बुधवार को केंद्र सरकार ने 2018-19 के मार्केटिंग सीजन के लिए 14 खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया। यह कदम वर्ष 2014 के चुनावी वादे के मुताबिक उठाया गया। उस वक्त बीजेपी ने किसानों को उनकी कुल लागत का 50 फीसदी लाभ देने का वादा किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाद में इसे 'ऐतिहासिक वृद्धि' बताया। इस फैसले से सरकारी खजाने पर करीब 15 हजार करोड़ का बोझ बढ़ेगा, लेकिन सबसे बड़ा सवाल इसे लागू करने का है।
पिछले कई वर्षों से किसानों की यह शिकायत रही है कि सरकारी खरीद केन्द्रों पर फसलें पूरी नहीं खरीदी जाती और आढ़तिए किसानों को फसल ओने-पौने दामों में बेचने पर मजबूर कर देते हैं। इससे किसानों का नुकसान होता है। केन्द्र सरकार को राज्य सरकारों की मदद से फसलों की खरीद व्यवस्था को ठीक करना होगा।
दूसरी बात ये है कि सरकार ने किसानों के हित के लिए फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तो बढ़ा दिया लेकिन इसका असर अनाज और दालों की बाजार कीमत पर पड़ेगा। जब किसान महंगे में अनाज बेचेगा तो बाजार में भी इनके दाम बढ़ेंगे। इससे आम आदमी खासतौर से निम्न और मध्यमवर्ग के लोगों की जेब पर फर्क पड़ेगा। सरकार को अल्प अवधि के लिए होनेवाली महंगाई से जुड़ी इस समस्या का समाधान ढूंढ़ना होगा।
उधर, कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सत्तारूढ़ दल ने किसानों के वोट के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने का फैसला किया है। यह इल्जाम सही है क्योंकि बीजेपी एक राजनीतिक दल है और सत्ता के लिए सियासत कर रही है। अगर किसानों के वोट पाने के लिए वह कुछ कदम उठा रही है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। (रजत शर्मा)
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