Rajat Sharma’s Blog: कोरोना काल में स्कूलों के दोबारा खुलने पर मां-बाप और शिक्षक ये सावधानियां बरतें
राज्य सरकारों ने बच्चों की जिम्मेदारी स्कूलों पर डाल दी है, और स्कूलों के मैनेजमेंट ने ये जिम्मेदारी अभिभावकों पर डाल दी है।
भारत के कई राज्यों में लगभग 17 महीने के बाद स्कूल फिर से खुल गए हैं। ज्यादातर छात्र एक बार फिर अपने स्कूल में जाकर और अपने पुराने दोस्तों से मिलकर बेहद खुश नजर आए। हालांकि ज्यादातर अभिभावकों के मन में कोविड-19 को लेकर बैठे डर के कारण स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति काफी कम थी। स्कूलों के प्रबंधन ने सोशल डिस्टैंसिंग, अल्टरनेट सिटिंग अरेंजमेंट, व्यवस्थित लंच ब्रेक, थर्मल स्क्रीनिंग और मास्क पहनने जैसी चीजों को कड़ाई से लागू किया, लेकिन अभिभावक इस बात को लेकर आशंकित थे कि क्या ये उपाय उनके बच्चों को कोरोना वायरस से संक्रमित होने से रोक पाएंगे।
महामारी की संभावित तीसरी लहर को लेकर भी अभिभावकों के मन में सवाल हैं। ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) की एक रिपोर्ट कहती है कि देश में कोरोना की तीसरी लहर आएगी और यह अक्टूबर में अपने पीक पर पहुंच सकती है। ऐसे में कई अभिभावक सवाल उठा रहे हैं कि जब एक महीने बाद तीसरी लहर आनी ही है तो अभी स्कूलों को खोलने की क्या जरूरत थी। वहीं, आईआईटी कानपुर की एक अन्य रिसर्च में कहा गया है कि फिलहाल तीसरी लहर आने की कोई संभावना नहीं है।
अब बच्चों के माता-पिता पसोपेश में हैं कि आखिर किसके दावे पर यकीन करें। लोग इस बात को लेकर डरे हुए हैं कि अगर तीसरी लहर आई और उसका असर बच्चों पर हुआ तो उन्हें कैसे बचाएंगे। अमेरिका से खबरें आईं है कि वहां तीसरी लहर में बच्चे बड़ी संख्या में कोरोना वायरस का शिकार हो गए हैं। बच्चों की कोरोना वैक्सीन को लेकर भी अनिश्चितताएं हैं, और उसका आना भी अभी बाकी है। अभिभावक इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि बच्चों को वैक्सीन की 2 डोज लगवाने के बाद ही स्कूल भेजें या बगैर वैक्सीन लगाए ही स्कूल भेजना शुरू करें।
राज्य सरकारों ने बच्चों की जिम्मेदारी स्कूलों पर डाल दी है, और स्कूलों के मैनेजमेंट ने ये जिम्मेदारी अभिभावकों पर डाल दी है। आज देश भर के परिवारों में इस बात को लेकर असमंजस है कि बच्चों को स्कूल भेजा जाए या फिर घर पर ही ऑनलाइन पढ़ाई करवाई जाए और हालात के ठीक होने का इंतजार किया जाए।
1 सितंबर को दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु के स्कूल सख्त एसओपी (standard operating protocol) दिशानिर्देशों के तहत फिर से खुल गए, लेकिन छात्रों की उपस्थिति काफी कम थी। ज्यादातर लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजने का फैसला किया। जहां तक बच्चों का सवाल है, तो वे डेढ़ साल से भी ज्यादा समय के बाद स्कूल लौट कर अपने पुराने दोस्तों से मिलने पर बेहद खुश नज़र आए।
मुझे बहुत से लोग मिले, जो अपने बच्चों को लेकर परेशान हैं। उन्होंने मुझे बताया कि पिछले 17 महीनों के दौरान घर में रहने से बच्चों का सामाजिक विकास रुक गया है और उनके सामाजिक आचरण में काफी बदलाव आया है। घर में ऑनलाइन क्लासेज हो रही हैं, बाहर खेलना-कूदना बंद है, इसलिए वे सिर्फ टीवी और मोबाइल पर अपना ज्यादा वक्त बिताते हैं। छोटे छोटे बच्चे अपना ज्यादातर समय मोबाइल फोन और लैपटॉप पर लगाते हैं, इसके कारण उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। छोटे बच्चे बोलना नहीं सीख पा रहे हैं और उनकी स्पीच थेरेपी करानी पड़ रही है। आजकल के टीनेजर्स काफी जल्दी गुस्सा हो जाते हैं और बाहरी दुनिया के संपर्क में न आने के कारण वे चिड़चिड़े हो गए हैं।
बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में मैंने AIIMS के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया का इंटरव्यू लिया और उनसे महामारी की तीसरी लहर की संभावना के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि तीसरी लहर की संभावना अभी भी मौजूद है क्योंकि भारत में अधिकांश लोगों को अभी भी वैक्सीन लगनी बाकी है, इसके कारण बड़ी संख्या में लोगों के शरीर में एंटीबॉडी नहीं बन पाए हैं। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि अगर तीसरी लहर आती है तो हो सकता है कि कोरोना के मामलों में इजाफा हो, लेकिन दूसरी लहर की तुलना में इस बार अस्पताल में भर्ती होने वालों और जान गंवाने वालों की संख्या में कमी देखने को मिल सकती है।
डॉ. गुलेरिया ने कहा कि अब तक किए गए सीरो सर्वे के मुताबिक, ज्यादातर लोगों ने वैक्सीन की एक डोज ले ली है, और अगर तीसरी लहर आती है तो गंभीर बीमारी के बहुत ज्यादा मामले सामने नहीं आएंगे। उन्होंने बताया कि आमतौर पर कोविड की वैक्सीन गंभीर बीमारी, अस्पताल में भर्ती होने और मौतों से सुरक्षा प्रदान करती हैं। उन्होंने कहा, ICMR मॉडलिंग डेटा में अक्टूबर से जनवरी तक तीसरी लहर की रेंज दिखाई गई है, जबकि अन्य मॉडलिंग डेटा में कई वेरिएबल्स के आधार पर दूसरे निष्कर्ष सामने आए, हम ये नहीं जानते कि ये वेरिएबल्स क्या हैं।
AIIMS डायरेक्टर ने मुझे बताया कि काफी कुछ कोरोना वायरस पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा, ' अगर ये वायरस अन्य वेरिएंट्स में बदल जाता है और फिर फैलता है, तो निश्चित रूप से मामलों की संख्या में वृद्धि होगी। यह बड़े पैमाने पर लोगों के व्यवहार पर भी निर्भर करता है। अगर भारत में लोग आने वाले त्योहारों के महीनों में कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन करते हैं, तो हो सकता है कि तीसरी लहर या तो बिल्कुल न आए या अगर आती भी है तो यह घातक नहीं होगी।'
जब मैंने पूछा कि क्या संभावित तीसरी लहर बच्चों को ज्यादा प्रभावित कर सकती है, डॉ. गुलेरिया ने कहा, ‘तीसरी लहर की चपेट में बच्चों के ज्यादा आने की बात इसलिए कही जा रही थी क्योंकि अब तक किसी भी बच्चे का वैक्सीनेशन नहीं हो पाया है। अगर हम भारत, यूरोप और ब्रिटेन में दूसरी लहर के आंकड़ों पर गौर करें तो हम पाएंगे कि बहुत कम बच्चे इस वायरस से प्रभावित हुए थे और उनमें गंभीर रूप से बीमार होने के मामले बहुत कम थे।’
डॉ. गुलेरिया ने कहा, ‘कोविड की चपेट में आने वाले स्वस्थ बच्चों को आमतौर पर हल्के संक्रमण का सामना करना पड़ा। इसके अलावा ICMR सीरो सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि 55 से 60 फीसदी बच्चों में पहले से ही वायरस के खिलाफ मजबूत एंटीबॉडी विकसित हो चुकी है। इसका मतलब है कि आधे से भी ज्यादा बच्चे पहले ही कोरोना से संक्रमित हो चुके थे और उनके शरीर में एंटीबॉडी बन गई है । इसलिए कुल मिलाकर अब हम कह सकते हैं कि काफी संख्य़ा में बच्चों में एंटीबॉडी विकसित हो चुकी है। ऐसे में अगर तीसरी लहर आती भी है तो हो सकता है कि बच्चे गंभीर रूप से बीमार न हों और उन्हें हल्के संक्रमण का ही सामना करना पड़े।’
जब मैंने पूछा कि क्या मां-बाप को अभी अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहिए या नहीं, एम्स निदेशक ने कहा, ‘ मां-बाप अपने बच्चों को उन राज्यों के स्कूलों में भेज सकते हैं जहां पॉजिटिविटी रेट कम है, जैसे कि दिल्ली में। फिर भी छात्रों को स्कूलों में कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन करना चाहिए, और शिक्षकों एवं स्कूल के सभी कर्मचारियों को वैक्सीन लगवा लेनी चाहिए।’
