Rajat Sharma Blog: आलोक वर्मा को CBI प्रमुख के पद से क्यों हटाया गया
खड़गे ने वर्मा को हटाए जाने का विरोध किया था और उनका कार्यकाल बढ़ाने की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बहाल किए जाने के 54 घंटे बाद आलोक वर्मा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली एक उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति ने गुरुवार को CBI निदेशक के पद से हटा दिया। अदालत ने वर्मा को बहाल करने के बाद इस मसले को सुलझाने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति पर छोड़ दी थी। इस समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के प्रतिनिधि के रूप में सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज जस्टिस ए. के. सीकरी शामिल थे। खड़गे ने वर्मा को हटाए जाने का विरोध किया था और उनका कार्यकाल बढ़ाने की मांग की थी।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, चयन समिति ने महसूस किया कि कुछ मामलों में, जिनमें आपराधिक जांच भी शामिल थी, एक विस्तृत जांच जरूरी थी।’ ऐसे हालात में आलोक वर्मा का CBI प्रमुख के पद पर बने रहना संभव नहीं था। पिछले 2-3 महीनों में देश की इस प्रमुख जांच एजेंसी में काफी कुछ घटा है। सीबीआई प्रमुख और इसके स्पेशल डायरेक्टर ने एक-दूसरे के खिलाफ रिश्वत लेने के इल्जाम लगाए। दोनों ने एक-दूसरे के मिडिलमैन को ढूंढ़कर उनसे बयान दिलवाए और केस दर्ज करवाए। दोनों के बीच के आरोप-प्रत्यारोप अखबार,टीवी और सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बन गए थे जिससे पिछले कई दशकों में बनी सीबीआई की साख धूमिल हो रही थी।
सरकार के सामने वर्मा और अस्थाना को उनके पदों से हटाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा था। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त ने आरोपों की जांच की और अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा बुधवार को फिर से बहाल किए जाने के तुरंत बाद वर्मा ने कुर्सी पर बैठते ही दनादन ट्रांसफर किए और महत्वपूर्ण पदों पर अपने लोगों को ले आए। साफ तौर पर CBI में एक बार फिर आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर चल पड़ा और इसके बाद सरकार को अपना डंडा चलाना पड़ गया।
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि आलोक वर्मा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों का खिलौना नजर आए। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने वर्मा के पक्ष में लगातार बयानबाजी की, मोदी के घोर विरोधियों, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट में उन्हें बचाने की कोशिश में लगे रहे। इसके साथ ही वे यह भी मांग करते रहे कि CBI को स्वायत्त होना चाहिए। अब सवाल यह उठता है कि जब इसके दो सबसे बड़े अधिकारी राजनीति से प्रेरित माहौल में एक-दूसरे पर ही आरोप लगाने लगें तो ऐसे में CBI कैसे स्वतंत्र और स्वायत्त रह सकती है?
यहां इस बात का भी जिक्र करना जरूरी है कि कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सुप्रीम कोर्ट में आलोक वर्मा के पक्ष में एक याचिका दाखिल की थी। इसलिए वह खुद सेलेक्शन कमिटी में एक इंटेरेस्टेड पार्टी थे। इसके विपरीत चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने, जिन्होंने आलोक वर्मा केस में याचिकाएं सुनी थीं, इसीलिए खुद जाना मुनासिब नहीं समझा और अपनी जगह सेलेक्शन कमिटी की मीटिंग में जस्टिस सीकरी को भेज दिया। (रजत शर्मा)
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