Rajat Sharma's Blog: ट्रेनें कर रहीं इंतजार, प्रवासी जाने के लिए बेताब, उन्हें कौन रोक रहा है?
उद्धव ठाकरे की सरकार ने 145 ट्रेनों की मांग की थी और रेलवे ने इन ट्रेनों को तैयार भी रखा, लेकिन महाराष्ट्र सरकार की ओर से तैयारी नहीं थी। ट्रेन में जाने वाले यात्रियों की न तो पूरी लिस्ट तैयार थी और न ही मजदूरों को स्टेशन तक पहुंचाने के लिए बसों के इंतजाम थे।
मंगलवार को अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने आपको मुंबई के विभिन्न स्टेशनों पर खड़ी श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के साथ ही स्टेशन तक पहुंचने के लिए घंटों बसों का इंतजार करते उन प्रवासी मजदूरों के दृश्य दिखाए, जो इन ट्रेनों के जरिए अपने घर लौटने के लिए बेताब थे।
वहां पूरी तरह से बदइंतजामी का आलम था, क्योंकि महाराष्ट्र सरकार इन प्रवासियों को स्पेशल ट्रेनों में भेजने के लिए बसों की उचित व्यवस्था करने में बिल्कुल विफल रही। देर शाम किसी तरह से बसों और टेम्पो को जल्दबाजी में लाया गया और प्रवासियों को स्टेशनों पर भेजा गया। बसों और टेम्पो के अंदर लोगों को भर-भर कर स्टेशन तक पहुंचाया गया।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स ने कुर्ला, लोकमान्य टर्मिनस, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और बांद्रा टर्मिनस से वहां के जमीनी हकीकत की रिपोर्ट भेजी। ये रिपोर्ट राज्य सरकार की ओर से प्लानिंग और मैनेजमेंट में कमी की एक गंभीर तस्वीर पेश करते हैं।
रेलवे ने मंगलवार को महाराष्ट्र के विभिन्न स्टेशनों पर प्रवासियों के लिए 145 स्पेशल ट्रेनों को तैयार रखा था। प्रवासियों को इन ट्रेनों के बारे में जानकारी देने से लेकर संबंधित स्टेशन तक पहुंचाने की व्यवस्था करने में राज्य सरकार की ओर से प्लानिंग का पूरा अभाव था। इसका परिणाम ये हुआ कि हजारों प्रवासी चिलचिलाती धूप में घंटों इंतजार करते रहे और उन्हें इस बात पता भी नहीं था कि किस स्टेशन पर उन्हें पहुंचना है।
अगर ये 145 ट्रेनें तय समय पर चलतीं तो लगभग 2.5 लाख प्रवासी अपने गृह राज्यों के लिए रवाना हो सकते थे। लेकिन यहां राज्य प्रशासन और स्थानीय पुलिस के स्तर पर जबर्दस्त कन्फ्यूजन था।
रेलवे को मुंबई से दोपहर 12.30 बजे तक 74 ट्रेनें रवाना करनी थीं, लेकिन शाम 6 बजे तक केवल 27 ट्रेनें ही रवाना हो सकीं। देर शाम में प्रवासियों को बसों और टेम्पो में भर-भर कर स्टेशनों तक पहुंचाया गया, लेकिन उस समय तक रेलवे का सारा शेड्यूल ही बिगड़ चुका था।
रेलवे का अपना एक विशाल नेटवर्क है जहां नियमित और स्पेशल ट्रेनों के संचालन को मैनेज करने के लिए समयबद्ध तरीके से शेड्यूलिंग की जाती है। यदि 47 ट्रेनें देरी से चल रही हैं, तो इससे ट्रेनों की शेड्यूलिंग पूरी तरह से गड़बड़ हो जाती है और पूरा संचालन अव्यवस्थित हो जाता है।
एक और उदाहरण देखें। महराष्ट्र सरकार ने पश्चिम बंगाल के प्रवासियों को उनके गृह राज्य भेजने के लिए 41 ट्रेनों की मांग की थी, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने फैसला किया कि प्रतिदिन दो या तीन स्पेशल ट्रेनों की ही इजाजत दी जाएगी। इस तरह लाखों बंगाली प्रवासी महाराष्ट्र में फंसे हुए हैं।
रेलवे 1 मई से लेकर अबतक 3,276 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के जरिए करीब 44 लाख प्रवासियों को उनके गृह राज्य पहुंचा चुकी है। महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल, इन दोनों राज्यों को छोड़कर किसी भी अन्य राज्य सरकारों को कोई समस्या नहीं हुई।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सरकार ने 145 ट्रेनों की मांग की थी और रेलवे ने इन ट्रेनों को तैयार भी रखा, लेकिन महाराष्ट्र सरकार की ओर से किसी तरह की तैयारी नहीं थी। ट्रेन में जाने वाले यात्रियों की न तो पूरी लिस्ट तैयार थी और न ही मजदूरों को स्टेशन तक पहुंचाने के लिए बसों के इंतजाम थे।
