Rajat Sharma Blog: पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन कोई समाधान नहीं है
यह साफ है कि ममता बनर्जी ने यह राजनीतिक शैली वाम मोर्चे से सीखी है। वाम दलों के समर्थक अपनी पार्टी के शासन के दौरान तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाते थे।
पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनावों के दौरान और उसके बाद भी भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों के बीच हिंसक झड़पें खतरनाक तरीके से बदस्तूर जारी हैं। बशीरहाट में हुए एक खूनी संघर्ष में टीएमसी के एक और बीजेपी के 3 समर्थकों की हत्या के बाद अन्य जिलों में भी इस तरह की झड़पें हुई हैं। बीती रात कूचबिहार के माथाभांगा में तृणमूल के एक स्थानीय नेता पर हमले के बाद बीजेपी समर्थकों की मोटरसाइकिलों में आग लगा दी गई।
सूबे के राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी ने सोमवार को मौजूदा स्थिति से अवगत कराने के लिए दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। बीजेपी के कई नेताओं ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है, लेकिन केंद्र ममता बनर्जी को किसी भी तरह का राजनीतिक लाभ नहीं देना चाहता। सोमवार की रात ‘आज की बात’ शो में हमने कई इलाकों के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया था कि कैसे वहां मोदी को वोट देने वाले मतदाताओं को TMC के कार्यकर्ता अपना निशाना बना रहे हैं। राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ता बीजेपी के प्रति झुकाव रखने वाले वोटरों को सबक सिखाने और उनके मन में आतंक पैदा करने में लगे हुए हैं। यह सूबे में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर किया जा रहा है।
यह साफ है कि ममता बनर्जी ने यह राजनीतिक शैली वाम मोर्चे से सीखी है। वाम दलों के समर्थक अपनी पार्टी के शासन के दौरान तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाते थे। ममता बनर्जी ने तब राष्ट्रपति शासन की मांग की थी, लेकिन जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, तो उन्होंने NDA सरकार से इस्तीफा दे दिया। 5 साल बाद बंगाल के लोगों ने खुद वाम दलों को सत्ता से बाहर कर दिया और ममता की पार्टी को सूबे की कमान सौंप दी।
दुर्भाग्य की बात है कि वही ममता बनर्जी अब बीजेपी के खिलाफ हिंसक तरीकों का इस्तेमाल कर रही हैं। बीजेपी ने पिछले महीने 18 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। स्वाभाविक रूप से तृणमूल कांग्रेस की मुखिया को यह आशंका सता रही है कि कहीं उनकी सरकार का अंजाम भी वाम मोर्चे जैसा न हो जाए। ममता और उनकी पार्टी के कार्यकर्ता लोगों की आवाज फिलहाल भले ही दबा दें, लेकिन यह जनता ही है जो अंत में फैसला सुनाती है। ममता बनर्जी को मालूम होना चाहिए कि जनता की चुप्पी का मतलब कमजोरी नहीं है। यह एक भयानक राजनीतिक भूल होगी।
जहां तक राष्ट्रपति शासन लगाने का सवाल है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा कभी नहीं करेंगे। मोदी एक चतुर राजनेता हैं और वह ममता को कभी भी केंद्र पर हावी होने का मौका नहीं देंगे। इसके अलावा अभी विरोधी दलों के पास बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने का कोई मुद्दा नहीं हैं, लेकिन अगर बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है तो उन्हें एक नई ताकत मिलेगी। इससे विपक्षी दलों को एकजुट होने का मौका मिल सकता है। नरेंद्र मोदी विरोधी दलों या ममता बनर्जी को ऐसा कोई मौका नहीं देंगे। (रजत शर्मा)
देखें, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 10 जून 2019 का पूरा एपिसोड