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Hindi News भारत राष्ट्रीय Rajat Sharma’s Blog: क्या सेना के काफिले को रोकने से किसानों की समस्या हल हो जाएगी?

Rajat Sharma’s Blog: क्या सेना के काफिले को रोकने से किसानों की समस्या हल हो जाएगी?

एक तरफ तो हजारों लोग ट्रैफिक जाम में फंसकर दिक्कतें झेल रहे थे तो दूसरी तरफ भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत चाय की चुस्कियां लेते हुए ब्रेकफस्ट कर रहे थे।

Rajat Sharma Blog, Rajat Sharma Blog on Bharat Bandh, Rajat Sharma Blog on Farmers- India TV Hindi Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

किसान संगठनों द्वारा सोमवार को बुलाए गए 10 घंटे के भारत बंद के दौरान जहां पंजाब और केरल में जनजीवन ठप हो गया, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली में रोजाना सफर करनेवाले यात्रियों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इस दौरान दिल्ली-गुरुग्राम बॉर्डर पर भी भारी ट्रैफिक जाम रहा। यूपी गेट के पास किसानों ने दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस वे के सभी लेन को करीब 10 घंटे तक बंद रखा गया था। दिल्ली के चिल्ला बॉर्डर, डीएनडी फ्लाइवे और अन्य प्रवेश एवं निकास वाले रास्तों पर ट्रैफिक जाम रहा जबकि दिल्ली से कौशांबी और वैशाली तक का पूरा रास्ता दिनभर जाम रहा।

सबसे दुखद बात ये रही कि प्रदर्शनकारियों ने सेना के काफिले और एम्बुलेंस को भी नहीं छोड़ा। अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में सोमवार की रात हमने दिखाया था कि कैसे जालंधर में संयुक्त किसान मोर्चा के प्रदर्शनकारियों ने 6 लेन के हाइवे को टेंट लगाकर पूरी तरह से बंद कर दिया। हालांकि इस हाइवे के 3 लेन पर कुछ घंटों के लिए यातायात की अनुमति किसानों ने दी थी लेकिन बाद में सभी 6 लेन पर यातायात बंद कर दिया। इस दौरान जालंधर से आ रहा सेना के काफिले का आधा हिस्सा तो हाइवे से गुजर गया लेकिन बाकी काफिले को किसान नेताओं ने रोक लिया। प्रदर्शनकारियों ने रास्ते पर ट्रैक्टर खड़ा करके सेना के काफिले को रोक दिया। किसान नेताओं ने सेना के जवानों की इस दलील को भी अनसुना कर दिया कि उन्हें बॉर्डर के पास युद्धाभ्यास में हिस्सा लेना है इसलिए उन्हें आगे बढ़ने की इजाजत दी जाए।

यह घटना जालंधर में पीएपी चौक पर सुबह 8.30 बजे की है। लेफ्टिनेंट कर्नल रैंक के आर्मी ऑफिसर ने हाइवे पर बैठे किसान नेताओं को समझाने की कोशिश की लेकिन वे मानने को तैयार नहीं हुए। इसके बजाय किसान नेताओं ने आर्मी ऑफिसर को केंद्र द्वारा बनाए गए 3 कृषि कानूनों को पढ़ने के लिए कहा। जब आर्मी ऑफिसर ने बताया कि सेना का यह काफिला बॉर्डर पर युद्धाभ्यास के लिए जा रहा है, इस पर एक किसान नेता ने कहा कि आप रोजाना वॉर एक्सरसाइज में हिस्सा लेते हैं, कम से कम एक दिन निकालें और यहां हमारे इस एक्सरसाइज (विरोध प्रदर्शन) में शामिल हों।

