Rajat Sharma’s Blog: रैलियों को संबोधित करने से नेताओं को रोकना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है
अखिलेश को रोकने का कारण यह बताया गया कि प्रयागराज में छात्रों के साथ उनकी बैठक कानून व्यवस्था की समस्या पैदा कर सकती थी।
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को पुलिस ने मंगलवार को प्रयागराज जाने से रोक दिया। इसके बाद समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता बेकाबू हो गए और उन्होंने उत्तर प्रदेश के कई शहरों में जमकर हंगामा किया। अखिलेश प्रयागराज में अपने छात्र संगठन के समर्थकों को संबोधित करने वाले थे, लेकिन उन्हें लखनऊ एयरपोर्ट पर प्लेन में नहीं चढ़ने दिया गया। अखिलेश को रोकने का कारण यह बताया गया कि प्रयागराज में छात्रों के साथ उनकी बैठक कानून व्यवस्था की समस्या पैदा कर सकती थी।
यह सही है कि अखिलेश यादव को जनसभा संबोधित करने से रोके जाने को कोई उचित नहीं ठहरा सकता। वह एक जननेता हैं। विडंबना यह है कि जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पश्चिम बंगाल में भाजपा की एक रैली को संबोधित करने से ममता बनर्जी के प्रशासन ने रोका था, तो योगी ने ममता की सरकार पर तानाशाही का इल्जाम लगाया था। इसी तरह ममता बनर्जी को भी यह कहने का कोई हक नहीं है कि विरोधी दलों के नेताओं को जनसभाएं संबोधित करने से रोका जा रहा है। 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी योगी आदित्यनाथ को प्रयागराज में एक सभा को संबोधित करने के लिए जाने से रोका था।
मैं तो कहूंगा कि नेताओं को रैलियां संबोधित करने से रोकेने के ये तीनों मामले लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं हैं। लोकतंत्र में विपक्ष और असंतोष के अधिकार की काफी अहमियत है। जनसभाओं को संबोधित करना प्रत्येक राजनीतिक दल और नेता का लोकतांत्रिक अधिकार है। कानून व्यवस्था सुनिश्चित करना पुलिस और प्रशासन की जिम्मेदारी जरूर है, लेकिन अगर इसका हवाला देकर राजनीतिक सभाओं को रोका जाता है तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छी बात नहीं है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस पार्टी की सरकार है, या वह किस विचारधारा का पालन करती है, सभी राजनीतिक दलों को जनता पर भरोसा करना ही चाहिए। आखिरकार यह जनता ही है जो सुनती तो सबकी है, लेकिन चुनती उसी को है जो उसके हित के लिए काम करता है। (रजत शर्मा)
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