Rajat Sharma Blog: राफेल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हमें सम्मान करना चाहिए
हम सभी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए। हमारे संविधान के मुताबिक यह देश की सबसे बड़ी अदालत है। इस आदेश को पारित करनेवाली बेंच की अगुवाई खुद चीफ जस्टिस कर रहे थे।
फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन से हथियारों से लैस 36 राफेल विमानों के सौदे के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को नरेंद्र मोदी सरकार को क्लीन चिट दे दी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया, कीमत निर्धारण और भारतीय ऑफसेट पार्टनर के चयन में किसी तरह की अनियमितता नहीं हुई है। बेंच ने अपने फैसले में कहा, 'किसी व्यक्तिगत नजरिये के आधार पर अंधेरे में हाथ-पांव मारते हुए कोर्ट द्वारा जटिल और घुमावदार जांच नहीं की जा सकती।'
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस विमान की खरीद में 'ज्यादा कीमत' और एक खास औद्योगिक घराने की मदद के लिए 'पक्षपात' करने का गंभीर आरोप लगाया था। पिछले कई महीने से वे इन आरोपों को बार-बार लगाते रहे, और सरकार की तरफ से रक्षा मंत्री निर्मला सीतारामन, वित्त मंत्री अरुण जेटली और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद सार्वजनिक तौर पर जवाब देते रहे। इसके बाद भी राहुल गांधी अड़े रहे। चुनावी रैलियों और प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी उन्होंने ये आरोप लगाना जारी रखा, और 'चौकीदार चोर है' का नारा लगाया। राहुल गांधी ने जितने भी आरोप लगाए और सवाल उठाए उन सबको यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने अपनी जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा जिसे शुक्रवार को शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से राफेल विमानों की कीमत का ब्यौरा सीलबंद लिफाफे में मांगा। इसके साथ ही कोर्ट ने इस विमान की खरीद के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई उसकी जानकारी हासिल की, और भारतीय वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारियों से लड़ाकू विमानों की जरूरत एवं गुणवत्ता को लेकर कोर्ट में पूछताछ की। गहन पूछताछ और सभी दस्तावेजों को देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने आपको हर तरह से संतुष्ट किया और राफेल सौदे को लेकर अपने फैसले में कहा कि कीमत निर्धारण, खरीद प्रक्रिया और गुणवत्ता में किसी तरह की अनियमितता नहीं हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि ठोस सबूतों के अभाव में सिर्फ किसी व्यक्तिगत धारणा या अखबारों की क्लिपिंग के आधार पर अदालत इसकी जांच नहीं कर सकती।
हम सभी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए। हमारे संविधान के मुताबिक यह देश की सबसे बड़ी अदालत है। इस आदेश को पारित करनेवाली बेंच की अगुवाई खुद चीफ जस्टिस कर रहे थे। ये आश्चर्य की बात है कि इन सबके बाद भी शुक्रवार शाम को राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में फिर उन्हीं आरोपों को दोहराते हुए फैसले पर सवाल उठाया।
कोई भी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट से ऊपर नहीं हो सकता, कोई भी पार्टी सुप्रीम कोर्ट से बड़ी नहीं हो सकती। क्या राहुल गांधी चाहते हैं कि लोग सुप्रीम कोर्ट का फैसला न मानकर कांग्रेस अध्यक्ष की बात पर यकीन कर लें? ये समझना थोड़ा मुश्किल है। (रजत शर्मा)
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