हैदराबाद मक्का मस्जिद ब्लास्ट मामले में 11 साल बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की विशेष अदालत ने सोमवार को स्वामी असीमानंद और चार अन्य आरोपियों को बरी कर दिया। फैसला सुनाते हुए जज ने कहा कि जांच एजेंसी कोई भी आरोप साबित करने में विफल रही है।
भगवा आतंकवाद का मुद्दा यूपीए सरकार के तत्कालीन मंत्रियों पी चिदंबरम और सुशील कुमार शिंदे के द्वारा उठाया गया था। कांग्रेस के इन दोनों वरिष्ठ नेताओं ने देश में 'भगवा आतंकवाद' के उभार का दावा करते हुए आतंकवाद से जुड़े कई सारे मामलों के दस्तावजे दिखाए थे और कोर्ट में इस संबंध में हलफनामा भी दाखिल किया था। यूपीए के शासन के दौरान एक बार तो ऐसी धारणा बन गई कि जैसे कुछ हिंदू कट्टरपंथी संगठनों ने ही मालेगांव ब्लास्ट, अजमेर दरगाह ब्लास्ट और मक्का मस्जिद ब्लास्ट को अंजाम देने में अपनी भूमिका निभाई हो।
कोर्ट के ताजा फैसले और हाल के फैसलों से यह साफ हो गया कि इन मामलों के असली दस्तावेज फाइलों से गायब करवाए गए और 'भगवा आतंकवाद' को साबित करने के लिए फर्जी हलफनामे दाखिल कराए गए थे। कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं ने 'भगवा आतंकवाद' के जुमले का इस्तेमाल भी किया। इससे दुनियाभर में देश की बदनामी हुई। राहुल गांधी तो अमेरिका जाकर ये कह आए कि देश को ISIS से ज्यादा बड़ा खतरा 'भगवा आतंकवाद' से है।
लेकिन अब एक के बाद एक अदालत इन मामलों में फंसे लोगों को बरी कर रही है । कांग्रेस सिर्फ ये कहकर नहीं बच सकती कि अब बीजेपी की सरकार है इसलिए न्यायपालिका ने इस तरह का फैसला दिया। अगर बीजेपी की सरकार की अदालतों पर इतनी चलती तो 2जी केस में सारे आरोपी बरी नहीं हो जाते। 2जी केस में यूपीए के नेता आरोपी थे। ये फैसले अदालत के हैं और उनका सम्मान होना चाहिए। (रजत शर्मा)
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