ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सोमवार को यह सवाल उठाया था कि जम्मू आतंकी हमले में 7 सैनिकों की शहादत पर, जो कि मुसलमान थे, देश का नेतृत्व चुप क्यों है। बुधवार को सेना की उत्तरी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल देवराज अनबु ने इसका जवाब दिया, 'सैनिकों की शहादत को सांप्रदायिक रंग न दें। सेना में कोई जाति या मजहब नहीं होता।' उम्मीद है कि कश्मीर और बिहार में शहीदों के जनाजे में उमड़े जनसैलाब की तस्वीर और आवाम का मूड देखकर हो सकता है कि असदुद्दीन ओवैसी को अपनी गलती का अहसास हो गया होगा।
भारतीय सेना में जाति या धर्म के नाम पर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है। सैनिक अपनी मातृभूमि की खातिर जान देता है वो सिर्फ हिन्दुस्तानी होता है। हालांकि ओवैसी की बातें सुनने के बाद कुछ लोगों ने एक और सवाल उठाया है। कुछ मौलानाओं ने कहना शुरू किया है कि जब आर्मी में राजपूताना राइफल्स है, गोरखा रेजीमेंट, मराठा रेजीमेंट और सिख रेजीमेंट है तो फिर मुसलमानों के नाम पर कोई रेजीमेंट क्यों नहीं है? दरअसल सामाजिक पहचान के आधार पर ज्यादातर रेजीमेंट्स ब्रिटिश जमाने में बनाई गई थीं इसलिए मेरा मानना है कि अब इन्हें खत्म किया जाना चाहिए। हमारे इतिहास में वीर योद्धाओं की कमी नहीं है। महाराणा प्रताप, राणा सांगा और वीर शिवा जी से लेकर सुभाष चन्द्र बोस और अब्दुल हमीद तक एक से बढ़कर एक रणबांकुरे हैं। अगर सरकार आर्मी रेजीमेंट्स के नाम बदलकर हमारे महापुरूषों के नाम पर रख दे तो शायद किसी को सवाल उठाने मौका ही न मिले। (रजत शर्मा)
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