Rajat Sharma's Blog: गरीब प्रवासी मजदूरों के नाम पर सियासत क्यों?
गरीबों के पक्ष में बोलना सही है, लेकिन जब राजनीतिक दलों के नेता बोलते हैं, तो उन्हें अपने बयानों के परिणामों के बारे में भी सोचना चाहिए कि उसका समाज और राष्ट्र के हित पर क्या असर पड़ता है।
सूरत, पुणे, अहमदाबाद, मुंबई, बेंगलुरु और अन्य शहरों में सोमवार को हजारों की तादाद में प्रवासी मजदूर (कामगार) जमा हो गए और स्पेशल ट्रेन के जरिये गृह राज्य भेजने की मांग करने लगे। पिछले चार दिनों में रेलवे ने 50 स्पेशल ट्रेनें चलाकर 50 हजार से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य पहुंचाया है।
सूरत, बेंगलुरु और पुणे में प्रवासी मजदूरों और पुलिस के बीच झड़प भी हुई। सूरत में प्रवासी मजदूरों की ओर से पथराव और तोड़फोड़ किये जाने के बाद पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े. जबकि पुणे में पुलिस ने हल्का लाठीचार्ज किया।
शुरुआती तीन दिनों में जब स्पेशल ट्रेनें चलाई गईं तब प्रवासी कामगारों के बीच कहीं कोई पैनिक नहीं था। सोमवार को अचानक कई शहरों में हजारों लोगों की भीड़ जुट गई और ये लोग घर वापस भेजने के लिए स्पेशल ट्रेनें चलाने की मांग करने लगे। स्पष्ट है कि अफवाह फैलानेवाले सोशल मीडिया पर इन कामगारों के बीच सक्रिय थे और इनमें अधिकांश यूपी, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से थे।
अब जबकि पश्चिमी भारत में अधिकांश उद्योग एकबार फिर से खुलने लगे हैं और उन्हें मजदूरों (कामागारों) की जरूरत है, ऐसे में आश्चर्य की बात ये है कि इन मजदूरों ने अपने घर वापस जाने का विकल्प क्यों चुना। मेरा मानना है कि इसकी मुख्य वजह कुछ राजनेताओं की निम्नस्तरीय या घटिया राजनीति हो सकती है।
सोमवार सुबह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक बयान जारी किया और सभी राज्यों की पार्टी यूनिट से कहा कि वो स्पेशल ट्रेन से यात्रा करने प्रवासी मजदूरों का खर्च उठाएं। अपने बयान में उन्होंने आरोप लगाया: "यह खासतौर से परेशान करने वाला है कि केंद्र सरकार और रेल मंत्रालय संकट की इस घड़ी में ट्रेन टिकट के लिए उनसे पैसे ले रही है।" वहीं उनके बेटे राहुल गांधी ने ट्विटर पर केंद्र के बारे में उपहासजनक टिप्पणी की।
मैं कांग्रेस नेताओं से बेहद सीधा और सरल सवाल करना चाहता हूं: अगर वो मजदूरों को ट्रेन का टिकट खरीदकर देंगे तो ये बताएं कि इन स्पेशल ट्रेनों के टिकट कहां मिल रहे हैं? किस काउंटर से खरीदेंगे? किस वेबसाइट पर इंटरनेट के जरिए स्पेशल ट्रेनों के टिकट बेचे जा रहे हैं?
अब जरा प्रवासी मजदूरों के किराए के पीछे की सच्चाई को जाने लें। यह सही है कि प्रत्येक प्रवासी मजदूर की ओर से स्लीपर का मूल किराया, सुपरफास्ट चार्ज 30 रुपया और रिजर्वेशन चार्ज 20 रुपये का भुगतान किया गया है। लेकिन रेलवे प्रवासी कामगारों की यात्रा का 85 फीसदी खर्च खुद वहन कर रहा है, (इसमें सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से केवल 60 फीसदी यात्री क्षमता और खाली ट्रेन की वापसी का खर्च भी शामिल है ), जबकि कुछ राज्य सरकारें बाकी 15 फीसदी किराये का वहन कर रही हैं। यात्रा के दौरान प्रवासी कामगारों के लिए खाने-पीने का इंतजाम का खर्च भी रेलवे की ओर से वहन किया जा रहा है। सोमवार को स्पेशल ट्रेन से पटना से मुंबई और राजस्थान से लखनऊ लौटे कामागरों ने खुलासा किया कि उन्हें पूरा किराया नहीं देना पड़ा।
जाहिर है, कांग्रेस के नेता गरीब प्रवासी कामगारों को गुमराह कर रहे हैं। वे आरोप लगा रहे हैं कि रेलवे उन लोगों से पूरी यात्रा का किराया वसूल रहा है जिनके पास पिछले 40 दिनों से कोई काम नहीं है और खाने के लिए भी पैसे नहीं हैं। सच्चाई यह है कि केरल, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसी गैर-बीजेपी सरकारों ने इन गरीब मजदूरों से 15% ट्रेन किराया लिया, लेकिन कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व केंद्र सरकार को दोषी ठहरा रहा है।
हालांकि यहां सवाल ये भी उठता है कि यदि रेलवे कुल परिवहन लागत का 85 प्रतिशत वहन कर सकती है, तो 100 प्रतिशत क्यों नहीं? मैंने रेलवे के कई अधिकारियों से बात की। उन्होंने काफी तार्किक जवाब दिया। अगर रेलवे ने सभी प्रवासी कामगारों के लिए मुफ्त यात्रा की घोषणा की होती, तो सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर भीड़ काफी बढ़ जाती है और हालात को संभाल पाना मुश्किल होता।
