विश्व हिंदू परिषद् से जुड़ी संतों की उच्चस्तरीय समिति ने शुक्रवार को केंद्र सरकार को अल्टीमेटम जारी किया है कि वह अयोध्या में विवादित भूमि पर राम मंदिर निर्माण हेतु 31 जनवरी तक कानून बनाए। संतों का कहना है कि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या में जमीन पर मालिकाना हक को लेकर फैसले का और इंतजार नहीं करना चाहते और मंदिर की आधारशिला रखते हुए इसपर आगे बढ़ना चाहते हैं। संतों ने फैसला किया है कि वे अगले महीने देशभर में रैलियों का आयोजन करेंगे और राज्य की राजधानियों में राज्यपालों को इस संबंध में याचिका सौंपेंगे।
अयोध्या केस की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट 29 अक्टूबर से करेगा। उम्मीद भी है कि इस मामले में तेजी से सुनवाई होगी और फैसला भी जल्दी आ सकता है। दूसरी बात, आठ साल पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ये फैसला तो सुना चुका है कि जिस जमीन पर विवादित ढांचा था वहां पहले भव्य राम मंदिर था। मुगल काल में मंदिर को तोड़कर ही मस्जिद बनाई गई। हाईकोर्ट ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवादित जमीन का बंटवारा भी कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में मामला सिर्फ जमीन पर मालिकाना हक का है।
ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट का फैसला जितनी जल्दी आए उतना अच्छा रहेगा। जहां तक सियासत की बात है तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी इस मुद्दे पर सियासत तो जारी रहेगी। विपक्ष पहले से ही यह आरोप लगा रहा है कि एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के साथ ही अगले साल होनेवाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर राम मंदिर के मु्द्दे को केंद्र में लाया जा रहा है। बीजेपी का रुख इस मुद्दे पर यही रहा कि यह मामला पहले से सुप्रीम कोर्ट में है इसलिए वो चाहकर भी मंदिर पर कोई कानून नहीं ला सकती।
वीएचपी के संतों का तर्क है कि अगर सरकार तीन तलाक पर पाबंदी के लिए अध्यादेश ला सकती है तो फिर विवादित भूमि पर राम मंदिर के निर्माण के लिए कानून क्यों नहीं ला सकती। अगर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बदला जा सकता है तो फिर केंद्र सरकार राम मंदिर के निर्माण के लिए कानून क्यों नहीं बना सकती। (रजत शर्मा)
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