प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के सभी सांसद संसद का बजट सत्र पूरी तरह से धुल जाने के विरोध में आज एक दिन के उपवास पर हैं। बजट सत्र के दौरान कुछ मुट्ठीभर सांसदों ने हर रोज़ दोनों सदनों के कामकाज को रोका और किसी तरह की बहस या कोई भी विधायी कार्य नहीं होने दिया। इस तरह इन मुट्ठी भर सांसदों ने दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले लोकतंत्र की संसद को ठप किया।
बीजेपी ने संसद में विरोधी दलों के हंगामे के खिलाफ 12 अप्रैल को देशभर में प्रदर्शन और उपवास करने का ऐलान किया। ये ऐलान 6 अप्रैल को बजट सेशन खत्म होने के तुंरत बाद ही कर दिया गया था। संसद के पूरे सत्र में कोई काम नहीं हुआ और ये जनता के पैसे की बर्बादी है। साथ ही यह हमारे लोकतंत्र के बेहद बुनियादी सिद्धांतों को कमजोर करता है।
लेकिन मुझे नहीं लगता कि इस उपवास का या विरोध प्रदर्शन का कोई असर उन सांसदों पर होगा जिन्होंने संसद की कार्यवाही को ठप किया। जब हम दूसरे बड़े लोकतान्त्रिक देशों की संसदीय कार्यवाही को देखते हैं तो हमें दुख होता है कि हमारे यहां संसद में उस तरह की जीवंत बहस क्यों नहीं होती।
संसद वाद-विवाद के लिए, अलग-अलग लोगों और पक्षों की राय जानने के लिए और लोगों की समस्याओं पर जनता के प्रतिनिधियों की बात सुनने के लिए बनी है। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर विभिन्न विचारधाराओं और सोच के लोगों की अलग-अलग राय के जरिए आम सहमति तक पहुंचने की कोशिश की जाती है। संसद हंगामा करनेवालों के लिए नहीं बनी है। और जब ये हंगामा हर रोज हो तो फिर लगता है कि लोकतन्त्र कमजोर हो रहा है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र में संसद का काम ही ठप हो जाए तो फिर लोकतन्त्र का क्या मतलब? ऐसे हालात में लोकतंत्र के लिए जगह बहुत कम बचती है। (रजत शर्मा)
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