केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर बुधवार को राष्ट्रपति ने उस अध्यादेश पर मुहर लगा दी जो मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक को अपराध करार देता है। मौलाना और अन्य उलेमा भले ही इसे धार्मिक मामलों में सरकार का हस्तक्षेप बताएं, लेकिन ये भी सच है कि अगर तीन तलाक को इस्लाम की मजहबी परंपरा माना जाता तो फिर पाकिस्तान, बांग्लादेश और सउदी अरब जैसे मुस्लिम देशों में तीन तलाक को अपराध घोषित क्यों किया जाता?
जब इस्लामिक मुल्कों में तीन तलाक गैरकानूनी है तो फिर हिन्दुस्तान जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में तीन तलाक इस्लामिक कैसे हो सकता है? दूसरी बात, ये सही है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा लागू कठोर कानून की आड़ में अब तक मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक और हलाला का शिकार होती रही हैं। तीन तलाक के खिलाफ भारतीय संविधान में कोई कानून नहीं था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तीन तलाक के मामले में थाने में रिपोर्ट तो दर्ज हो जाती थी,लेकिन किन धाराओं में केस दर्ज होगा, कितनी सजा मिलेगी, इसका कोई प्रावधान नहीं था। इसलिए पुलिस केस दर्ज करके बैठ जाती थी और कोई कानूनी प्रावधान नहीं होने के कारण कार्रवाई नहीं कर पाती थी।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित करने के आदेश के बाद भी देशभर में तीन तलाक के चार सौ से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। यहां तक कि बुधवार को ओमान में बैठे एक भारतीय मुसलमान ने हैदराबाद में अपनी पत्नी को फोन पर तीन तलाक कह दिया। उसने पहले पत्नी को इलाज के लिए हैदराबाद भेजा। जैसे ही वो अपने माता-पिता के घर पहुंची तो फोन पर उसे तीन तलाक बोल दिया। यही वजह है कि इस तरह के कृत्यों को रोकने के लिए कड़े कानून का होना जरूरी है ताकि मुस्लिम महिलाओं पर जुल्म को रोका जा सके। (रजत शर्मा)
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