CAA, NRC और मौजूदा राजनीतिक हालात
ये कैसा विचार है जो ये कहता है कि नरेंद्र मोदी हिटलर हैं, तानाशाह हैं? जो लीडर 13 साल तक गुजरात से विधानसभा चुनाव जीतता रहा , जिनके काम पर, जिनके नाम पर, उनकी पार्टी ने दो-दो लोकसभा चुनाव जीते, उनकी तुलना हिटलर से कैसे की जा सकती है?
कल शाम मैं बिग बॉस के घर में सलमान खान के साथ मुंबई में था, आज ब्रेक लेकर जब वोट डालने दिल्ली पहुंचा, तो पोलिंग बूथ की लाइन देख कर अपने देश पर, अपने लोकतंत्र पर गर्व हुआ। लेकिन फिर ये भी ख़याल आते रहे कि आजकल देश में इसी लोकतंत्र के नाम पर क्या-क्या हो रहा है? ये कैसी सोच है कि पार्लियामेंट ने एक कानून पास किया, बहुमत से किया, दोनों सदनों ने पास किया, जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने पास किया, लेकिन कुछ लोग कहते हैं 'हम नहीं मानेंगे'। उनका दावा है कि वो इस संविधान की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं, कहते हैं कि पहले CAA वापस लो वरना बात भी नहीं करेंगे। क्या सिर्फ हाथ में तिरंगा लेने से, संविधान की कॉपी सिर पर उठाने से कोई संसद से, संविधान से ऊपर हो जाता है? ये कैसी अजीब सोच है कि जिस नए कानून को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज कर दिया गया, अदालत सुनवाई भी कर रही है, फैसला आना बाकी है, लेकिन फैसले से पहले ही वही बात, हम नहीं मानेंगे, बस ज़िद है CAA वापस लो।
ये कैसा विचार है जो ये कहता है कि नरेंद्र मोदी हिटलर हैं, तानाशाह हैं? जो लीडर 13 साल तक गुजरात से विधानसभा चुनाव जीतता रहा , जिनके काम पर, जिनके नाम पर, उनकी पार्टी ने दो-दो लोकसभा चुनाव जीते, उनकी तुलना हिटलर से कैसे की जा सकती है? जनता जिसे चुने वो तानाशाह और जो चुनाव हारे वो लोकतन्त्र के सिपाही। वाह री दुनिया। याद कीजिए, मोदी पर दंगा भड़काने के आरोप लगे, उन्हें मौत का सौदागर कहा गया। मुख्यमंत्री रहते पुलिस ने कई-कई घंटों तक इंटेरोगेशन किया, सब कुछ कोर्ट की निगरानी में हुआ। मीडिया में जमकर लानत मलानत हुई, कोर्ट में केस चले, आख़िर कर अदालत ने क्लीन चिट दी।अब याद कीजिए, मोदी को तानाशाह कौन कह रहा है, जिनकी दादी ने कोर्ट में केस हारने पर कानून ही बदल दिया था, जिन्होंने अपने खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को जेल में बंद कर दिया, अखबारों पर पाबंदी लगा दी। जिनकी पार्टी में पांच लोगों को छोड़ कर किसी ने इस संविधान की आत्मा को बचाने के लिए आवाज़ नहीं उठाई। कैसे भूल जाएं कि इसी पार्टी के नेता ने कैबिनेट के फ़ैसले को फाड़ कर कूड़ेदान में फेंक दिया था। क्या उस दिन संविधान का अपमान नहीं हुआ था? अब इस विरासत और सियासत के नेताजी लोकतंत्र के पहरेदार और मोदी लोकतंत्र के हत्यारे, कोई तो समझाए ये कैसे हो सकता है ?
