A
Hindi News भारत राष्ट्रीय Rajat Sharma’s Blog: सुशांत केस- एक तेजतर्रार डीजीपी, सीबीआई और शिवसेना की चिंता

Rajat Sharma’s Blog: सुशांत केस- एक तेजतर्रार डीजीपी, सीबीआई और शिवसेना की चिंता

अगर बिहार पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज नहीं की होती, और उसने अपनी पुलिस को जांच के लिए मुंबई नहीं भेजा होता, तो हो सकता है कि मुंबई पुलिस इस केस को आत्महत्या करार देकर बंद कर देती।

Rajat Sharma Blog, CBI, Rajat Sharma Blog on Sushant Singh Rajput, Rajat Sharma Blog on Sushant- India TV Hindi Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की सीबीआई जांच का आदेश देने के साथ ही अब देश की प्रमुख जांच एजेंसी इस मामले की तहकीकात करने के लिए तैयार है। जस्टिस हृषिकेश रॉय की सिंगल जज बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया, और इस तरह मुंबई पुलिस और बिहार पुलिस के बीच चल रही गंभीर तनातनी का अंत हो गया।

अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में बुधवार की रात मैंने बिहार पुलिस के महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडे का लाइव इंटरव्यू किया और मैंने उनसे पूछा कि वह इस मामले में पर्सनल इंटेरेस्ट क्यों ले रहे हैं। उनका जवाब सिंपल था: सुशांत बिहार का बेटा था। पूरे हिंदुस्तान की शान था। आप देख लीजिए निष्पक्ष भाव से बोल रहा हूं। ये सिर्फ बिहार के 12 करोड़ के आवाम की बात नहीं है। आज कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक और बंगाल से लेकर गुजरात तक किस कदर से लोगों का इमोशन जुड़ गया।’

डीजीपी ने पूरा मामला बताया कि कैसे वह सुशांत की मौत के अगले दिन बिहार के मुख्यमंत्री की ओर से शोक संवेदना लेकर सुशांत के पिता कमल किशोर सिंह से मिलने के लिए गए। गुप्तेश्वर पांडे ने कहा, ‘पहला दिन, जिस दिन मुंबई में ये घटना हुई, यह सूचना जैसे आती है, कौन आदमी है जो वहां गया? पहला आदमी मैं हूं जो वहां मिलने गया था। माननीय मुख्यमंत्री की शोक संवेदना लेकर गया था। मैं उस बूढ़े बीमार, लाचार, हताश आदमी को देख रहा था। मुझे लग रहा था कि कहीं ये आदमी, मैं सुशांत के पिता के बारे में कह रहा हूं, मुझे लगा कि कहीं ये आदमी अब आत्महत्या न कर ले। जिसके जीवन में कोई रोशनी नहीं है, जीने का कोई मकसद नहीं है। पत्नी पहले ही मर चुकी है, बेटियों की शादी हो चुकी है, पूरे परिवार में एक बेटा और एक बाप। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में इसका जिक्र किया है। मैं आधा घंटा बैठा, वह यही बोलते रहे कि मेरा सबकुछ खतम हो गया। अब तो जीने का कोई मतलब नहीं है। ये देख के मेरा कलेजा छलनी हो गया। मैंने सबसे पहले मुंबई पुलिस कमिश्नर को फोन लगाया। उन्होंने फोन नहीं लिया। उस समय तो हमलोग तो यही जानते थे कि यह सूसाइड का मामला है। मैंने फिर से पुलिस कमिश्नर से संपर्क करने की कोशिश की, मैंने खुद को इंट्रोड्यूस किया और पूछा कि सुशांत केस के बारे में जानना चाहता हूं, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया। मेरे मन में उस समय से शक होने लगा।’

मैंने दूसरा सवाल किया कि अगर आपने मोर्चा नहीं खोला होता तो रिया चक्रवर्ती इस तरह से शक के घेरे में नहीं आती, गुप्तेश्वर पांडे ने कहा, ‘शक के घेरे में वह अपनी वजह से है। जब ये घटना होती है तो वह खुद ट्वीट करती है और भारत के गृह मंत्री से ये मांग करती हैं कि इस मामले का सीबीआई अनुसंधान करे। अब बिहार पुलिस जब जाती है, हम विभिन्न सूत्रों और चैनलों के जरिए उनतक सूचना देते हैं कि आप जरा आकर के हमारे पास भी अपनी बात रखिए। हमको बताइये कि आप कैसे निर्देष हैं। आप पर ये-ये आरोप लगे हैं। बार-बार विभिन्न सूत्रों और चैनल के माध्यम से अनुरोध, अनुनय, विनय के बाद भी वो आने से इनकार करती हैं। तो वो खुद सीबीआई की मांग भी करती हैं और जब बिहार सरकार ने सीबीआई के लिए अनुशंसा कर दी और भारत सरकार ने बिहार सरकार की अनुशंसा मान ली तो अब वो सुप्रीम कोर्ट में मूव करती हैं कि नहीं-नही, बिहार पुलिस नहीं, ये मुंबई पुलिस को करना चाहिए।’ 