करीब आधे घंटे की जिरह और दिल्ली में नेताओं के फोन कॉल के बाद आर्मी के बाकी काफिले को जाने दिया गया। यह वास्तव में बड़ा शर्मनाक था। खासकर ऐसे समय में जब देश पाकिस्तान और चीन के साथ लगी सीमाओं पर नई चुनौतियों का सामना कर रहा है। सबसे अजीब बात यह थी कि भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख राकेश टिकैत ने इंडिया टीवी को बताया कि किसान बाधा नहीं डाल रहे थे, 'किसान आर्मी ऑफिसर से बॉर्डर के हालात के बारे में पूछ रहे थे।’ जब उनसे बात हो गई तो फौजियों को आगे जाने दिया। टिकैत प्रदर्शनकारियों की इस हरकत की निंदा तो छोड़िए, उल्टा बचाव कर रहे थे।

न केवल सेना के काफिले को, बल्कि लाखों आम लोगों को यातायात बाधित होने के कारण दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मुंबई-अहमदाबाद हाईवे पर सोमवार को 15 से 20 किलोमीटर लंबा जाम लगा रहा। इंडिया टीवी के रिपोर्टर राजीव कुमार ने बताया कि मुंबई-ठाणे-नवी मुंबई मार्ग पर 2 घंटे से भी ज्यादा समय तक एक इमरजेंसी एम्बुलेंस जाम में फंसी रही। एक हार्ट ट्रांसप्लांट केस के लिए एम्बुलेंस को सुबह 9 बजे अस्पताल पहुंचना था। ट्रैफिक जाम में फंसी एम्बुलेंस का ऐसा ही एक मामला हरियाणा के पलवल में देखने को मिला।

16 लेन का गुरुग्राम-दिल्ली हाईवे पर घंटों तक भारी ट्रैफिक जाम था। दोनों ही तरफ हजारों की संख्या में गाड़ियां बेहद धीमी रफ्तार से आगे बढ़ पा रही थीं। ट्रैफिक जाम के कारण ऑफिस जाने वाले हजारों लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इसी तरह के दृश्य दिल्ली के साथ लगे गाजियाबाद और नोएडा के बॉर्डर पर देखे गए, क्योंकि ज्यादातर गाड़ियों को हाइवे से डायवर्ट कर दिया गया था।

एक तरफ तो हजारों लोग ट्रैफिक जाम में फंसकर दिक्कतें झेल रहे थे तो दूसरी तरफ भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत चाय की चुस्कियां लेते हुए ब्रेकफस्ट कर रहे थे। टिकैत को मीडियाकर्मियों से यह कहते हुए सुना गया कि मोर्चा ने तो पहले ही लोगों से कह दिया था कि सोमवार की भी छुट्टी ले लो और वीकेंड की छुट्टियों को मिलाकर 3 दिन एंजॉय करो।

केरल, पंजाब और महाराष्ट्र की राज्य सरकारों ने बंद को 'सफल' बनाने के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों का परोक्ष रूप से समर्थन किया, लेकिन सच्चाई यही है कि कुछ राज्यों को छोड़ दिया जाए तो भारत के अधिकांश हिस्सों में भारत बंद का कोई असर नहीं दिखा और जनजीवन बिल्कुल सामान्य रहा। भारत के कुछ हिस्सों में प्रदर्शनकारी पटरियों पर बैठ गए जिसके कारण 25 ट्रेनों को रद्द करना पड़ा। केरल के कोझिकोड में, सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के ट्रेड यूनियन (CITU) के समर्थकों ने एक ब्रॉडबैंड कंपनी के कार्यालय पर धावा बोल दिया, कर्मचारियों को जमकर पीटा और पूरे ऑफिस में तोड़फोड़ कर उसे तहस-नहस कर दिया। कारण: बंद के आह्वान के बावजूद ऑफिस खुला था।

किसानों को शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है, लेकिन उन्हें आम लोगों को परेशान करने का कोई हक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने कुछ फैसलों में इसे स्पष्ट किया है। अगर किसान, अन्नदाता के रूप में सेना के काफिले, एम्बुलेंस और ऑफिस आने-जाने वाले लोगों के रास्ते बंद करने लगा तो इससे वह क्या हासिल कर लेगा?

