Rajat Sharma's Blog: 15 विदेशी दूतों के श्रीनगर दौरे के वक्त महबूबा ने अपनी पार्टी के 8 नेताओं को क्यों निकाला
सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पार्टी के 8 नेताओं को ‘सरकार के साथ बातचीत करने के लिए’ निष्कासित कर दिया।
गुरुवार को कश्मीर घाटी में 2 बड़े घटनाक्रम हुए। भारत में अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर समेत 15 विदेशी दूतों ने श्रीनगर का दौरा किया। इन दूतों ने घाटी में वर्तमान स्थिति पर चर्चा करने के लिए राजनेताओं, सेना के अधिकारियों और सिविल सोसाइटी के सदस्यों के साथ मुलाकात की। वहीं, सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पार्टी के 8 नेताओं को ‘सरकार के साथ बातचीत करने के लिए’ निष्कासित कर दिया।
5 अगस्त 2019 को जम्मू एवं कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के भारत सरकार के ऐतिहासिक फैसले के बाद यह राजनयिकों द्वारा कश्मीर की पहली आधिकारिक यात्रा थी। राजनयिकों से मिलने वाले घाटी के राजनेताओं में पूर्व मंत्री सैयद अल्ताफ बुखारी एवं अब्दुल मजीद (दोनों PDP) और शोएब लोन एवं हिलाल शाह (दोनों कांग्रेस) शामिल थे।
शाम को पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, जो कि नजरबंद हैं, ने अपने ट्विटर हैंडल के जरिए घोषणा की कि उन्होंने पार्टी के 8 नेताओं को 'सरकार के साथ बातचीत करने के लिए' पार्टी से निकाल दिया है। जिन 8 नेताओं को PDP से निकाला गया उनके नाम दिलावर मीर, रफी अहमद मीर, ज़फर इकबाल, अब्दुल मजीद, रजा मंज़ूर खान, जावेद हुसैन बेग, कमर हुसैन और अब्दुल रहीम राथेर हैं। इन नेताओं ने मंगलवार को उपराज्यपाल जी. सी. मुर्मू से मुलाकात की थी।
हालांकि, पीडीपी के एक वरिष्ठ नेता एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग ने महबूबा पर निशाना साधते हुए कहा कि उनकी 'भड़काऊ' टिप्पणी कि 'यदि अनुच्छेद 370 को हटाया गया तो घाटी में कोई भी तिरंगा नहीं थामेगा’ के चलते जम्मू एवं कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया गया। बेग ने कहा कि महबूबा को ‘यह बयान नहीं देना चाहिए था।’
बेग ने कहा, ‘यदि जम्मू-कश्मीर को साथ रहना है और यदि हमें अपने हक के लिए बोलना है, तो हमें शालीनता और विनम्रता से बात करनी होगी। हम मोदीजी, गृह मंत्री या एनएसए को धमकी देकर या मजबूर करके कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। भारत के नागरिकों के रूप में, हमें अपनी शिकायतों और अपनी समस्याओं को विनम्रता के साथ रखना चाहिए।’
यह बात सही है कि अनुच्छेद 370 के खत्म होने के बाद घाटी में कोई खून-खराबा नहीं हुआ है और सुरक्षाबलों के हाथों एक भी नागरिक की जान नहीं गई है। बल्कि मैं कहूंगा कि घाटी के नागरिकों ने शांति बनाए रखने में सुरक्षाबलों की तुलना में ज्यादा बड़ी भूमिका अदा की है। आर्टिकिल 370 के हटने के बाद वैसा कुछ नहीं हुआ जिसका डर महबूबा मुफ्ती, फारूख अब्दुल्ला और उमर अबदुल्ला जैसे नेता दिखाते थे कि ‘खून की नदियां बहेंगी’, ‘जम्मू-कश्मीर जल उठेगा’ या ‘घाटी में कोई भारत का झंडा उठाने वाला नहीं बचेगा।’
घाटी के लोगों ने महबूबा मुफ्ती को अपना जवाब दे दिया है। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद अब 5 महीने बीत चुके हैं। सेलफोन और एसएमएस सेवाओं को फिर से शुरू कर दिया गया है। नेताओं को धीरे-धीरे नजरबंदी से रिहा किया जा रहा है। बेहतर होगा कि केंद्र घाटी में इंटरनेट सेवाओं को फिर से शुरू करने का फैसला करे। इंटरनेट सेवाएं रोजमर्रा के जीवन का जरूरी हिस्सा हैं।
छात्रों को पढ़ाई के लिए इंटरनेट की जरूरत होती है, व्यापारियों को व्यापार के लिए इंटरनेट चाहिए होता है, और इसके बिना टूरिस्ट्स को होटल्स की बुकिंग में दिक्कत होती है। व्यापार के नुकसान के कारण सरकार को भी राजस्व में घाटा उठाना पड़ता है। ऐसे में घाटी में इंटरनेट सेवाओं को फिर से शुरू करना वक्त की जरूरत है। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 09 जनवरी 2020 का पूरा एपिसोड