Rajat Sharma’s Blog: कोरोना से जुड़ी जरूरी जानकारी छिपाने के लिए चीन को जवाबदेह ठहराए दुनिया
जब दूसरे देशों में वायरस के संक्रमण से लोगों की जान जाने लगी, तब जाकर चीनी अधिकारियों ने WHO के साथ महत्वपूर्ण जानकारी साझा की।
इस समय पूरी दुनिया COVID-19 महामारी से जूझ रही है। भारत में कोरोना वायरस से संक्रमण के मामले बुधवार को 2 लाख के आंकड़े को पार कर गए। इन सबके बीच कुछ और ऐसे सबूत सामने आए हैं जो बताते हैं कि चीन की सरकार ने जानबूझकर ‘तीन अलग-अलग सरकारी प्रयोगशालाओं में इसे पूरी तरह से डिकोड किए जाने के बावजूद एक हफ्ते से भी अधिक समय तक वायरस के जेनेटिक मैप या जीनोम को जारी करने में देरी की थी।’
एसोसिएटेड प्रेस न्यूज एजेंसी के मुताबिक, जिसके रिपोर्टर्स ने चीन में वायरस की उत्पत्ति के बारे में जांच-पड़ताल की, ‘दर्जनों इंटरव्यू और आंतरिक दस्तावेजों के अनुसार, चीन की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के भीतर सूचना और प्रतिस्पर्धा पर सख्त नियंत्रण को काफी हद तक दोष दिया गया था।’
एपी की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘चीनी सरकार की प्रयोगशालाओं ने जीनोम की जानकारी तभी जारी की जब 11 जनवरी को एक वायरोलॉजिस्ट वेबसाइट पर सरकार से पहले इसके बारे में जानकारी दे दी गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा की गई आंतरिक बैठकों की रिकॉर्डिंग के मुताबिक, इसके बाद भी चीन ने रोगियों और मामलों पर जरूरी डीटेल WHO को देने में कम से कम 2 सप्ताह की देरी और की।’
न्यूज एजेंसी के मुताबिक, ‘चीन के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 2 जनवरी को जब एक सरकारी लैब में इस वायरस की पहचान की गई, उस दिन से लेकर 30 जनवरी तक, जब इसे WHO ने वैश्विक आपातकाल घोषित किया, महामारी का प्रकोप 100-200 गुना तक बढ़ गया था।’
कोरोना वायरस असल में कहां पैदा हुआ, इस बात को लेकर पिछले 4 महीनों से कयास लगाए जा रहे हैं। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश जहां चीन में एक स्वतंत्र जांच चाहते थे, चीन की सरकार ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस कदम को बाधित कर दिया। एपी न्यूज एजेंसी ने शुरुआती दिनों के बारे में, जब वुहान में COVID वायरस फैल गया था, एक विस्तृत इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट की है। इससे साफ पता चलता है कि चीन की सरकार ने कैसे अपने ही वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किए गए वायरस के जीनोम की जानकारी जानबूझकर दुनिया के सामने आने से रोके रखी।
रिपोर्ट के मुताबिक, विज़न मेडिकल्स नाम की चीन की एक प्राइवेट लैब ने पिछले साल 27 दिसंबर को अधिकारियों को नए वायरस के बारे में विस्तृत जानकारी दी थी। लैब ने चीनी अस्पतालों से भेजे गए सबसे शुरुआती नमूनों का अध्ययन किया था, और नए वायरस की खोज के बारे में उसी दिन अधिकारियों को बता दिया था। लैब ने बताया था कि नए वायरस का जीन सार्स वायरस के जैसा ही है।
30 दिसंबर को वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में काम करने वाले चीनी वायरोलॉजिस्ट शी झेंगली ने भी नए वायरस की खोज की और उनकी टीम ने 2 जनवरी तक वायरस के जीनोम को डिकोड किया। जब इन वैज्ञानिकों ने दुनिया के साथ इस महत्वपूर्ण जानकारी को साझा करने की मांग की, तो चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन ने इन प्रयोगशालाओं को कॉन्फिडेंशियल मेमो जारी करते हुए कहा कि वायरस से जुड़ी डीटेल को सार्वजनिक न किया जाए।
