सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को संविधान में प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उपयोग करते हुए राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़ सरकार को आदेश दिया है कि वह फिल्म पद्मावत के स्क्रीनिंग पर रोक हटाए। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने राज्य सरकारों को यह याद दिलाया कि उनका कर्तव्य है कि वे कानून-व्यवस्था की स्थिति सुनिश्चित करके संविधान प्रदत्त मूलभूत अधिकारों की रक्षा करें।
इस मामले में मुझे दो बातें कहनी हैं। पहली तो यह कि देश नियम-कानून से चलता है। फिल्म दिखाने लायक हैं या नहीं इसका फैसला करने के लिए सेंसर बोर्ड बना है। अगर सेंसर बोर्ड ने फिल्म को पास कर दिया फिर सरकारें उसे रोकें, करणी सेना जैसे संगठन जाति के नाम पर हंगामा करें, थिएटर मालिकों को धमकाएं और जनता को डराने की कोशिश करें, यह सही नहीं है।
दूसरी बात यह कि मैंने ठीक दो महीने पहले 17 नंबवर को फिल्म पद्मावत देखी थी। उस वक्त भी मैंने कहा था कि इस फिल्म में पद्मावती का जो चरित्र दिखाया गया है उसे देखकर राजपूतों को गर्व होगा। फिल्म में ऐसा कोई सीन नहीं है जिसमें पद्मावती को अलाउद्दीन खिलजी के निकट दिखाया गया हो। फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जो राजपूती शान के खिलाफ हो।
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के जजों ने भी कहा कि जब सेंसर बोर्ड ने फिल्म को पास करने से पहले इतिहासकारों और समाज के अन्य महत्वपूर्ण लोगों को दिखाया, उसके बाद फिल्म को सर्टिफिकेट दिया गया तो फिर विरोध का कोई अर्थ नहीं। मेरा मानना है कि अगर राज्य सरकारें वोट के चक्कर में उत्पात मचाने वालों के सामने झुकती दिखाईं देंगी तो इससे गलत मैसेज जाएगा और गलत ट्रैंड सेट होगा।
मैं एकबार फिर करणी सेना के लोगों से अपील करता हूं कि वे इस फिल्म को रिलीज होने दें, फिल्म को देखने के बाद उस पर अपनी राय दें। मुझे पूरा भरोसा है कि फिल्म को देखने के बाद राजपूत लोग भी शान के साथ थिएटर से निकलेंगे और जो लोग फिलहाल संजय लीला भंसाली को गाली दे रहे हैं वे लोग उन्हें गले लगाएंगे। (रजत शर्मा)
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