RAJAT SHARMA BLOG: किसी भी सभ्य समाज में मूर्तियों को तोड़ना गलत है
ये मूर्तियां बीते समय के महान नेताओं की हैं। ये उन नेताओं की मूर्तियां हैं जिनके नाम और काम बड़े हैं।
पिछले हफ्ते त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 25 साल से सत्ता पर कायम लेफ्ट को करारी शिकस्त दी जिसके बाद मूर्तियों को तोड़ने का सिलसिला शुरु हो गया। त्रिपुरा में वाम मोर्चा द्वारा लगाई गई लेनिन की मूर्ति को जेसीबी मशीन लगाकर तोड़ दिया गया। इसके दो दिन बाद अति वामपंथी कार्यकर्ताओं ने कोलकाता में बीजेपी के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति को नुकसान पहुंचाया और उस पर कालिख पोत दी। तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन के नेता पेरियार की मूर्ति को क्षतिग्रस्त कर दिया गया जबकि उत्तर प्रदेश के मेरठ में दलित नेता और भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की मूर्ति को तोड़ा गया।
मूर्ति चाहे लेनिन की हो या श्यामा प्रसाद मुखर्जी की। मूर्ति चाहे डॉ अंबेडकर की हो या पेरियार की। मानव समाज में किसी को भी मूर्ति तोड़ने का कोई हक नहीं है। न ये हमारे महान लोकतन्त्र की परंपरा है। इस घटना से पीएम मोदी दुखी हुए और उन्होंने तुरंत इसका संज्ञान लेते हुए सभी राज्यों को एक एडवायजरी जारी की और इस तरह की घटनाओं को क़ड़ाई से रोकने के निर्देश दिए। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस पर कड़ा रूख अपनाया। ये मूर्तियां बीते समय के महान नेताओं की हैं। ये उन नेताओं की मूर्तियां हैं जिनके नाम और काम बड़े हैं। लेकिन मूर्तियों पर राजनीति करने से कैसे बचना है ये समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव से सीखना चाहिए।
छह साल पहले जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीएसपी सुप्रीमो मायावती चुनाव हार गईं तो सबको लगा कि समाजवादी पार्टी के लोग मायावती की मूर्तियों को उखाड़ फेंकेगे। लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने धुर राजनीतिक विरोधी की इन मूर्तियों को बचाया। पिछले महीने लखनऊ में जब बिजनेस समिट हुआ तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन्हीं मूर्तियों को चमकाने आदेश दिया। असल में जो लोग मूर्ति तोड़ते हैं वे लोग यह नहीं समझते कि ऐसी घटनाओं से उन लोगों को मौका मिलता है, जो समाज में तकरार बढ़ाने की फिराक में रहते हैं। (रजत शर्मा)