Rajat Sharma's Blog: नागरिकता संशोधन विधेयक का भारतीय मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं
नागरिकता संशोधन बिल में धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदुओं, बौद्धों, सिखों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है।
लोकसभा में दिनभर चली मैराथन बैठक में तीखी बहस के बाद आधी रात को भारी बहुमत के साथ नागरिकता संशोधन विधेयक पारित हो गया। एनडीए की पूर्व सहयोगी शिवसेना ने इस बिल का समर्थन किया जबकि महाराष्ट्र में इसके नए सहयोगियों, कांग्रेस और एनसीपी ने विरोध किया। लोकसभा से पास होने के बाद अब इस बिल को राज्यसभा में रखे जाने का रास्ता साफ हो गया है।
नागरिकता संशोधन बिल में धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदुओं, बौद्धों, सिखों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। इस बिल में 31 दिसंबर 2014 को कट-ऑफ तारीख के रूप में दिया गया है।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने यह कहकर इस बिल का विरोध किया कि यह संविधान में दिये गए समानता के अधिकार के खिलाफ है, क्योंकि मुसलमानों को इस बिल के दायरे से बाहर रखा गया है। यहां यह बताना जरूरी है कि बीजेपी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए इन शरणार्थियों को नागरिकता देने का वादा किया था।
विपक्ष बार-बार अपने इस रुख पर अड़ा रहा कि यह बिल मुसलमानों को टारगेट करने के लिए लाया गया है। उनका कहना था कि अगर तीन पड़ोसी देशों के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, पारसियों और ईसाइयों को नागरिकता दी जा सकती है तो फिर मुसलमानों को क्यों नहीं।
यहां मैं बताना चाहता हूं कि जब पाकिस्तान बना था उस वक्त वहां पर हिन्दुओं की आबादी 20 फीसदी थी। लेकिन जबर्दस्त धार्मिक अत्याचार की वजह से आज वहां हिंदुओं की तादाद घटकर मात्र 1.06 फीसदी रह गई है। ज्यादातर हिन्दुओं को दबाव में धर्मपरिवर्तन करना पड़ा और जिन लोगों ने इस्लाम कबूल नहीं किया वे या तो आज डर के साए में जी रहे हैं या फिर अपना घर-बार और संपत्ति छोड़कर भारत भाग आए और यहां शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ हिंदुओं पर ही ऐसा अत्याचार हुआ बल्कि ईसाई भी इस जुल्म के शिकार हुए।
यहां ये समझना होगा कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान इस्लामिक मुल्क हैं और इनमें जो मुसलमान रहते हैं उन्हें किसी तरह के धर्मिक उत्पीड़न का या कहें तो रिलीजियस परसीक्यूशन का खतरा नहीं उठाना पड़ता है। चूंकि ये इस्लामिक देश हैं इसलिए वहां रहने वाले गैर-मुसलमानों को मुश्किलें झेलनी पड़ती है। धार्मिक अत्याचारों से तंग आकर वे लोग अगर भाग कर भारत आते हैं तो उन्हें भारत में भी कोई कानूनी हक नहीं मिलता क्योंकि वे लोग व्यवहारिक तौर पर राज्य विहीन (स्टेटलेस) हो चुके होते हैं। इन लोगों को बार-बार पुलिस के सवालों का जवाब भी देना पड़ता है और पुलिस के उत्पीड़न का शिकार भी होना पड़ता है। लेकिन इसके बाद भी ये लोग किसी कीमत पर भारत से वापस नहीं लौटना चाहते। इसीलिए ऐसे लोगों को भारत की नागरिकता मिले, इसके लिए कानून बनाया जा रहा है। लेकिन इस नागरिकता संशोधन बिल को मुसलमानों के खिलाफ समझना या कहना ठीक नहीं है कि क्योंकि भारत में रहने वाले मुसलमानों पर इसका कोई असर नहीं होगा। (रजत शर्मा)
देखें, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 09 दिसंबर 2019 का पूरा एपिसोड