Rajat Sharma's Blog: मोदी ने जनसंख्या नियंत्रण, पॉलिथीन पर प्रतिबंध और जल संरक्षण की अपील क्यों की
स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने तीन नए मुद्दों की बात की, एक, जनसंख्या नियंत्रण, दो, प्लास्टिक और पॉलिथीन के उपयोग पर प्रतिबंध, और तीन, जल संरक्षण। उन्होंने इन मुद्दों पर जनता का समर्थन मांगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस पर 92 मिनट के अपने भाषण के दौरान मेरे उस दृष्टिकोण, कि उन्हें मालूम है कि लोगों की नब्ज कैसे छुई जाती है, की एक बार फिर पुष्टि कर दी। मोदी ने अपने संबोधन में राजनीतिक बयानबाजी से परहेज किया और उन सार्वजनिक मुद्दों पर बात की जो बड़े पैमाने पर जनता से जुड़े हैं।
प्रधानमंत्री के रूप में लाल किले से यह उनका छठा भाषण था। मोदी ने अपनी सरकार के द्वारा पहले 5 साल के दौरान किए गए कामों का त्वरित विश्लेषण किया, और फिर 70 दिनों के अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान किए गए कामों के बारे में बताया। मोदी सीधे आम आदमी से जुड़ जाते हैं और एक ऐसे नेता के रूप में छाप छोड़ते हैं जो अपना कहा करते हैं, और वही कहते हैं जो वह करने वाले होते हैं।
कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करना साहसी निर्णय था। कानून द्वारा तीन तलाक प्रथा को समाप्त करना कोई आसान काम नहीं था। ये ऐसे फैसले थे जिनके व्यापक राजनीतिक प्रभाव थे, और पहले की सरकारें ये फैसले लेने से बचती थीं क्योंकि इसमें राजनीतिक जोखिम शामिल थे। लेकिन मोदी एक ऐसे नेता हैं जो राजनीतिक नफा-नुकसान के बारे में नहीं सोचते हैं, खासकर तब, जब मुद्दे राष्ट्र और समाज की भलाई से जुड़े होते हैं।
यह मानना पड़ेगा कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के मुद्दे पर मोदी को देश के सभी वर्गों से जबरदस्त समर्थन मिला है। उन्हें ज्यादातर मुस्लिम महिलाओं का भी समर्थन मिला, जो अपने सिर पर लटक रही तीन तलाक की तलवार से आजाद हो चुकी हैं। मोदी सफल हुए क्योंकि उनके इरादे अच्छे हैं और उनमें स्पष्ट इच्छाशक्ति (नीयत साफ, इरादे नेक) है। ध्यान देने वाली सबसे जरूरी बात यह है कि मोदी को पता है कि वह जनता के समर्थन और सहयोग के बिना सफल नहीं हो सकते। फिर चाहे वह स्वच्छता अभियान हो या जन धन योजना, इनमें से कोई भी अभियान जनभागीदारी के बिना सफल नहीं हो पाता।
स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने तीन नए मुद्दों की बात की, एक, जनसंख्या नियंत्रण, दो, प्लास्टिक और पॉलिथीन के उपयोग पर प्रतिबंध, और तीन, जल संरक्षण। उन्होंने इन मुद्दों पर जनता का समर्थन मांगा। मैं भी उनकी इस अपील का समर्थन करते हुए आप सभी से अनुरोध करना चाहता हूं कि इन तीन उद्देश्यों को प्राप्त करने में अपना योगदान दें। अंत में यह हमको ही फायदा पहुंचाएगा।
तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या को नियंत्रित करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। अकेले यूपी की जनसंख्या दुनिया के तीन-चौथाई देशों से भी ज्यादा की जनसंख्या से अधिक है। 1947 में भारत की जनसंख्या 32 करोड़ थी, जो आज 132 करोड़ के आंकड़े को छूने जा रही है। चूंकि भारत में भूमि, जल और प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं, इसलिए हमें इस मुद्दे को युद्धस्तर पर उठाना चाहिए। हर कोई जानता है कि आपातकाल के दौरान क्या हुआ था, जब संजय गांधी ने जबरन नसबंदी का सहारा लिया था। यह एक शुभ संकेत है कि मुस्लिम उलेमा आगे आए हैं और इस मुद्दे पर मोदी को अपना समर्थन देने की बात कही है। हम सभी को, चाहे हम जिस धर्म को मानते हों, यह तय करना चाहिए कि हमारे परिवार छोटे हों।