डॉ. गुलेरिया ने कहा, ‘स्कूलों को 50 पर्सेंट अटेंडेंस के साथ या अलग-अलग शिफ्ट में शुरू करना चाहिए, और छात्रों को हैंड सैनिटाइजर समेत कोरोना से बचाव के लिए अन्य चीजें देनी चाहिए। स्कूल उन्हीं इलाकों में खोले जाने चाहिए, जहां पॉजिटिविटी रेट कम है। इसकी लगातार मॉनिटरिंग की जानी चाहिए और पॉजिटिविटी रेट में बढ़ोत्तरी पाए जाने पर स्कूलों को बंद भी किया जाना चाहिए । स्कूल खोलने का मतलब यह नहीं है कि हम उन्हें स्थायी रूप से खोल रहे हैं, इसके पीछे जोखिम और फायदे वाली एनालिसिस है। हमें स्कूलों को केवल कम पॉजिटिविटी रेट वाले इलाकों में खोलने की इजाजत देनी चाहिए, और वह भी कड़ी निगरानी और कोविड उपयुक्त व्यवहार का पूरी तरह पालन करते हुए।’
जब मैंने बताया कि अमेरिका में महामारी फिर से फैल गई है और पिछले 15 दिनों के दौरान रोजाना 2 लाख मामले सामने आ रहे हैं, और बच्चे भी बड़े पैमाने पर संक्रमित हो रहे हैं, तो AIIMS डायरेक्टर ने कहा: 'यह सच है कि अमेरिका में अब डेल्टा वेरिएंट के मामले बढ़ रहे हैं। अमेरिका में कुछ राज्य ऐसे भी थे जहां कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन नहीं किया जा रहा था, लोगों ने मास्क पहनना बंद कर दिया था और वे पार्टियों में जाने लगे थे। हमें इन देशों से सीखना चाहिए और जो गलतियां वहां की गई हैं, उनसे बचना चाहिए।'
बच्चों के वैक्सीनेशन पर डॉ. गुलेरिया ने कहा, 'अगर हम सभी बच्चों के वैक्सीनेशन का इंतजार करते रहे, तो हम अगले साल तक स्कूल नहीं खोल पाएंगे। उस समय भी अगर कोई नया वेरिएंट सामने आ जाता है तो बच्चों को बूस्टर डोज देने को लेकर सवाल उठने लगेंगे। यदि हम वैक्सीन और नए वेरिएंट्स की राह देखते रहे तो स्कूलों को लंबे समय तक नहीं खोल पाएंगे।'
उन्होंने कहा, '12 साल और उससे ज्यादा की उम्र के बच्चों के लिए पहले से ही ZyCov-D वैक्सीन को मंजूरी दी जा चुकी है। इसी तरह, भारत बायोटेक का टीनेजर्स पर कोवैक्सिन का ट्रायल पहले ही पूरा हो चुका है और उसका विश्लेषण जारी है। एक बार ये टीके आने के बाद, 12 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के बच्चों को टीका लगाया जा सकता है। यहां तक कि अमेरिका की फाइजर कंपनी का टीका भी भारत में बच्चों को दिया जा सकता है। इसलिए, इस समय भारत के कई राज्यों में स्कूलों को फिर से खोलने से जोखिम कम है, और फायदा ज्यादा है। हम स्कूलों के फिर से खुलने के लिए अनंतकाल तक इंतजार नहीं कर सकते।'
डॉ. गुलेरिया ने अपने इंटरव्यू में जो कुछ कहा है, उसे भारत में स्कूल जाने वाले बच्चों के मां-बाप को ध्यान से सुनना चाहिए। पहला, स्कूलों को केवल उन्हीं इलाकों में फिर से खोला जाना चाहिए जहां पॉजिटिविटी रेट बहुत कम है, दूसरा, सभी स्कूलों को कोविड उपयुक्त व्यवहार का सख्ती से पालन करना चाहिए, और तीसरा, यदि स्कूल कड़ी देखरेख में कम पॉजिटिविटी रेट वाले इलाकों में फिर से खोले जाते हैं तो रिस्क कम है और फायदा ज्यादा है।
डॉ. गुलेरिया ने सही कहा कि हम स्कूलों के फिर से खुलने के लिए अनंतकाल तक इंतजार नहीं कर सकते। टीनेजर्स के लिए वैक्सीन पहले ही बनाई जा रही है, और स्कूल अब सख्त कोविड उपयुक्त व्यवहार और कड़ी निगरानी का पालन करते हुए शुरू हो सकते हैं। बच्चों को उनके व्यक्तित्व विकास के लिए स्कूलों में भेजना जरूरी है, लेकिन माता-पिता को भी उन पर निगरानी बनाए रखनी चाहिए। स्कूलों में जहां बच्चों को मास्क पहनना चाहिए, भीड़-भाड़ से बचना चाहिए और बार-बार हाथ धोने चाहिए, वहीं शिक्षकों और स्कूल के कर्मचारियों को वैक्सीन लगवा लेनी चाहिए। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 01 सितंबर, 2021 का पूरा एपिसोड