आजकल NRC पर नारे लगाते है- NRC वापस लो। कहां से वापस लो, जो है ही नहीं उसे वापस कहां से लें। लेकिन वो कहते हैं अगर NRC वापस नहीं होगा तो हम बात भी नहीं करेंगे, धरने पर बैठे रहेंगे, क्या हम देश की जनता के चुने हुए प्रधानमंत्री की बात न मानें, जिन्होंने कहा कि NRC पर फिलहाल चर्चा नहीं हुई, जब आएगा तो सबकी राय ली जायेगी, सबकी सुनी जाएगी, किसी को देश से निकला नहीं जाएगा , नागरिकता के सबूत नहीं मांगे जाएंगे। या फिर उनकी बात मानें जो ये तय करके बैठे हैं NRC आ चुका है, उनसे भारत का नागरिक होने के सबूत मांगे जा रहे हैं। क्या उनकी बात मान लें जो न तर्क सुनने को तैयार है, और न पढ़ने को? बस लोगों से कह रहे हैं कि मोदी तो मुसलमानो को देश से निकलवाना चाहते है, मोदी ने 3 तलाक़ का कानून बनवा दिया हम चुप रहे, मोदी ने राम मंदिर का फ़ैसला करवा दिया दिया हम चुप रहे, अब हमें निकला जाएगा।
अब कोई पूछे कि क्या तीन तलाक के खिलाफ कानून से किसी का नुकसान हुआ, क्या मुसलमानों को जेल में डाल दिया गया, ये सिर्फ एक रास्ता है उन मुस्लिम औरतों के लिए जिन्हे तीन बार तलाक़ कहकर घर के बाहर कर दिया जाता था, ये मुसलमानों के ख़िलाफ़ कैसे है? राम मंदिर का फैसला सुप्रीम कोर्ट का था, मोदी चाहते तो वाह-वाही लूटने के लिए कानून बदल सकते थे, मंदिर बनवाने का क्रेडिट ले सकते थे लेकिन तमाम दबावों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार किया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मुसलमानों के खिलाफ मोदी का फ़रमान कैसे कहा जा सकता है?
जो लोग मुसलमानो को भड़का रहे है उनके दिल में खौफ पैदा कर रहे हैं, वो अनजान नहीं हैं, वो जानते हैं सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट से किसी की नागरिकता नहीं जाएगी, वो जानते है कि NRC अगर आया भी तो न किसी को देश से निकाला जाएगा और ना डिटेंशन सेंटर में डाला जायेगा। असल में मुसलमानों को भड़काने वालों की असली दिक्कत CAA और NRC है ही नहीं। उनकी प्रॉब्लम ये है कि नरेंद्र मोदी ने सियासत का मीटर बदल दिया है, तरीक़ा बदल दिया है। अब पॉवर में आने के लिए नेता मुसलमानों का दरवाज़ा खुलकर नहीं खटखटाते। अब तो वो डरते हैं हिंदू वोटर नाराज़ ना हो जाए। अब राहुल गांधी जनेऊ दिखाते हैं, अब केजरीवाल हनुमान चालीसा सुनाते हैं और ममता बेनर्जी को मंच से दुर्गा स्तुति का पाठ करना पड़ता है। 2014 के बाद से कई राज्यों मे चुनाव हो चुके हैं, दो लोकसभा चुनाव हो गए लेकिन मोदी ने मुसलमानो को खुश रखने के लिए न तो उनसे बड़े बड़े वादे किए, ना लालच दिया। उल्टा किया। सिर्फ़ उत्तर प्रदेश का उदाहरण लें। बीजेपी ने एक भी मुसलमान उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा , फिर भी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में दो दो बार लोकसभा चुनाव जीते। असैंबली इलेक्शन भी जीता। विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव और राहुल गाँधी साथ थे। इससे भी बात नहीं बनी तो लोकसभा चुनाव में अखिलेश और मायावती साथ आए। लेकिन मोदी की एकतरफा जीत हुई। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं था। मोदी ने गेम बदल दी। मैं ये नहीं कहता कि एक भी मुसलमान को टिकट देना ठीक था या नहीं। मेरी नज़र दूसरी पार्टियों पर इसके असर पर है। असर ये हुआ कि राहुल गांधी मंदिर जाने लगे और केजरीवाल शहीन बाग नहीं गये। केजरीवाल ने तो डेढ़ साल से मोदी पर हमले करने बंद कर दिये। उससे होने वाले नुक़सान का अंदाज़ा उन्हें अच्छी तरह हो गया।
