प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को कर्नाटक में चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को यह चुनौती दी कि वे बिना किसी नोट्स के कांग्रेस सरकार की उपलब्धियों के बारे में अपनी रैली में 15 मिनट बोलकर दिखाएं। साथ ही उन्होंने राहुल गांधी को सार्वजनिक तौर पर कम से कम पांच बार 'विश्वेश्वरैया' शब्द बोलने की चुनौती दी। कांग्रेस अध्यक्ष हाल में एक चुनावी रैली के दौरान इस महान इंजीनियर के नाम के उच्चारण में अटक गए थे और गलती कर बैठे थे। पूरे देश में एम. विश्वेश्वरैया की याद में उनके जन्म दिवस 15 सितंबर को इंजीनियर्स दिवस मनाया जाता है।
कांग्रेस पार्टी नरेंद्र मोदी के इस तीखे तेवर से परेशान है। कुछ पॉलिटिकल पंडितों का कहना है कि प्रधानमंत्री को अपने भाषण के लहजे और उसके स्वर को लेकर सावधान रहना चाहिए, वहीं कुछ लोग यह सवाल पूछते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी चुनाव प्रचार के दौरान इतने आक्रामक क्यों हो जाते हैं?
जब कभी नरेंद्र मोदी मंच पर प्रधानमंत्री के तौर पर भाषण देते हैं तो उनका अंदाज अलग होता है। उनका भाषण बेहद संतुलित और सधा हुआ होता है। लेकिन चुनावी रैलियों में मोदी एक प्रधानमंत्री के तौर नहीं बोलते हैं। वे अपनी पार्टी के स्टार प्रचार के तौर पर भाषण देते हैं और उनमें यही फर्क नजर आता है।
पार्टी के स्टार प्रचारक के तौर पर नरेंद्र मोदी की भाषा बेहद कड़वी और कभी-कभी चुभनेवाली होती है। मोदी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर सीधे हमले करते हैं लेकिन चुनाव के बाद वे यह कहते हैं कि चुनाव की कड़वाहट प्रचार अभियान के बाद भुला देनी चाहिए। लेकिन सच तो यह है कि न तो वे खुद इसे भूलते हैं और न लोगों को भूलने देते हैं। यही नरेंद्र मोदी की खासियत है जो उन्हें दूसरे नेताओं से अलग बनाती है। पूरे कर्नाटक चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी का यही अंदाज आपको बार-बार देखने को मिलेगा। (रजत शर्मा)
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