है।

यदि राजस्व संग्रह में कमी भी आई तो कोई आसमान नहीं टूट पड़ेगा। हम महामारी को केवल इसलिए नहीं बढ़ा सकते क्योंकि हमारी सरकारों को पैसे की जरूरत है। जो लोग शराब की दुकानों पर भीड़ लगा रहे हैं, वे एक बड़ा सामाजिक पाप कर रहे हैं। वे बड़े पैमाने पर अपने स्वयं के जीवन, अपने परिवार के सदस्यों और पूरे समुदाय को खतरे में डाल रहे हैं। उनके पाप को सिर्फ इसलिए माफ नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे राज्य के खजाने में योगदान दे रहे हैं। सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की यूं धज्जियां उड़ाने वालों को पहली सजा जो मिलनी चाहिए, वह ये है कि शराब की दुकानों को तब तक बंद करें जब तक कि महामारी घट न जाए। (रजत शर्मा)

देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 05 मई 2020 का पूरा एपिसोड

 

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