Rajat Sharma's Blog: बलात्कारी हत्यारों के प्रति दया की कोई गुंजाइश नहीं, उन्हें तत्काल फांसी होनी चाहिए
ऐसे दोषियों को दया याचिका दाखिल करने की इजाजत देने का प्रावधान बंद कर दिया जाना चाहिए और यदि अदालतें ऐसे अपराधियों को दोषी ठहराती हैं, तो उन्हें बिना किसी देरी के तुरंत फांसी दी जानी चाहिए।
हैदराबाद में 27 वर्षीय वेटरिनरी डॉक्टर (पशु चिकित्सक) की गैंगरेप के बाद जघन्य हत्या से आम लोगों का गुस्सा सोमवार को फूट पड़ा और देशभर में लोगों ने इसके विरोध में प्रदर्शन किया। वेटरिनरी डॉक्टर का जला हुआ शव 28 नवंबर की सुबह बरामद हुआ था। इस घटना की नाराजगी संसद में भी दिखाई दी जब संसद के सदस्यों ने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर ऐसे बलात्कारियों से निपटने के लिए कानून में सख्त प्रावधान की मांग की। जया बच्चन समेत कई सांसदों ने इस तरह की घटना के दोषियों की पब्लिक लिंचिंग और कैस्ट्रेशन (बधिया करना, नपुंसक बनाना) की बात कही। राज्य सभा के सभापति एम. वेंकैय्या नायडू ने सुझाव दिया कि ऐसे दोषियों को दया याचिका दाखिल करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए और कम से कम समय में इन्हें फांसी दी जानी चाहिए।
राज्यसभा के सभापति ने कहा, 'नए बिल की जरूरत नहीं है, जो जरूरी है वो है राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक कौशल और मानसिकता में बदलाव। फिर इस सामाजिक बुराई को खत्म किया जा सकता है।' मैं वेंकैय्या नायडू के इस दृष्टिकोण से पूरी तरह से सहमत हूं कि ऐसे दोषियों को दया याचिका दाखिल करने की इजाजत देने का प्रावधान बंद कर दिया जाना चाहिए और यदि अदालतें ऐसे अपराधियों को दोषी ठहराती हैं, तो उन्हें बिना किसी देरी के, बगैर और किसी सुनवाई के तुरंत फांसी दी जानी चाहिए।
देश की महिलाओं के मन में कितना गुस्सा और भय व्याप्त है इसका अंदाजा आप और हम नहीं लगा सकते। मैं जहां कहीं भी जाता हूं, खासतौर से लड़कियां मुझसे महिला सुरक्षा पर सवाल जरूर पूछती हैं। वे मुझसे पूछती हैं- 'सरकार हमारी सुरक्षा के लिए क्या कर रही है?'
जब भी इस तरह की कोई घिनौनी और भयावह घटना होती है तो बड़े पैमाने पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ता है, लोग सड़कों पर उतरते हैं...महिलाएं अपना गुस्सा जाहिर करती है और अपना दर्द बयां करती हैं। वर्ष 2012 में हुये निर्भया गैंगरेप के बाद ऐसा ही हुआ था। उस समय भी बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, बलात्कार और यौन उत्पीड़न से संबंधित कानूनों में बदलाव हुए। दिवंगत जस्टिस जेएस वर्मा की सिफारिशों पर कानून में कठोर प्रावधान किए गए, विशेष फास्ट ट्रैक अदालतें स्थापित की गईं, सजाएं भी दी गईं लेकिन जब घटना के सात साल बाद तक दोषियों को फांसी नहीं हो पाई तो लोगों और खासतौर से महिलाओं के अंदर सवाल और संदेह तो खड़े होंगे ही।
ऐसी स्थिति में लोग उत्तर कोरिया, यूएई, सऊदी अरब और चीन का उदाहरण देकर वहां की तरह भारत में भी कठोर कानून लागू करने की मांग करते हैं। लोग यहां तक मांग करते हैं कि बलात्कारियों को भीड़ को सौंप देना चाहिए, कोई कहता है चौराहे पर लटका देना चाहिए, कोई कहता है ऐसे लोगों को नंपुसक बना देना चाहिए। इस तरह की मांगें नहीं उठतीं अगर कानून को लागू करनेवाली एजेंसियां अपना काम तेजी से कर रही होतीं।
जब तक दोषियों को दया याचिका के माध्यम से या नाबालिग होने के आधार पर छूट मिलती रहेगी और कानूनी दलीलों का सहारा मिलता रहेगा, तब तक समाज ऐसे बलात्कारियों के मन में भय कैसे पैदा कर सकता है? इसलिए अब यह तय करने का सही समय है कि इस घटना के बाद कम से कम कानून में इतना बदलाव तो होना चाहिए कि इस तरह का अपराध करने वालों के लिए दया याचिका का प्रावधान खत्म किया जाए। अगर अदालत उन्हें मौत की सजा देती है तो ऐसे दोषियों को बिना देर किए, बिना किसी दया भावना के तुरंत फांसी पर लटकाया जाना चाहिए। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 2 दिसंबर 2019 का पूरा एपिसोड