रेलवे की तरफ से ट्रेनों की जानकारी मिलने के बाद आनन-फानन में आधी रात में पुलिस ने प्रवासियों को फोन और मैसेज करके सुबह कुछ खास जगहों पर इक्ट्ठा होने को कहा जहां से बस के जरिये उन्हें स्टेशन पहुंचाया जाना था। लेकिन किसी भी प्रवासी को यह नहीं पता था कि कौन सी स्पेशल ट्रेन किस स्टेशन से रवाना होगी।
वहीं दूसरी तरफ, स्पेशल ट्रेनें घंटों तक विभिन्न स्टेशनों पर खाली खड़ी रहीं और प्रवासियों के आने का इंतजार करती रहीं। धारावी में हजारों प्रवासी इकट्ठा होकर बसों के आने का इंतजार कर रहे थे। इसी तरह, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के बाहर भी हजारों लोग खड़े थे।
मंगलवार को यूपी के लिए 68 ट्रेनों को रवाना किया गया, 27 ट्रेनें बिहार के लिए, और एक-एक ट्रेन छत्तीसगढ़, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल, उत्तराखंड और राजस्थान के लिए रवाना हुईं। दोपहर 12 बजे तक, यूपी के लिए रवाना होने वाली 18 में से केवल एक ट्रेन ही रवाना हो पाई थी। लोकमान्य तिलक टर्मिनस (कुर्ला) में हजारों प्रवासियों को स्पेशल ट्रेनों में बिठाने के लिए बसों में भरकर लाया गया। पूरा स्टेशन परिसर प्रवासियों से पटा पड़ा था और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की धज्जियां उड़ रही थीं।
बंगाल के प्रवासियों को सबसे ज्यादा परेशानी उठानी पड़ी है। उद्धव ठाकरे की सरकार ने 25 मई को 125 ट्रेनों की मांग की थी लेकिन केवल 41 ट्रेनों के यात्रियों का डेटा ही जमा कर सके। इसमें से केवल 39 ट्रेनें ही रवाना हो सकीं। बंगाल को जानेवाली दो ट्रेनें रद्द कर दी गईं।
मंगलवार को महाराष्ट् सरकार ने 41 ट्रेनों की मांग की लेकिन ममता बनर्जी की सरकार ने मना कर दिया और कहा कि वे अपने राज्य में एक दिन में तीन से ज्यादा ट्रेनों को आने की इजाजत नहीं देंगी। हजारों बंगाली प्रवासी अब ममता बनर्जी और उद्धव ठाकरे को इस बदइंतजामी और अपनी परेशानी के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
प्रवासी मजदूरों की तकलीफ को लेकर खासतौर पर उनके पैदल घर जाने की जद्दोजहद को लेकर सरकार के मंत्रियों से मैं बात करता था। पिछले कुछ हफ्तों में रेल मंत्री पीयूष गोयल से लगातार मेरी बात होती रही है। मैंने उन्हें बार-बार ये समझाने की कोशिश की कि किसी भी तरह से इन मजदूरों को उनके घर जाने का इंतजाम किया जाए, ट्रेनें चलाई जाएं। पीयूष गोयल की हमेशा ये कोशिश रही कि जो राज्य सरकारों की डिमांड है उसे पूरा किया जाए। अपनी ओर से रेल मंत्री ने राज्य सरकारों से मिले स्पेशल ट्रेनों के आग्रह को पूरा करने की भरपूर कोशिश की है।
पीयूष गोयल ने मुझे विशेष ट्रेनों की पूरी लिस्ट, उनके अधिकारियों द्वारा महाराष्ट्र सरकार को भेजे गए रिमाइंडर्स और चिट्ठियों की कॉपी दिखाईं। अब इससे ज्यादा कोई रेल मंत्री और क्या कर सकता है।
ट्रेनों में कितने मजदूर ले जाने हैं?. किस ट्रेन से किन मजदूरों को कहां ले जाना है? इसकी पूरी लिस्ट तैयार करना और मजदूरों को बसों से स्क्रीनिंग के लिए रेलवे स्टेशन तक पहुंचाने का काम राज्य सरकारों का करना है। गंतव्य स्टेशन पहुंचने के बाद वहां क्वॉरन्टीन करने का काम संबंधित राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। रेलवे प्रवासियों के लिए ट्रेन में खाने-पीने का इंतजाम करता है। अधिकांश प्रवासियों का कहना है कि यात्रा के दौरान उनका अनुभव अच्छा रहा है। लेकिन महाराष्ट्र में ऐसी बदइंतजामी क्यों? इस सवाल का जवाब जरूरी है। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 26 मई 2020 का पूरा एपिसोड