ये किसान नेता एक ही मुद्दे पर अड़े हुए हैं: तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करो। केंद्र ने सभी किसान नेताओं के साथ 11 दौर की बातचीत की। फिर भी किसान नेताओं का आरोप है कि सरकार ने बातचीत के लिए अपने दरवाजे बंद कर लिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि उनके दरवाजे बातचीत के लिए खुले हैं, और वह तीनों कानूनों पर क्लॉज-बाइ-क्लॉज चर्चा करने के लिए तैयार हैं, और अगर कोई गलती है तो सरकार उसे सुधारने के लिए भी तैयार है। लेकिन किसान नेताओं की शर्त है कि पहले कानून रद्द करो फिर बात करेंगे। अब अगर कानून ही रद्द हो गए तो फिर बात किस पर होगी?

सुप्रीम कोर्ट ने कृषि विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त की, लेकिन किसान नेताओं ने समिति से बात करने से इनकार कर दिया। किसान नेताओं ने एक तरफ तो केंद्र और सुप्रीम कोर्ट, दोनों के प्रस्तावों को ठुकरा दिया और दूसरी तरफ किसानों के दमन का झूठा आरोप लगाया। केंद्र ने 10 महीने से भी ज्यादा समय से धरने पर बैठे किसी भी प्रदर्शनकारी किसान के खिलाफ पुलिस बल का प्रयोग नहीं किया।

किसान आंदोलन की आड़ में राष्ट्रविरोधी तत्व गणतंत्र दिवस पर ऐतिहासिक लाल किले तक पहुंच गए थे और वहां तिरंगे का अपमान किया था। सोमवार को भी कई किसान प्रदर्शनकारियों को खतरनाक तरीके से लाठी-डंडों का इस्तेमाल करते हुए देखा गया। पुलिस ने अधिकतम संयम बरता। सरकार ने ऑफर किया था कि वह नए कृषि कानूनों को सस्पेंड करने के लिए तैयार है, लेकिन किसान नेताओं ने इसे भी खारिज कर दिया।

लंबे समय से धरने पर बैठे कई किसानों की ठंड, खराब मौसम, कोविड और अन्य कारणों से दुखद मौत हुई है। इन मौतों को टाला जा सकता था, लेकिन ये भी देखना पड़ेगा कि उसके लिए जिम्मेदार कौन है।

और फिर धरने पर बैठे किसानों और उनमें से कुछ की जान जाने की तस्वीरों और वीडियो को पूरी दुनिया में दिखाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की अमेरिका यात्रा के दौरान तथाकथित किसान समर्थकों द्वारा वॉशिंगटन और न्यूयॉर्क में विरोध प्रदर्शन किए गए। उनका असली मकसद नरेंद्र मोदी को बदनाम करना था। क्या यह स्वीकार्य है?

जब हमारे देश के प्रधानमंत्री व्हाइट हाउस में जो बायडेन के साथ महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा कर रहे थे, ये प्रदर्शनकारी अमेरिकी राष्ट्रपति को ट्वीट भेज रहे थे, और उनसे मोदी के साथ किसानों के आंदोलन के मुद्दे को उठाने के लिए कह रहे थे। उनके ट्वीट्स का किसी ने संज्ञान नहीं लिया। लेकिन इस तरह की हरकतों से ये पता चलता है कि किसान आंदोलन के पीछे असली मकसद क्या है। मकसद है दुनिया की नजरों में भारत की छवि खराब करना, किसी भी तरह मोदी को शर्मसार करना। किसी भी सूरत में इन विरोधियों का मकसद किसानों का भला करना नहीं हो सकता। भारत में मोदी का विरोध करने वाले लोग किसान नेताओं के कंधों का इस्तेमाल पीएम पर निशाना साधने के लिए कर रहे हैं। बीजेपी का विरोध करने वाले विपक्षी नेता किसान आंदोलन का इस्तेमाल अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए कर रहे हैं। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 27 सितंबर, 2021 का पूरा एपिसोड

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