सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने एक सख्त आदेश में उत्तर प्रदेश सरकार के उस कानून को रद्द कर दिया जिसके तहत पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला बरकरार रखने की इजाजत दी गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा, 'एक पूर्व मुख्यमंत्री अपने पद से हटने के बाद आम नागरिकों के समान ही होता है न कि वह किसी विशिष्ट श्रेणी का नागरिक, जो अपने पद की वजह से करदाताओं के खर्च पर वेतन, सरकारी बंगला, सुरक्षा और दूसरे विशेष अधिकार उम्रभर प्राप्त कर सकता है।'
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि 'संविधान केवल एक वर्ग के नागरिक और एक आवाज (वोट) की इजाजत देता है।' इस नियम का अपवाद केवल पिछड़ा वर्ग, महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जाति/जनजाति और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा तक सीमित है। कोर्ट ने कहा, नागरिकों के एक अलग वर्ग का सृजन संविधान की प्रकृति के बिल्कुल खिलाफ है। शीर्ष अदालत ने इस याचिका के दायरे में सभी राज्यों को सम्मिलित कर लिया है।
वैसे यह बात अजीब है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों की पूरी जिंदगी के लिए राजधानी में सरकारी बंगले का इंतजाम किया जाए। मैं यहां एक उदाहरण का जिक्र करना चाहता हूं। रामनरेश यादव 1977 से 1979 के बीच करीब दो साल के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। वे 2014 में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बने। बाद में उन्हें मध्यप्रदेश के राज्यपाल का चार्ज भी मिला लेकिन तब तक लखनऊ में उनका सरकारी बंगला था।
रामनरेश यादव भोपाल के राज्यपाल भवन में रहते थे जबकि लखनऊ के सरकारी बंगले में उनका बेटा रहता था। इसी तरह अब मुलायम सिंह और अखिलेश यादव का बंगला अगल-बगल है। मायावती ने तो तीन बंगलों को जोड़कर अपने लिए एक बंगला बनवा लिया था। लखनऊ में पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह और कल्याण सिंह का सरकारी घर है। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इन सारे लोगों को अपने बंगले खाली करने पड़ेंगे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब दूसरे राज्यों को भी इसे लागू करने के बारे में सोचना पड़ेगा। (रजत शर्मा)
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