मैंने बिहार के डीजीपी से पूछा कि क्या सुशांत की मौत के 66 दिन बाद भी सीबीआई रहस्य पर से पर्दा उठा पाने में कामयाब होगी। उन्होंने जवाब दिया, ‘ईमानदारी से अगर बोलूं तो बहुत मुश्किल काम है यह। अगर स्थानीय पुलिस कोऑपरेट न करे तो यह बहुत बड़ा चैलेंज है। यह चैलेंज तो मेरे लिए भी था। मेरे लिए तो यहां एफआईआर करना भी चैलेंज था। मेरे लिए तो टीम बनाना भी चैलेंज था। मेरे लिए तो मुंबई में जाकर इन्वेस्टिगेशन करना भी चैलेंज था। और जब मुंबई पुलिस इसको अदालत में ले गई तो सर्वोच्च न्यायालय से यह फैसला हुआ, यह भी मेरे लिए बहुत बड़ा चैलेंज था। जीवन में इतनी बड़ी चुनौती मैंने कभी नहीं फेस की। तो उनके लिए भी चैलेंज है, सीबीआई के लिए बहुत बड़ा चैलेंज है। बहुत बड़ी चुनौती है, लेकिन चूंकि बहुत प्रोफेशनल एजेंसी है, मुझे पूरा विश्वास है, एक से एक उसमें दक्ष पदाधिकारी हैं, वे बहुत तरीके से अगर लगेंगे, थोड़ी मुश्किल होगी, थोड़ी कठिनाई होगी, लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि सत्य को कहीं से भी निकाल लेंगे, और सत्य प्रकट जरूर होगा।’

जब मैंने बताया कि रिया के वकील सतीश मानशिंदे ने मंगलवार को एक बयान में सुशांत की बहन के खिलाफ आरोप लगाए थे, तो बिहार के पुलिस प्रमुख ने कहा, 'मैं रिया से यह अनुरोध करता हूं कि वह ऐसा न करें। पता नहीं कौन उनको सलाह दे रहा है। इससे उनकी मुश्किलें बढ़ जाएंगी। यह लीगल लड़ाई है, लीगल फ्रेमवर्क में रहकर और लीगल बैटल को लीगल बैटल की तरह कोर्ट में लड़ें। वह कभी न भूलें कि वह केस की नामजद एफआईआर अक्यूज्ड हैं। वह सस्पेक्ट नहीं हैं। तो इस तरह का स्टेटमेंट सोशल मीडिया में दे करके अपनी प्रतिष्ठा बचाने या बढ़ाने से उनको कोई लाभ नहीं होगा। उनपर एक आरोप है, यह लीगल लड़ाई है, वह सीबीआई को कोऑपरेट करें और लीगल लड़ाई को बिल्कुल लीगल तरीके से कोर्ट में लड़ें। बाहर उनकी बात अब कोई सुनने वाला नहीं है क्योंकि अब उनके खिलाफ बहुत तरह के संदेह का घेरा आम पब्लिक में हो गया है, मतलब पब्लिक परसेप्शन उनके खिलाफ है।'

मैंने पांडे से पूछा कि क्या उन्होंने अपने पूरे करियर में सुशांत की मौत जैसा कोई मामला देखा है। उन्होंने जवाब दिया: एक से एक भयंकर स्थितियों को मैंने देखा है, एक से एक जनसंहार देखे हैं। मध्य बिहार में रहा, नक्सल प्रभावित जिलों में एसपी रहा, लेकिन जो ट्वीस्ट, टर्न और मिस्ट्री इस केस में देखी मेरे जीवन का यह पहला अनुभव है। 33-34 साल के अपने करियर में मैंने इतना रहस्यमय केस नहीं देखा। मैं तो जनता का डीजीपी हूं। मैं तो सीधा आदमी हूं, इमोशनल आदमी हूं, गरीब का बेटा हूं, गांव से आता हूं, किसान का बेटा हूं, मुझे तो यहां जनता का डीजीपी बोलते हैं। मैं किसानों के परिवार से हूं, मैं अपने खानदान में पहला आदमी हूं जो स्कूल गया और मैट्रिक पास किया, बीए पास किया और इस नौकरी में आया। मेरे यहां होली में, दशहरा में, दीपावली में कौन आते हैं? आसपास के झुग्गी-झोपड़ी वाले, वही मेरे रिश्तेदार हैं, जिनके साथ मैं होली मनाता हूं, दीवाली मनाता हूं, दशहरा मनाता हूं। निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई पर भरोसा है।’

