उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती है। यादवों, मुसलमानों और दलितों के बीच जातिगत समीकरणों का संयोजन इस गठबंधन को बड़े परिवर्तन की ओर ले जा रहा है, हालांकि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि राजनीति में गणित से ज्यादा केमिस्ट्री मायने रखती है।
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव अच्छी तरह समझ गए हैं कि अगर इस बार चुनाव जीतना है तो बिना बीएसपी को साथ लिए चुनावी सफलता नहीं मिल सकती है। इसलिए वे बीएसपी नेता मायावती की हर शर्त मानने को तैयार हैं। मायावती की जिद के चलते अखिलेश यादव कांग्रेस को गठबंधन से बाहर रखने पर सहमत हुए।
2014 के लोकसभा चुनाव में मायावती की बीएसपी एक भी सीट जीतने में सफल नहीं रही थी, इसके बाद भी अखिलेश बीएसपी को 38 सीटें देने पर सहमत हुए हैं। आप इसे राजनीति मिश्रित रणनीति कह सकते हैं, क्योंकि यही अखिलेश यादव की रणनीति है और यही उनकी राजनीति है। अगर वे ऐसा नहीं करते तो मायावती के साथ गठबंधन संभव नहीं हो पाता।
भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व उत्तर प्रदेश में इस चुनौती की व्यापकता को समझता है, लेकिन कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा रखने के लिए पार्टी के नेता यह कह रहे हैं कि इस गठबंधन की भी ठीक वैसे ही हवा निकल जाएगी जैसे विधानसभा चुनाव के समय अखिलेश और राहुल गांधी गठबंधन की हवा निकल गई थी। अब तो समय ही बताएगा कि यह गठबंधन कितना कामयाब होता है। (रजत शर्मा)
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