हालांकि राहुल गांधी ने केजरीवाल से सबक नहीं लिया है। राहुल पुराने रास्ते पर ही चल रहे हैं। दिल्ली की चुनावी रैली में कह रहे थे कि मोदी जी झूठ बोलते हैं, प्रधानमंत्री के सारे भाषण झूठे होते है। लेकिन शायद राहुल गांधी बिल्कुल भूल गए कुछ महीनो पहले उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपने झूठ बोलने पर माफ़ी मांगी थी। उन्होंने राफेल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर झूठ बोला था, पकड़े गए तो सुप्रीम कोर्ट में लिखित में मांफी मांगकर छूटे थे। इसीलिए कहा जाता है कि कभी भी दूसरों पर ऊंगली उठाने से पहले अपने गिरेबान में झांक लेना चाहिए, क्योंकि जब एक उंगली दूसरों की तरफ उठती है तो चार उंगलियां खुद अपनी तरफ होती हैं। राहुल इतना तो केजरीवाल से सीख सकते हैं। अरविन्द केजरीवाल बात-बात में मोदी को कोसते थे, कभी कहते थे कि मोदी की पाकिस्तान से सेटिंग है, कभी कहते थे मोदी साइको पैथ है ,कभी मोदी कायर है। केजरीवाल ने जब-जब मोदी पर डायरैक्ट अटैक किया, हवा बदल गई। इसी गलती के चक्कर में तीन-तीन बार मोदी से चुनाव हारे। तब जाकर केजरीवाल को समझ आया कि मोदी को गाली देना महंगा पड़ता है। अब पिछले डेढ़ साल से वो मोदी के लिए अपमान जनक भाषा का इस्तेमाल नहीं करते, मोदी पर अटैक करना तो दूर अगर कोई दूसरा भी केजरीवाल के कंधे पर रखकर मोदी पर बंदूक चलाता है तो केजरीवाल तुरंत खुद को अलग कर लेते हैं। इसी हफ्ते पाकिस्तान के मंत्री फबाद चौधरी ने दिल्ली में मोदी को हराने की अपील की। केजरीवाल ने बिना देर किए तुरंत जवाब दिया कि अपने काम से काम रखो मोदी जी देश के ही नहीं बल्कि मेरे भी प्रधानमंत्री हैं, मैं उनका सम्मान करता हूं । पाकिस्तान के लिए हम एक हैं। पाकिस्तान हमारी एकता में दरार नहीं डाल सकता। मोदी ने राममंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट के गठन का फैसला किया। कांग्रेस के नेताओं ने टाइमिंग पर सवाल उठाए। उस वक्त भी केजरीवाल ने सधी हुई बात कही। बोले- फैसले का स्वागत है, टाइमिंग पर सवाल उठाने वाले गलत हैं अच्छे फैसले कभी भी लिए जा सकते हैं। उन्होंने कहा मोदी ने अच्छा फैसला किया। अगर राहुल भी केजरीवाल से ये कला सीख लेते तो कांग्रेस का थोड़ा भला होता। लोकतन्त्र में मतभिन्नता जरूरी है। आलोचना भी होनी चाहिए, सरकार से सवाल पूछने का हक भी सबको है, सरकार की नीतियों का विरोध भी हो सकता है। लेकिन विरोध और आलोचना का मतलब गाली गलौच नहीं है। प्रधानमंत्री के बारे में डंडों से पिटाई की बात कहना ठीक नहीं है। विरोध का मतलब भ्रम फैलाना नहीं है। सरकार की नीतियों की मुख़ालफ़त का मतलब लोगों को गुमराह करके भड़काना या डराना नहीं है। इसलिए संविधान की दुहाई देने वालों को ये समझना पड़ेगा कि विरोध की भाषा संयत हो , विरोध में कही गई बातें तथ्यों पर आधारित हों और तर्क आधारहीन ना हो। तभी लोकतंत्र मजबूत होगा। तभी संस्थाओं और संवैधानिक पद की गरिमा बनी रहेगी।