इस बात में कोई शक नहीं कि बिहार के पुलिस प्रमुख एक नो-नॉनसेंस ऑफिसर हैं और वह जब भी बोलते हैं तो खुलकर बोलते हैं। वह कभी भी तथ्यों को छिपाने की कोशिश नहीं करते। वह अक्सर भावुक हो जाते हैं, लेकिन उनकी भावनाएं एक पुलिस प्रमुख के तौर पर उनके काम के आड़े नहीं आतीं। यह सच है कि वह शुरू से ही इस मामले में व्यक्तिगत रुचि ले रहे थे और उन्होंने सुशांत के परिवार को न्याय दिलाने का वादा किया था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उनका खुश होना लाजिमी है। कुछ लोगों को लगता है कि DGP सियासत कर रहे हैं, लेकिन उनके धाराप्रवाह बोलने और बेहतर ढंग से अपनी बात रखने को राजनीति नहीं समझा जाना चाहिए।

इस केस की जांच सीबीआई को देना इसलिए जरूरी था क्योंकि लोगों को मुंबई पुलिस की नीयत पर शक होने लगा था। जिस तरह से मुंबई पुलिस ने जल्दबाजी में सुशांत की मौत को खुदकुशी करार दे दिया, जिस तरह उसने मामले में FIR दर्ज नहीं की, जिस तरह से मुंबई पुलिस ने बिहार पुलिस को जांच से रोकने की कोशिश की, जैसे बिहार के एक आईपीएस अफसर को आधी रात को क्वॉरन्टीन कर दिया- इन सब बातों से दुनियाभर में लोगों को लगा कि जैसे मुंबई पुलिस पर कोई प्रेशर है, जो कि अपने प्रोफेशनल रवैये के लिए जानी जाती है।

अगर बिहार पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज नहीं की होती, और उसने अपनी पुलिस को जांच के लिए मुंबई नहीं भेजा होता, तो हो सकता है कि मुंबई पुलिस इस केस को आत्महत्या करार देकर बंद कर देती। लोगों को यह शक होने लगा था कि मुंबई पुलिस रिया चक्रवर्ती को बचाने की कोशिश कर रही है। ऐसे भी सवाल उठे कि क्या कोई राजनेता दोषियों को बचाने की कोशिश कर रहा है। एक तरह से सीबीआई जांच मुंबई पुलिस के लिए एक राहत की बात है, क्योंकि इतने सवालों के उठने के बाद यदि उसने सही से भी जांच की होती तो लोगों के मन में शंका रह जाती।

इस मुद्दे के राजनीतिकरण के मसले पर मैं एक बात साफ करना चाहता हूं। सारे राजनेता जानते हैं कि सुशांत की मौत को लेकर सारी दुनिया में इमोशन है और लोग सच्चाई जानना चाहते हैं। जो राजनेता ये कह रहे हैं कि इस मुद्दे पर सियासत नहीं होनी चाहिए, असल में वे सबके सब इस मामले में राजनीति कर रहे हैं। चाहे वह बीजेपी हो, जेडीयू हो, कांग्रेस हो, शिवसेना हो या एनसीपी हो, ये सभी पार्टियां एक अभिनेता की मौत के इस मामले पर राजनीति कर रही हैं।

नारायण राणे और नितेश राणे जैसे राजनेताओं ने इस मामले में खुलकर आदित्य ठाकरे का नाम लिया, और नीतेश राणे ने तो ट्वीट भी किया, ‘अब बेबी पेंगुइन तो गियो! ’। चूंकि आदित्य ठाकरे एक मंत्री हैं, और मुख्यमंत्री के बेटे हैं, इसलिए उन्हें सफाई भी देनी पड़ रही है और मुंबई पुलिस के रुख को इसी से जोड़ कर देखा गया। जब महाराष्ट्र सरकार ने सीबीआई को जांच सौंपने का विरोध किया, तो बीजेपी और जेडी (यू) ने इसका फायदा उठाया और इसे बिहार की प्रतिष्ठा का मुद्दा बना दिया। शिवसेना इसलिए परेशान है क्योंकि आदित्य ठाकरे मुख्यमंत्री के बेटे हैं, और पार्टी नहीं चाहती कि उनकी छवि धूमिल हो। शिवसेना को बीजेपी या जेडी (यू) के बिहार में नफे या नुकसान की बिल्कुल भी चिंता नहीं है। शिवसेना इस बात से चिंतित हैं कि यदि सीबीआई आदित्य ठाकरे को इस मामले में पूछताछ के लिए बुलाती है तो इस मामले को कैसे संभाला जाएगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 19 अगस्त, 2020 का पूरा एपिसोड

Latest India News