Rajat Sharma Blog: इमरान को इतिहास से जान लेना चाहिए कि अतीत में भारत ने कभी पाकिस्तान पर हमला नहीं किया
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पुलवामा हमले में अपने देश की किसी तरह की भूमिका से साफ तौर पर इनकार करते हुए आज भारत से कहा कि इस आत्मघाती हमले में उनके देश का हाथ होने का 'कार्रवाई योग्य सबूत' भारत उपलब्ध कराए।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पुलवामा हमले में अपने देश की किसी तरह की भूमिका से साफ तौर पर इनकार करते हुए आज भारत से कहा कि इस आत्मघाती हमले में उनके देश का हाथ होने का 'कार्रवाई योग्य सबूत' भारत उपलब्ध कराए। इसी वीडियो संदेश में इमरान खान ने चेतावनी दी कि यदि भारत हमला करता है तो उनका देश जवाबी कार्रवाई करेगा। उन्होंने कहा, यदि भारत हमला करता है तो पाकिस्तान जवाबी कार्रवाई के बारे में नहीं सोचेगा, वह जवाबी कार्रवाई करेगा।'
इमरान खान को यह जान लेना चाहिए कि सैन्य टकराव के बावजूद अतीत में भारत ने कभी पाकिस्तान के खिलाफ नहीं युद्ध छेड़ा, चाहे वह 1948 की जंग हो या 1965 या 1971 की जंग या फिर करगिल की लड़ाई। इन चारों मौकों पर पाकिस्तान ने ही सबसे पहले भारत पर हमला किया। इस बार पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर हमला कर पाकिस्तान ने एक बार फिर भारत को उकसा दिया है और प्रधानमंत्री मोदी के पास पलटवार के सिवा कोई और अन्य विकल्प नहीं है।
वह मोदी ही थे जिन्होंने दोनों देशों के बीच शांति की एक नई पहल करते हुए अपने शपथ-ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित किया था। हर अवसर पर उन्होंने पाकिस्तान के साथ दोस्ती के लिए हाथ आगे बढ़ाया। वे नवाज शरीफ के जन्मदिन में शामिल होने के लिए लाहौर गए और तुरंत बाद पठानकोट एयरबेस पर हमला हुआ। जब उन्होंने नवाज शरीफ से शांति वार्ता के लिए बातचीत की, तो उरी में हमला हो गया। स्पष्ट रूप से पाकिस्तान की व्यवस्था में कुछ ऐसे लोग हैं जो भारत के साथ शांति नहीं चाहते हैं और इमरान खान को ऐसे लोगों की पहचान करनी चाहिए, उन्हें अलग-थलग करना चाहिए।
हालात अब एक ऐसे मकाम पर हैं जहां प्रधानमंत्री मोदी ने साफ तौर पर कहा कि बातचीत का वक्त बीत चुका है और अब एक्शन का समय है। इसी को ध्यान में रखते हुए वे कह चुके हैं कि सेना को खुली छूट दे दी गई है कि वह इस तरह कि कोई योजना बनाए और उसे अंजाम दे।
पुलवामा हमले के बाद बस स्टॉप, मेट्रो के अंदर, गलियों-नुक्कड़ों पर और संभ्रांत तबकों के ड्रॉइंग रूम में भी यह सवाल पूछा जा रहा है: क्या भारत पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए कोई बड़ी कार्रवाई करेगा?
इसका जवाब देने के बजाय मैं इस सवाल को जरा कुछ इस तरह बदलना चाहूंगा: क्या मोदी के पास हमले के सिवा और कोई विकल्प है? इसका जवाब है-नहीं। शोकग्रस्त राष्ट्र के पास केवल एक विकल्प है: हमें पाकिस्तान को सबक सिखाना होगा। प्रधानमंत्री मोदी कोई कार्रवाई नहीं करके इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते। और अगर उन्होंने पाकिस्तान को जवाब नहीं दिया तो उनके सिवा कोई और यह नहीं कर सकता।
मोदी ने साफ तौर पर लोगों का मन पढ़ लिया है। उन्होंने बिहार में एक रैली में कहा कि जैसे आम लोगों का दिल जल रहा है ठीक उसी तरह उनका भी दिल जल रहा है। उन्होंने यह भी कहा, प्रत्येक भारतीय का खून 'खौल' रहा है। आज मोदी ने कहा, बातचीत का वक्त बीच चुका है और एक्शन अब समय की मांग है।
समस्या ये है कि पाकिस्तान पर पलटवार के लिए मोदी के पास अब ज्यादा समय नहीं बचा है। चुनाव सामने है। मोदी पुलवामा के ताजा दाग लेकर लोगों के बीच वोट मांगने नहीं जा सकते। एक चतुर राजनेता की तरह, मोदी पाकिस्तान को सही सबक सिखाने के बाद ही चुनाव में जाना चाहेंगे।
सामान्यत: कोई भी युद्ध दुश्मन को पहले से चेतावनी देकर या पहले से घोषणा करके नहीं लड़ा जाता है। लेकिन मौजूदा हालात में युद्ध का विकल्प अब गुप्त नहीं रह गया है। न केवल दुश्मन (पाकिस्तान) बल्कि पूरी दुनिया यह समझ रही है कि भारतीय सेना जल्द ही पाकिस्तान पर हमला करनेवाली है। और इसबार केवल पाकिस्तान अधिकृत इलाकों में स्थित आतंकी ठिकानों को ही निशाना नहीं बनाया जाएगा बल्कि खुद पाकिस्तान भी भारतीय सेना के रडार पर होगा।
दूसरी चुनौती जो मैं देखता हूं, वो है चीन। पाकिस्तान और चीन दोनों दावा करते हैं कि वे 'हमेशा एक दूसरे के मित्र' रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव का चीन विरोध करता रहा है। हमें यह निश्चित करना होगा कि चीन अपना अड़ियल रवैया छोड़े और आतंक के खिलाफ सामूहिक कार्रवाई के लिए भारत की मांग का समर्थन करे।
तीसरी चुनौती यह सच्चाई है कि पाकिस्तान एक न्यूक्लियर हथियार की क्षमता वाला देश है और हमारे पास दुश्मन का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने की क्षमता होनी चाहिए।
मौजूदा समय में भारतीय व्यवस्था में तीन तरह के विचार है; पहला, पाकिस्तान पर पलटवार किए बिना मोदी चुनाव में जाना नहीं चाहेंगे। दूसरा, एक सीमित कार्रवाई मौजूदा विकल्प हो सकती है, और तीसरा, एक मजबूत लॉबी यह मांग कर रही है कि भारत को पाक अधिकृत कश्मीर पर कब्जा करना चाहिए और संविधान की धारा 370 को खत्म कर देना चाहिए, क्योंकि भारतीय जनता का कश्मीर के प्रति प्रो-एक्टिव रुख रहा है और यह कई पीढ़ियों की दर्द की अनकही दास्तां को भी आम जनमानस के सामने लाएगा। (रजत शर्मा)