कुमार विश्वास इस सप्ताह के अंत में प्रसारित होनेवाले मेरे शो 'आप की अदालत' में आए और मेरे सवालों का जो उन्होंने जवाब दिया उससे यह साफ हो गया कि आम आदमी पार्टी की लीडरशिप के व्यवहार से वे काफी आहत हैं। उन्होंने बताया कि कैसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार सुशील गुप्ता के खिलाफ उन्होंने प्रचार किया और जनता ने उन्हें हरा दिया लेकिन वही शख्स आम आदमी पार्टी की तरफ से राज्यसभा का टिकट पाने में कामयाब हो गया। कुमार विश्वास ने यह भी बताया कि भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाने के बाद राष्ट्र हित में कैसे उन्होंने केजरीवाल का विरोध किया था। विश्वास ने खुलासा किया कि कैसे पिछले सात महीने से लगातार पार्टी लीडरशिप द्वारा उन्हें साइडलाइन किया जाता रहा।
कुमार विश्वास की बातों को सुनकर यह लगा कि जिन नैतिक मूल्यों और लोकतान्त्रिक आदर्शों की बात करके अरविन्द केजरीवाल ने चुनाव जीता था वे वादे किसी अंधेरे में खो गए। केजरीवाल के साथ इस आंदोलन की अगुवाई करनेवाले अधिकांश साथी पीछे छूट गए और ऐसा लगता है कि कुमार विश्वास इसकी आखिरी कड़ी साबित हो सकते हैं। वाकई कुमार विश्वास को दरकिनार करके गुप्ता एंड गुप्ता को राज्यसभा में भेजने का मतलब है कि अब केजरीवाल के लिए न संबंधों की कोई कद्र है और न राजनैतिक ईमानदारी की। इन दो उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से केजरीवाल को तो राजनैतिक नुकसान होगा ही साथ ही उन सब लोगों को धक्का लगेगा जो केजरीवाल को देश में एक साफ सुथरी वैकल्पिक राजनीति का सिंबल मान रहे थे।(रजत शर्मा)
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