केंद्रीय कैबिनेट ने गुरुवार को भगोड़ा आर्थिक अपराध बिल और राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण बिल को मंजूरी दे दी। इनका उद्देश्य भगोड़ा घोषित हो चुके सभी प्रमुख आर्थिक अपराधियों की संपत्तियों को जब्त करना और मनी लॉन्ड्रिंग एवं वित्तीय घोटालों में शामिल ऑडिटर्स को दंडित करना है। मैं इन्हें मोदी सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के लिए उठाए गए 2 ऐतिहासिक कदम मानता हूं। वित्त मंत्री अरुण जेटली इन दोनों कानूनों, जिन्हें लागू किया जा रहा है, के बारे में बहुत स्पष्ट हैं और उनकी नीयत और उद्देश्यों के बारे में शक नहीं किया जाना चाहिए।
एक बात तो यह है कि नीरव मोदी हों, उनके मामा मेहुल चौकसी हों, विजय माल्या हों या ललित मोदी, कोई ये नहीं मानेगा कि इन्हें भगाने में सरकार का या किसी नेता का हाथ है। इन भगोड़ों ने अपने लालच के चलते धोखाधड़ी का सहारा लिया और पब्लिक सेक्टर बैंकों को बर्बाद करके रख दिया। इन्होंने देश का पैसा खाया और कानूनी खामियों का फायदा उठाकर देश से भाग गए। कानूनी प्रोसेस लंबा होता है, और वर्तमान कानून ऐसे हैं जिनके सहारे बड़े-बड़े घोटालेबाजों के खिलाफ सख्त ऐक्शन जल्दी से नहीं हो सकता। एक बार जब वे देश से बाहर निकल जाएं, तो फिर उन्हें भारत वापस लाना भी बहुत मुश्किल होता है।
इन दो सख्त कानूनों को लागू करने के लिए सरकार की पहल एक स्वागत योग्य कदम है। इस पर विचार विजय माल्या का केस सामने आने के बाद ही शुरू हो गया था। वित्त मंत्री ने इसका एलान बजट में कर दिया गया था। उस वक्त नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के घोटाले का खुलासा नहीं हुआ था और वे देश छोड़कर भागे नहीं थे। लेकिन जब बैंक फ्रॉड के और भी केस आने लगे, तो सरकार ने और भी तेजी से काम किया जिसके नतीजे में ये दो बिल तैयार किए गए हैं। सरकार इन्हें संसद के बजट सत्र में पास कराने की कोशिश करेगी। (रजत शर्मा)
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