Rajat Sharma Blog: देश किसी भी हालत में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून में ढील को मंज़ूर नहीं करेगा
सियासत को अलग करके देखा जाए तो यहां मुख्य मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा और हमारे सशस्त्र बलों के मनोबल का है। हम अपने सुरक्षाकर्मियों के जीवन और करियर को वोट के लिए खतरे में नहीं डाल सकते।
कांग्रेस ने मंगलवार को जारी अपने चुनाव घोषणापत्र में देशद्रोही कानून (आईपीसी की धारा 124ए) को हटाने और जम्मू-कश्मीर एवं कई उत्तर-पूर्वी राज्यों में प्रभावी सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) के कड़े प्रावधानों की समीक्षा करने का वादा किया है। अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने कहा है कि वह ‘एएफएसपीए, 1958 में संशोधन करेगी ताकि सुरक्षा बलों की शक्तियों और नागरिकों के मानवाधिकारों के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके और जबरन लापता किए जाने, यौन हिंसा और यातना जैसी चीजों को दूर किया जा सके।'
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस पर तुरंत हमला बोला और पार्टी के घोषणापत्र को ‘भारत को कमजोर करने वाला चार्टर’ करार दिया। जेटली ने कहा, ‘जहां तक जम्मू-कश्मीर और राष्ट्रीय सुरक्षा का संबंध है, ऐसा लगता है कि (घोषणापत्र के) कुछ बिंदुओं को कांग्रेस अध्यक्ष के 'टुकड़े-टुकड़े' दोस्तों द्वारा तैयार किया गया है। आतंकी वारदातों में शामिल होना अब अपराध नहीं होगा। जो पार्टी इस तरह की बात कहती है उसे एक भी वोट पाने का हक नहीं है।’
सियासत को अलग करके देखा जाए तो यहां मुख्य मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा और हमारे सशस्त्र बलों के मनोबल का है। हम अपने सुरक्षाकर्मियों के जीवन और करियर को वोट के लिए खतरे में नहीं डाल सकते। कांग्रेस पार्टी ने भले ही यह वादा किया है कि वह अफस्पा (एएफएसपीए) में कड़े प्रावधानों को खत्म कर देगी,लेकिन क्या राहुल गांधी ने कभी सोचा है कि कश्मीर और पूर्वोत्तर में विद्रोह से जूझ रहे हमारे सुरक्षा बलों का क्या होगा?
हमारे जवान और अधिकारी आतंकवादियों के खिलाफ अपनी जान हथेली पर रखकर देश के लिए, हमारी और आपकी हिफाजत के लिए लड़ते हैं। ऐसे में हमारा यह सर्वोपरि कर्तव्य है कि हम अपने जवानों, अधिकारियों और उनके परिजनों का ख्याल रखें। इन्हें कानूनी चक्करों से बचाने की जिम्मेदारी भी हम सबकी और सरकार की है। सेना के जवानों को यह चिन्ता नहीं रहनी चाहिए कि उन्हें राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़े ऑपरेशन करने के बाद अदालतों के चक्कर लगाने होंगे।
एक बार जब किसी जवान या अधिकारी को कानून के कटघरे में खड़ा किया जाता है तो फिर उसे सरकार का समर्थन नहीं मिल पाता। उसके परिवार को अपने बूते इस लड़ाई में अकेला छोड़ दिया जाता है। इन हालातों में उनका परिवार सड़क पर आ सकता है और कोई उनके साथ खड़ा नहीं होगा। ऐसे में हमारे जवान या अधिकारी दहशतगर्दों का मुकाबला कैसे करेंगे? कहां से हिम्मत बढ़ाएंगे?
मैंने सेना के कई रिटायर्ड जनरल्स से बात की और उन्होंने कांग्रेस के घोषणापत्र के प्रावधानों की कड़ी निंदा की। उन्होंने आरोप लगाया कि इस तरह के वादे करना देश की सुरक्षा के साथ समझौता है। इस तरह के प्रावधान हमारे सैन्य बलों का मनोबल गिरा सकते हैं और यह खुले तौर पर दहशतगर्दों को बढ़ावा देंगे।
देश किसी भी हाल में इसे स्वीकार नहीं करेगा। आतंकवादियों से लोहा लेते समय हम अपने जवानों और अधिकारियों के एक हाथ उनकी पीठ के पीछे नहीं बांध सकते। (रजत शर्मा)
देखें, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 2 अप्रैल 2019 का पूरा एपिसोड