Rajat Sharma Blog: शहरों में हमारी जल निकासी व्यवस्था क्यों चरमरा गयी है?
यह नाला पिछले 50 साल से अस्तित्व में है लेकिन आधिकारिक दस्तावेजों में इस नाले का उल्लेख तक नहीं है और न ही कोई नक्शा उपलब्ध है।
आपने गौर किया होगा कि जब कभी दिल्ली, मुंबई, चेन्नई या कोलकाता जैसे महानगरों में या फिर केरल जैसे राज्यों में भारी बारिश होती है, तो पूरी जल निकासी व्यवस्था ठप हो जाती है। आप यह सोचते होंगे कि ऐसा क्यों होता है?
आज मैं आपको बिहार की राजधानी पटना की जल निकासी व्यवस्था के एक खेदजनक पहलू से रूबरू करना चाहूंगा। शनिवार को 10 साल का लड़का दीपक एक खुले नाले में गिर गया और पिछले चार दिनों से एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के लोग उस लापता बच्चे की तलाश के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं। बच्चे का कुछ पता नहीं चल पा रहा है।
बचाव दल के कर्मचारियों का नाले में अंदर तक जाना मुश्किल हो रहा है। नाले के पाइप पूरी तरह चोक हो चुके हैं। बचाव दल की मुश्किलों का हल निकालते समय यह पता चला कि पिछले 35 साल में एकबार भी इस नाले की सफाई नहीं हुई है। इतना ही नहीं, चौंकाने वाली बात ये है कि स्थानीय प्रशासन और नगर निगम के पास इस नाले का नक्शा भी उपलब्ध नहीं है। किसी को नहीं मालूम कि जमीन के अंदर इस नाले की पाइप कहां-कहां से गुजरती हुई गंगा नदी में गिरती है। नाले की पाइप की चौड़ाई (व्यास) 5 फीट है लेकिन चार फीट हिस्सा पूरी तरह कूड़े से भरा हुआ है और चोक हो गया है। नाले के भीतर शराबबंदी के दौरान जब्त की गई शराब की बोतलें मिल रही हैं जिन्हें तोड़ कर नाले में फेंक दिया गया। नाले के भीतर मरे हुए जानवर मिल रहे हैं।
यह हमारी पूरी निकाय व्यवस्था के ऊपर गंभीर सवाल खड़े करता है। यह नाला पिछले 50 साल से अस्तित्व में है लेकिन आधिकारिक दस्तावेजों में इस नाले का उल्लेख तक नहीं है और न ही कोई नक्शा उपलब्ध है। इससे एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के बचाव दल के कर्मचारी यह नहीं समझ पा रहे है कि बच्चे की तलाश के लिए उन्हें किस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए और किस रणनीति पर काम करना चाहिए।
इंडिया टीवी संवाददाता गोनिका अरोड़ा ने इंजीनियर राजेश्वर प्रसाद को खोज निकाला जिनकी देखरेख में इस नाले का निर्माण हुआ था। वे अब सेवानिवृत हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि इस नाले का निर्माण लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (पीएचईडी) ने कराया था। कोई भी आधिकारिक तौर पर यह नहीं बता सकता कि यह नाला किस दिशा में जाकर पटना के बगल से बहनेवाली गंगा नदी में गिरता है।
अगर नाले में बच्चा नहीं गिरता तो 50 साल पुराने इस नाले को लेकर लोग फिक्रमंद या चिंतित न होते। नौकरशाह अब एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे हैं लेकिन निश्चित तौर पर हमें इस व्यवस्था को दुरूस्त करने की जरूरत है। हमें बुनियादी तौर पर बदलाव करने की और अफसरों की जिम्मेदारी तय करने की जरूरत है । अन्यथा किसी भी दिन अनभिज्ञता और लापरवाही की वजह से यह पूरी व्यवस्था चरमरा कर गिर सकती है।
दीपक के माता-पिता पर क्या बीत रही होगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। दीपक के पिता फल बेचते हैं। उन्हें ये भी नहीं पता कि उनका बच्चा जिंदा भी है या नहीं। दीपक की मां को अभी-भी भरोसा है कि उसका बेटा जिंदा है। एक मां कैसे मान ले कि उसका इकलौता बेटा अब दुनिया में नहीं है। लेकिन पूरी व्यवस्था उनके बेटे का पता लगा पाने में असहाय सी लग रही है। (रजत शर्मा)