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RAJAT SHARMA BLOG: लालू प्रसाद की बीमारी को लेकर राजनीति

इसमें कोई दो मत नहीं कि लालू प्रसाद बीमार हैं और उन्हें अच्छा इलाज मिलना चाहिए। रांची में उनकी तबीयत खराब हुई तो उन्हें बेहतर इलाज के लिए एम्स दिल्ली भेजा गया। अब एम्स के डॉक्टरों का....

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सोमवार को दिल्ली के एम्स अस्पताल में उस समय काफी ड्रामा हुआ जब राष्ट्रीय जनता दल  के सुप्रीमो लालू प्रसाद को डॉक्टरों ने डिस्चार्ज कर दिया और उन्हें राजधानी एक्सप्रेस से रांची ले जाने की तैयारी शुरू हो गई। लालू प्रसाद इन दिनों चारा घोटाले के मामले में जेल की सजा काट रहे हैं। लालू प्रसाद ने आरोप लगाया कि यह सब उनके खिलाफ की जा रही 'साजिश' का हिस्सा है। आरजेडी  के कुछ कार्यकर्ताओं ने एम्स में विरोध जताते और हुड़दंग भी मचाया। पुलिस ने इस मामले में केस दर्ज कर लिया है। लालू प्रसाद को कड़ी सुरक्षा के बीच रांची ले जाया गया।
 
इसमें कोई दो मत नहीं कि लालू प्रसाद बीमार हैं और उन्हें अच्छा इलाज मिलना चाहिए। रांची में उनकी तबीयत खराब हुई तो उन्हें बेहतर इलाज के लिए एम्स दिल्ली भेजा गया। अब एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि लालू का स्वास्थ्य बेहतर है और उन्हें एम्स में रखने की जरूरत नहीं है। उन्हें वापस भेजा जा सकता है। एम्स मेडिकल टीम की राय पर यकीन करना चाहिए क्योंकि यहां के डॉक्टर बहुत जिम्मेदार हैं। उन्होंने लालू का अच्छा इलाज किया है और वो किसी के दबाव में आकर फैसला नहीं लेते।
 
हालांकि इस पूरे मामले पर सियासत उस समय शुरू हुई जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सोमवार को लालू प्रसाद से मिलने पहुंचे। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और जेडीयू नेता केसी त्यागी ने यूपीए शासन के दौरान 2013 में राहुल गांधी द्वारा अध्यादेश की प्रति सार्वजनिक रूप से फाड़े जाने की घटना की याद दिलाई। यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को बेअसर करने के लिए था जिसके तहत कोर्ट से दोषी करार दिए गए सांसद या विधायक के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई गई थी। इस अध्यादेश के तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बेअसर कर यह व्यवस्था की गई थी कि अगर दोषी सांसद या विधायक तीन महीने के अंदर ऊपरी अदालत में अपील करता है तो उसे चुनाव लड़ने की छूट मिल जाएगी। दरअसल यह पूरी कवायद लालू प्रसाद को चारा घोटाले में हुई सजा से राहत दिलाऩे के लिए की गई थी। अगर यह पास हो जाता तो निचली अदालत से सजा होने के बाद भी लालू प्रसाद के चुनाव लड़ने पर पाबंदी नहीं होती। लेकिन राहुल गांधी ने इस अध्यादेश के ड्राफ्ट को पूरी तरस से 'बकवास' बताया और सार्वजनिक तौर पर इसे फाड़ दिया था। उस समय डॉ. मनमोहन सिंह की कैबिनेट ने इस अध्यादेश को तुरंत वापस ले लिया था।
 
2013 में हुए इस पूरे ड्रामे के पीछे जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश की गई कि राहुल गांधी भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं और वे नहीं चाहते हैं कि लालू प्रसाद जैसे दोषी सांसद चुनाव लड़ें। यह पूरी कवायद 2014 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर की जा रही थी। लेकिन इसके पीछे की हकीकत का खुलासा उस वक्त के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कर दिया। प्रणब मुखर्जी ने बताया कि उन्होंने अध्यादेश को पहले ही नामंजूर कर दिया था। राहुल को अध्यादेश फाड़ने की कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि वो पहले ही रिजेक्ट हो चुका था। चूंकि उस वक्त लोगों को पता नहीं था तो ये संदेश गया कि राहुल गांधी लालू प्रसाद के भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं।
 
अब समय बदल गया है। चूंकि लालू प्रसाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विरोधी मोर्चे के संस्थापक सदस्य हैं और राहुल गांधी भी उसी मोर्चे के सदस्य हैं। इसीलिए अब उन्होंने अपना ट्रैक बदला और लालू प्रसाद से मिलने अस्पताल चले गए। (रजत शर्मा)

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