मुंबई के बांद्रा में मंगलवार की दोपहर को एक हैरान करने वाला नजारा दिखा, जब लगभग 1500 प्रवासी मजदूर, जिनमें ज्यादातर बंगाल के रहने वाले थे, बांद्रा रेलवे स्टेशन के करीब जामा मस्जिद के पास इकट्ठे हुए। अधिकांश मजदूरों ने बताया कि उन्हें व्हाट्सऐप मैसेज से मालूम हुआ है कि उन्हें उनके गृह राज्य ले जाने के लिए स्पेशल ट्रेन चलाई जाएंगी। कुछ मजदूरों ने कहा कि उन्हें व्हाट्सएप पर जामा मस्जिद के पास इकट्ठा होने के लिए कहा गया था, और कहा गया था कि वहां खाना भी बांटा जाएगा। इससे पता चलता है कि अफवाह फैलाने वाले प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संबोधन खत्म होने के बाद ही अपने काम पर लग गए थे।
AIMIM के पूर्व विधायक वारिस पठान ने ट्विटर पर एक लाइव वीडियोकास्ट शुरू किया जिसमें दिखाया गया कि किस तरह ये प्रवासी मजदूर अपने घर वापस भेजे जाने की मांग कर रहे थे। जल्द ही, स्थानीय कांग्रेस नेता बाबा सिद्दीकी और एक पार्षद रहबर खान मस्जिद में पहुंचे और लॉकडाउन के 3 मई तक बढ़ाए जाने के चलते मजदूरों से अपने घर वापस जाने की गुहार लगाई। सबसे हैरानी की बात यह थी कि मजदूरों में से किसी के पास भी सामान नहीं था। मौके पर पहुंचे इंडिया टीवी के पत्रकारों ने खुलासा किया कि ज्यादातर कामगार पश्चिम बंगाल के मालदा से थे। आम तौर पर, मुंबई से चलने वाली लंबी दूरी की ट्रेनें छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, कुर्ला या दादर से निकलती हैं। बांद्रा से इस तरह की कोई ट्रेन नहीं चलती। पूरा मामले में ही झोल नजर आ रहा था।
गृह मंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से बात की और उनसे कहा कि यदि स्पेशल ट्रेनें चलाई जाती हैं तो लॉकडाउन का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। गृह सचिव ने राज्य के मुख्य सचिव और DGP से भी बात की और आखिरकार भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा। इसके तुरंत बाद राजनेता भी इस ड्रामा का हिस्सा बन गए। मुख्यमंत्री के बेटे आदित्य ठाकरे ने केंद्र सरकार की आलोचना की और प्रवासी मजदूरों को उनके घर जाने की इजाजत देने की मांग की।
मैंने रेल मंत्री पीयूष गोयल से बात की। उन्होंने कहा, लॉकडाउन के कारण ट्रेन सेवाएं रद्द होने से रेलवे को पहले ही रोजाना करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है, लेकिन इसका कोई दूसरा विकल्प नहीं था। उन्होंने कहा कि ट्रेन के डिब्बे में बैठा कोरोना वायरस से संक्रमित एक मजदूर कोच के अंदर बैठे अधिकांश मजदूरों में इसे फैला सकता है। यहां तक कि अगर मजदूर अपने ठिकाने पर पहुंच भी जाते हैं, तो वे वायरस के एक सुपर स्प्रेडर के रूप में अपने गांवों और कस्बों में मौजूद रहेंगे जहां शायद ही डॉक्टर और स्वास्थ्य सेवाएं मौजूद हों। सरकार स्पेशल ट्रेनें चलाकर हजारों लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकती।
इस बात में शक की कोई गुंजाइश ही नहीं है कि कुछ लोगों ने जानबूझकर अफवाह फैलाई जिसके चलते प्रवासी मजदूर बांद्रा पहुंच गए थे। ऐसे लोग सरकारों के प्रति लोगों के अविश्वास का फायदा उठाते हैं और उन्हें भड़काते हैं। सिस्टम के प्रति यह अविश्वास पिछले सात दशकों में आम लोगों के मन में समाया हुआ है। भले ही केंद्र और राज्य सरकारें रोजाना लाखों मजदूरों को खाना खिलाती हों, लेकिन जब सोशल मीडिया पर आधारहीन अफवाहें फैलाई जाती हैं तो अविश्वास की इस भावना को बल मिल जाता है।
यह तुच्छ राजनीति में भी लिप्त होने का समय नहीं है। केंद्र और राज्य, दोनों सरकारों को एकजुट होकर लॉकडाउन लागू करवाना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि गरीब मजदूरों को नियमित तौर पर भोजन मिलता रहे। यह वाकई में बेहद ही मुश्किल वक्त है। एक तरफ सरकारें अस्पतालों, आइसोलेशन वार्डों और क्वारंटाइन सेंटर्स में कोरोना वायरस से लड़ रही हैं, तो दूसरी तरफ उन्हें आधारहीन अफवाहों को भी खत्म करना है और लाखों लोगों का पेट भरना है। यह एक बहुत बड़ा काम है। कुछ भी हो जाए भारत में लॉकडाउन को सफल होना ही होगा। सिर्फ तभी लोग राहत की सांस ले सकते हैं और उद्योगों और व्यवसायों में सामान्य स्थिति बहाल हो सकती है। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 14 अप्रैल 2020 का पूरा एपिसोड
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