पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव के दौरान सोमवार को राज्य में हुई व्यापक हिंसा में विभिन्न राजनीतिक दलों के कम से कम 12 कार्यकर्ताओं की हत्या हुई। हिंसा की इन घटनाओं ने पूरे राज्य को हिलाकर रख दिया। इंडिया टीवी पर एक मतदान केंद्र के अंदर राज्य के मंत्री द्वारा एक राजनीतिक दल के एजेंट को थप्पड़ मारने वाला दृश्य भी दर्शकों को दिखाया गया। ठीक इसी तरह मतदान शुरू होने के कुछ घंटे पहले एक दंपति की जलाकर हत्या कर दी गई, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि वे राजनीतिक दल के कार्यकर्ता थे।
एक बात तो साफ है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने पंचायत चुनाव जीतने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए। इसकी शुरुआत अन्य राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करने से रोकने को लेकर हुई। बाद में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल देना पड़ा। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने खुलेआम मतदाताओं और प्रतिद्वंदी दलों के समर्थकों को धमकी दी और मतदान वाले दिन बूथ कैप्चरिंग, फायरिंग और खूनखराबे की घटनाएं हुईं।
हो सकता है तृणमूल कांग्रेस पंचायत चुनाव में जीत हासिल कर ले, लेकिन इस जीत का कोई मतलब नहीं रहेगा अगर जनादेश को जनता का नैतिक समर्थन हासिल नहीं है। यह जीत स्वयं की हारवाली जीत होगी क्योंकि लोकतंत्र और चुनाव की पूरी प्रक्रिया को तबाह कर दिया गया।
टीएमसी के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि इससे पहले भी चुनावी हिंसा में मौतें हुई हैं, यह बयान हिंसा की घटनाओं पर पानी डालने के लिए नाकाफी है। अगर एक सत्तारुढ़ दल के नेता सार्वजनिक तौर पर राजनीतिक हत्याओं को सही ठहराने की कोशिश करेंगे तो यह लोकतंत्र के लिए बेहद खराब दिन होगा। इसकी सभी को निंदा करनी चाहिेए। चुनावी हिंसा में एक व्यक्ति की भी मौत अस्वीकार्य है। (रजत शर्मा)
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