भारत में मुस्लिम महिलाओं के लिए 'तीन तलाक' की प्रथा किसी शाप से कम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित कर चुका है और केंद्र सरकार ने इस सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए कानून बनाया है। यह बिल लोकसभा में पास हो चुका है लेकिन राज्यसभा में लंबित है क्योंकि कांग्रेस जैसी मुख्य विपक्षी पार्टी इसके कई प्रावधानों का विरोध कर रही है।
जमीनी स्तर पर ट्रिपल तलाक निर्बाध रूप से जारी है। तलाकशुदा निदा, सबीना और निशा की कहानी सुनकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मुस्लिम महिलाएं किस कदर दर्द से गुजर रही हैं। मंगलवार को उत्तर प्रदेश के बरेली में मुस्लिम महिला राजिया की भूख-प्यास के चलते मौत हो गई। रजिया को उसके पति ने फोन पर तलाक दे दिया था लेकिन राजिया ने घर छोड़ने से मना कर दिया। वह घर से बाहर नहीं निकली। उसके पति ने खाना-पीना देना बंद कर दिया। एक महीने बाद भूख की वजह से उसकी मौत हो गई।
जब कभी हम इस तरह की घटनाओं को सुनते हैं तो दिल कांप जाता है। आखिर हम किस समाज में रह रहे हैं? हम जिस समाज में रह रहे हैं हमें उसके बारे में सोचना चाहिए। जब नरेंद्र मोदी की सरकार ने ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून बनाने की पहल की तब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि सरकार इसमें दखल नहीं दे। उस वक्त बोर्ड ने यह वादा किया था कि वो खुद समाज में व्याप्त इस तरह की बुराइयों को दूर करेगा। अब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को जवाब देना चाहिए कि उस वादे का क्या हुआ। (रजत शर्मा)
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