अगला मुद्दा पर्यावरण से जुड़ा है। भारत में प्रतिदिन 26,000 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, जिसमें से अकेले दिल्ली का हिस्सा लगभग सात हजार टन का है। पॉलिथीन उत्पाद कार्सिनोजेनिक होते हैं और उन्हें सड़ने में लगभग एक हजार साल लगते हैं। करीब एक टन प्लास्टिक कचरा हमारे समुद्री तट को प्रतिदिन प्रदूषित करता है, जो समुद्री जीवन को खतरे में डालता है। ये जमीन और पानी, दोनों पर हमारे पर्यावरण के लिए खतरा हैं। हम सभी को पॉलीथिन के इस्तेमाल से बचना चाहिए।
तीसरा मुद्दा पानी से जुड़ा है। आजादी के 72 साल बाद भी देश के लगभग 60 फीसदी लोगों के पास पीने के साफ पानी की सुविधा नहीं है। यह एक ऐसे देश में, जहां सबसे ज्यादा बारिश का पानी गिरता है, लेकिन मॉनसून के दौरान बाढ़ का अधिकांश पानी समुद्र में चला जाता है और बर्बाद हो जाता है। हमें पानी की हर बूंद के संरक्षण के लिए साथ आना चाहिए, क्योंकि हमारे भूजल संसाधन तेजी से घट रहे हैं। मोदी ने अलग से एक जल शक्ति मंत्रालय बनाया है जो जल संरक्षण की देखरेख करेगा, ग्राउंड वॉटर को रिचार्ज करेगा और 2024 तक ग्रामीण परिवारों को पाइप के द्वारा पानी उपलब्ध कराने की दिशा में काम करेगा।
मोदी ने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' की भी बात की। मैं उनके सुझाव का तहे दिल से समर्थन करता हूं। पिछले कई सालों से वह राजनीतिक दलों को लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ करवाने के लिए सहमत करने की कोशिश कर रहे हैं।
1952 में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के लिए पहला आम चुनाव एक साथ आयोजित किया गया था और ऐसा 1967 तक होता रहा। इसके बाद गठबंधन सरकारों का युग शुरू हुआ और सत्ता पर कांग्रेस का एकाधिकार धीरे-धीरे खोता चला गया। वर्तमान में देश में हर साल में कम से कम दो विधानसभा चुनाव होते हैं और हमारा चुनाव आयोग इनको संपन्न कराने में व्यस्त रहता है। इसका परिणाम यह होता है कि चुनावों के दौरान आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने के चलते राज्यों में विकास के सारे काम अटक जाते हैं, चुनावी खर्चों में अनावश्यक बढ़ोतरी होती है और राजनीतिक दल वोट बटोरने के लिए लोकलुभावन वादे करने में जुटे रहते हैं।
यह चुनावी चक्र लोकसभा चुनावों तक जारी रहता है जो हर पांच साल में होता है। चुनाव की इन भारी-भरकम गतिविधियों के परिणामस्वरूप सरकारी खजाने से काफी नुकसान होता है। कई राजनीतिक दल अभी भी इस मुद्दे पर एकमत नहीं हैं। मोदी अब इस मुद्दे को जनता के बीच ले गए हैं, ताकि मतदाता खुद अपने नेताओं पर ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के प्रस्ताव पर सहमत होने के लिए दबाव डालें। (रजत शर्मा)
देखें, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 15 अगस्त 2019 का पूरा एपिसोड