दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर लंदन और टोक्यो के मुकाबले 100 गुना ज्यादा है जबकि पेरिस के मुकाबले 85 गुना ज्यादा है। अगर कोई यह तर्क दे कि हमारे यहां आबादी इतनी है कि कोई क्या कर सकता है, तो उसे यह बताइए कि भरपूर आबादी वाले बीजिंग में पिछले पांच साल में प्रदूषण के स्तर में 5 प्रतिशत सुधार हुआ है। इन्हीं पांच सालों में दिल्ली-एनसीआर का प्रदूषण 13 प्रतिशत बढ़ गया है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि दिल्ली का प्रदूषण कम हो तो कैसे? क्योंकि हमने सिर्फ दिखावा किया है कि दीवाली पर पटाखे मत चलाओ, थोड़े दिन ऑड इवन गाड़ियां चलाओ। लेकिन दिल्ली और उसके आसपास हरियाणा और पंजाब में किसानों को खेतों में पराली जलाने से किसी ने नहीं रोका। यहां प्रदूषण फैलाने वाली 20 हजार फैक्ट्रियों को किसी ने नहीं रोका और न ही इनके खिलाफ कड़े कदम उठाए गए। कन्स्ट्रक्शन साइट्स पर उड़ने वाली 40 हजार टन धूल पर किसी ने पानी नहीं डाला। राजधानी में दाखिल होनेवाले एक लाख ट्रक और 89 लाख गाड़ियों को किसी ने नहीं रोका।
पूरे मामले में देरी से कदम उठाते हुए बुधवार को उपराज्यपाल ने दिल्ली में ट्रकों के एंट्री पर रोक लगाई। वहीं जरूरी सामानों को लेकर दिल्ली में दाखिल होनेवाले ट्रकों पर कोई रोक नहीं है। दिल्ली में चल रही कंस्ट्रक्शन गतिवधियों पर भी एलजी ने रोक लगा दी है। लेकिन यह इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। ऐसा लगता है कि जब कोई बड़ा संकट खड़ा हो जाता तब सरकार आखिरी वक्त में फैसले लेती है। सरकार तभी जागती है जब लोगों को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। इस तरह से तो दिल्ली की हवा साफ नहीं होगी। हमें इस रवैये को बदलने की जरूरत है। (रजत शर्मा)
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