5 जनवरी को 2 सरकारी प्रयोगशालाओं ने भी वायरस के जीनोम को तैयार कर लिया था, जबकि शंघाई की एक लैब को इसके बारे में पूरी जानकारी मिल गई थी, लेकिन चीनी सरकार ने सख्त तेवर में इन लैब्स से कहा कि जानकारी बाहर नहीं आनी चाहिए। चीन की सरकार ने 7 जनवरी को जाकर माना कि यह एक नया वायरस है। हालांकि, यह वायरस उस समय तक थाईलैंड और जापान में फैल गया था। 11 जनवरी को चीन में कोरोना वायरस के संक्रमण से पहली मौत सामने आई, और तब तक, चीनी अधिकारियों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ वायरस के प्रसार को कमतर करके दिखाया।
चीन ने 31 दिसंबर 2019 को पहली बार दुनिया को बताया था कि न्यूमोनिया के लक्षण वाले एक नए बुखार के बारे में पता चला है और इस वायरस की प्रकृति पता नहीं चल पाई है। हकीकत यह है कि चीनी सरकार झूठ बोल रही थी। चीन की सरकार के पास नए वायरस का विस्तृत जीनोम था, लेकिन इसने जानबूझकर जानकारी को छिपाए रखने का फैसला किया।
एपी की रिपोर्ट में कहा गया है कि नए वायरस का जेनेटिक मैपिंग सीक्वेंस चीन के पास 2 जनवरी को तैयार था, और वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि नया वायरस बेहद घातक है। चीन की तीन प्रयोगशालाओं में जीनोम मैपिंग की गई थी और फिर भी चीनी अधिकारियों ने साफ तौर पर वैज्ञानिकों को बाकी दुनिया से वायरस की हकीकत बताने से मना किया था।
चीन ने जानबूझकर WHO से इन जानकारियों को साझा नहीं किया और वायरस को विभिन्न देशों में फैलने दिया। जब दूसरे देशों में वायरस के संक्रमण से लोगों की जान जाने लगी, तब जाकर चीनी अधिकारियों ने WHO के साथ महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है, WHO के एक्सपर्ट्स ने 6 जनवरी को चीनी अधिकारियों के साथ एक विस्तृत बैठक की थी, लेकिन वायरस और रोगियों के बारे में किसी भी प्रकार का डेटा साझा नहीं किया गया। उस समय भी चीनी अधिकारियों के पास नए वायरस का जीनोम था, लेकिन उन्होंने जानबूझकर साझा नहीं किया।
11 जनवरी को जब एक निजी चीनी लैब ने जीनोम सीक्वेंस को सार्वजनिक किया तब जाकर चीनी सरकार ने नए वायरस के बारे में डीटेल जारी की। यदि चीन ने समय रहते ये सारी जानकारी साझा कर ली होती, तो अन्य देश यात्रा प्रतिबंध लगा सकते थे और वायरस का प्रसार रोक सकते थे। इसके साथ ही टेस्टिंग, एंटी-डोट और वैक्सीन विकसित करने की प्रक्रिया भी पहले शुरू हो सकती थी।
अब मुझे पता चला कि डोनाल्ड ट्रंप ने जब जानबूझकर इसे 'चीनी वायरस' का नाम दिया था, तब वह क्यों सही थे। यदि समय रहते चीनियों ने सूचना साझा कर दी होती, तो दुनिया में 64 लाख से ज्यादा COVID पॉजिटिव केस नहीं होते और 3.78 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती थी। जिन चीनी डॉक्टरों ने दुनिया को नए वायरस के बारे में बताने की कोशिश की, उन्हें बेइज्जत किया गया, फटकारा गया और अंतत: उनमें से कुछ की तो जान भी चली गई।
दुनिया को अब चीन से जवाब मांगना चाहिए। पहला, इसे साफ-साफ बताना होगा कि वायरस असल में कहां पैदा हुआ, और दूसरा, वह ये भी साफ करे कि इसने बाकी दुनिया से इस महत्वपूर्ण जानकारी को जानबूझकर दुनिया के सामने आने से क्यों रोके रखा। चीनी सरकार को इस घातक महामारी को दुनिया भर में फैलाने के लिए जिम्मेदार माना जाना चाहिए। दुनिया को अब चीन के खिलाफ एक सुर में बोलना होगा। अभी नहीं तो कभी नहीं। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 2 जून, 2020 का पूरा एपिसोड