सवर्णों और अन्य सभी समुदायों के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को केंद्र सरकार की नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में नामांकन में 10 फीसदी आरक्षण प्रदान करनेवाले संविधान संशोधन विधेयक को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट ने सोमवार को मंजूरी दे दी। ये लोग अबतक आरक्षण के लाभ से वंचित थे।
आनेवाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मोदी सरकार के इस कदम का राजनीतिक तौर पर दूरगामी असर होगा। पहली नजर में यह बेहद सोच समझकर लिया गया फैसला है जिसके तहत उन सभी जातियों के आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों को नौकरियों में आरक्षण देना है, जो लोग अभी तक इस दायरे से बाहर थे।
फिर भी सरकार के इस फैसले से दो सवाल उठते हैं। पहला, क्या सरकार इस संविधान संशोधन विधेयक को दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पास करा पाएगी, और सरकार का यह फैसला अदालत में टिक पाएगा? मेरा मानना है कि अधिकांश राजनीतिक दल सरकार के इस कदम का विरोध करने का रिस्क नहीं उठाएंगे, और सरकार इसे दोनों सदनों में पास करने में सफल हो सकती है।
दूसरा सवाल ये है कि इसका राजनीतिक असर क्या होगा? विभिन्न राज्यों में पिछले कई दशक से सवर्ण समाज के लोग आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्णों के लिए आरक्षण की मांग कर रहे थे। यह विधेयक ऐसे लोगों को राहत देने और उनका दिल जीतने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है। (रजत शर्मा)
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