उन्होंने बताया कि सिर्फ अफवाहों के आधार पर कैसे एक लाख से ज्यादा कामगार अपने परिवार के साथ आनंद विहार में जमा हो गए थे कि यूपी सरकार उनलोगों के लिए स्पेशल बसों का इंतजाम कर रही है। इसी तरह सोशल मीडिया पर चली अफवाहों के आधार पर बांद्रा स्टेशन के बाहर हजारों लोग जमा हो गए थे और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे को स्पेशल ट्रेनें चलाने के लिए रेलवे से अपील करनी पड़ी थी।
इसके बाद झारखंड सीएम हेमंत सोरेन ने रेल मंत्रालय को एक स्पेशल ट्रेन के लिए अनुरोध भेजा था। उन्होंने प्रवासी कामगारों को वापस लाने के मामले पर गंभीरता से विचार करने का अनुरोध किया और इस तरह से पहली स्पेशल ट्रेन की प्लानिंग की गई। अनियंत्रित भीड़-भाड़ से बचने के लिए इसे गोपनीयता के साथ संचालित किया गया।
रेलवे नहीं चाहता था कि बड़े रेलवे स्टेशनों पर बड़ी भीड़ इकट्ठा हो। किराये की 15 फीसदी राशि के इंतजाम का जिम्मा भी यात्रा के आयोजन के लिए संबंधित राज्य सरकारों को दे दी गई। अगर रेलवे मुफ्त स्पेशल ट्रेनें चलाता, तो ज्यादातर राज्य सरकारें इस तरह की और ट्रेनों की मांग करतीं, क्योंकि उन्हें अपनी ओर से कुछ खर्च नहीं करना होता।
अगर ट्रेनों में भारी भीड़ जमा हो जाती तो लॉकडाउन का पूरा उद्देश्य ही खत्म हो जाता। अगर रेलवे ने सभी प्रवासी कामगारों और फंसे हुए लोगों के लिए मुफ्त में स्पेशल ट्रेन का ऐलान किया होता तो पिछले 40 दिनों के लॉकडाउन की वजह से जो फायदा हुआ था वह सब हम गंवा बैठते।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सवाल किया कि जब रेलवे पीएम पीएम केयर रिलीफ फंड में 151 करोड़ रुपये दान कर सकती है तो क्यों प्रवासी कामगारों का खर्च नहीं उठा सकती? इस राष्ट्रीय संकट के दौरान गरीबों पर खर्च होने वाले हजारों करोड़ की तुलना में 151 करोड़ रुपये क्या है? मैं आपको कुछ आंकड़े देता हूं।
केंद्र ने पिछले एक महीने में गरीब लोगों, महिलाओं, किसानों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों पर 45,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इससे लगभग 33 करोड़ लोग लाभान्वित हुए हैं।
23 अप्रैल तक गरीबों की मदद के लिए सरकार 31,235 करोड़ रूपए खर्च कर चुकी थी। सिर्फ राशन पहुंचाकर ही नहीं बल्कि गरीबों के खाते में पैसा भी भेजा गया। आठ करोड़ किसानों को 16,146 करोड़ रुपए की मदद की गई। इन किसानों के खाते में दो-दो हजार रुपए ट्रांसफर किए गए। इसके अलावा 20.5 करोड़ महिलाओं के जन-धन खाते में पांच-पांच सौ रूपए ट्रांसफर किए गए। ये राशि अगले तीन महीने तक उनके खातों में जमा होती रहेगी।
इसी तरह केंद्र ने 1,405 करोड़ रुपये 2.87 करोड़ वरीष्ठ नागरिकों, विधवाओं और दिव्यांगों के खातों में जमा कराया। अगले तीन महीने तक इन लोगों को पांच-पांच सौ रुपये प्रति माह मिलेंगे। वहीं 2.17 लाख कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के खातों में 3,497 करोड़ रुपये जमा कराए गए।
केंद्र सरकार ने पिछले एक महीने में 2.66 करोड़ फ्री एलपीजी सिलेंडर गरीब परिवारों के घरों में वितरित किया है। अब तक 3.05 करोड़ फ्री एलपीजी सिलेंडर बुक किए गए हैं। गरीब परिवारों को अगले तीन महीनों तक सस्ते दामों पर गेहूं, चावल और दालें मिलेंगी।
अब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि अगर केंद्र गरीबों पर हजारों करोड़ रुपये खर्च कर सकता है, तो उसने प्रवासी श्रमिकों से ट्रेन किराया क्यों लिया? क्योंकि पैसा मुद्दा नहीं है।
अगर रेलवे ने स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था की होती, तो लॉकडाउन का उद्देश्य खत्म हो जाता और महामारी के काफी तेजी से फैलने का खतरा था। इसके अलावा, मुफ्त सफर के लिए रेलवे स्टेशनों पर जो भारी भीड़ जमा होती, उसे नियंत्रित करना काफी मुश्किल होता।
लॉकडाउन में कुछ ढील के साथ, उद्योग और व्यवसाय अब फिर से खुल रहे हैं और उन्हें कामगार-मजदूरों की जरूरत है। इनमें से कई लोग फिर से विचार कर रहे हैं। कुछ लोग रुकना चाहते हैं और अपने उद्योगों में काम करना चाहते हैं।
गरीबों के पक्ष में बोलना सही है, लेकिन जब राजनीतिक दलों के नेता बोलते हैं, तो उन्हें अपने बयानों के परिणामों के बारे में भी सोचना चाहिए कि उसका समाज और राष्ट्र के हित पर क्या असर पड़ता है। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 4 मई 2020 का पूरा एपिसोड