Rajat Sharma Blog: शहरों में प्रदूषण से फैल रही है डायबिटीज की बीमारी
अब तक हम ये जानते थे कि वंशानुगत कारणों से, खाने-पीने में गड़बड़ी और जीवन-शैली में लापरवाही बरतने से डायबिटीज का खतरा ज्यादा होता है, लेकिन इस अध्ययन ने इसमें एक नया आयाम जोड़ा है।
इन दिनों दिल्ली-एनसीआर के लोगों को भयावह वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ रहा है। सुबह देश की राजधानी पूरी तरह से धुंध के आगोश में समा जाती है। लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रायोलॉजी जर्नल में छपे एक नए अध्ययन में यह पता चला कि भारत में घर से बाहर का यह प्रदूषण लोगों में डायबिटीज बीमारी को जन्म दे रहा है और ज्यादातर बच्चे इसके शिकार हो रहे हैं।
अब तक हम ये जानते थे कि वंशानुगत कारणों से, खाने-पीने में गड़बड़ी और जीवन-शैली में लापरवाही बरतने से डायबिटीज का खतरा ज्यादा होता है, लेकिन इस अध्ययन ने इसमें एक नया आयाम जोड़ा है।
इस अध्ययन के मुताबिक टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों की तादाद पूरी दुनिया में वर्ष 2018 में 40.6 करोड़ है और यह 2030 में बढ़कर 51.1 करोड़ हो जाएगी। चीन और अमेरिका के साथ भारत में हाई ब्लड शुगर के आधे से अधिक मरीज होंगे, जहां जीवन को बचाने के लिए इंसुलिन आसानी से उपलब्ध कराने की जरूरत होगी। इस अध्ययन के मुताबिक 2030 तक चीन में 13 करोड़ और भारत में 9.8 करोड़ टाइप-2 डायबिटीज के मरीज होंगे।
अध्ययन में कहा गया है कि धूल, धुआं, तरल बूंदों और कालिख के वायुमंडलीय माइक्रोस्कोपिक टुकड़े फेफड़ों में प्रवेश कर रक्त प्रवाह पर आक्रमण कर सकते हैं, जिससे स्ट्रोक, गुर्दे का फेल होना, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं। जहां तक डायबिटीज का सवाल है वायु प्रदूषण से शरीर के अंगों में सूजन बढ़ जाता है। इससे इंसुलिन के बनने में गिरावट होने लगती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि वर्ष 2016 में वायु प्रदूषण की वजह से डायबिटीज के 32 लाख नए मामले सामने आए। इस अध्ययन के मुताबिक प्रदूषण की वजह से हुए डायबिटीज के चलते 82 लाख लोगों ने अपनी जान गंवा दी।
वाशिंगटन यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसीन, सेंट लूई, अमेरिका के वैज्ञानिकों ने साढ़े 8 साल तक ऐसे वार वेटेरन्स (सेवा निवृत पुराने सैनिकों) पर रिसर्च किया था। इन पूर्व सौनिकों के परिवारों में डायबिटीज का कोई मरीज नहीं था, लेकिन यह पाया गया कि हवा में 2.5पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) की मात्रा ज्यादातर लोगों में डायबिटीज की बड़ी वजह रही। अध्ययन में पता चला कि हानिकारक पार्टिकुलेट मैटर अग्नाशय (पैन्क्रियास) में पहुंचकर इंसुलिन के निर्माण में बाधा पहुंचाता है।
भारत के लिए यह खबर चिंता की बात है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों की लिस्ट तैयार की है और इस लिस्ट में भारत के 14 शहरों के नाम है। मैंने विभिन्न शहरों में फैले अपने रिपोर्टर्स से कहा कि वे डॉक्टर्स और विशेषज्ञों से बात करें और यह पता लगाने की कोशिश करें कि कैसे नियंत्रित जीवनशैली अपनाने वाले लोग भी प्रदूषण की वजह से डायबिटीज के शिकार हो रहे हैं।
हमारे संवाददाता निर्णय कपूर अहमदाबाद की प्रसिद्ध एंडोक्रॉइनोलॉजिस्ट डॉ रुचा मेहता से मिले। रुचा खुद अमेरिका में रह चुकी हैं, वहां प्रदूषण के असर पर रिसर्च कर चुकी हैं। डॉ रूचा ने बताया कि आमतौर पर लोग समझते हैं कि प्रदूषण का असर सिर्फ फेफड़ों और हृदय पर होता है। लेकिन ऐसा नहीं है। प्रदूषण के कारण शरीर में हार्मोन्स का स्राव बाधित हो जाता है। हार्मोन्स के असंतुलन के कारण कई बीमारियां होती हैं और इसमें डायबिटीज प्रमुख है। डॉक्टर रूचा ने कहा कि प्रदूषण के कारण डायबिटीज के मामले बढ़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि वो अहमदाबाद में महिलाओं के शरीर पर प्रदूषण के असर का अध्ययन कर चुकी हैं। इस अध्ययन के दौरान कई महिलाओं में प्रदूषण के कारण हॉर्मोनल परिवर्तन दिखे। उनमें से कुछ प्री डायबिटिक स्टेज में आ गई थीं और कुछ प्रॉपर डायबेटिक हो गई हैं। रुचा मेहता ने बताया कि सबसे खतरनाक बात ये है कि अब बच्चों में भी डायबिटीज के काफी मामले सामने आ रहे हैं।
हमारे संवावादाताओं ने मुंबई, चंडीगढ़, लखनऊ, कोलकाता और जयपुर में भी डायबिटीज के मरीजों और डॉक्टर्स से मुलाकात की और ठीक यही पैटर्न पाया। अधिकांश मामलों में प्रदूषण ही डायबिटीज की देन है। जो बच्चे डायबिटीज से पीड़ित हैं वे छोटी उम्र में रोजाना इंसुलिन की सुई ले रहे हैं।
दुनिया में इस वक्त दो बीमारियां बहुत तेजी से फैल रही हैं और दोनों घातक और जानलेवा हैं। भारत में हर पांचवां शख्स डायबिटीज से पीड़ित है। एक अनुमान के मुताबिक यह आंकड़ा करीब 25 करोड़ का है।
यदि हम इस समस्या पर बहुत गंभीरता से सोचते हैं तो इसके पीछे जनसंख्या एक बड़ी वजह नजर आती है। लेकिन यह केवल दिल्ली-एनसीआर तक ही सीमित नहीं है, अन्य बड़े शहर भी इसी तरह की समस्या से जूझ रहे हैं। उदाहरण के तौर पर देश की राजधानी में जो प्राकृतिक संसाधन और सरकारी संसाधन है वो पचास लाख तक की आबादी के लिए हैं, लेकिन दिल्ली की आबादी अब 2.5 करोड़ के आंकड़े को पार कर चुकी है। यानी जो संसाधन एक इंसान के लिए उपलब्ध है उसका इस्तेमाल पांच लोग कर रहे हैं।
गांवों में रोजगार के बेहतर अवसर और बेहतर जीवनशैली का विकल्प मौजूद नहीं रहने की वजह से शहरों पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है। लाखों ग्रामीण रोजगार, पेट की भूख मिटाने और मूलभूत नागरिक सुविधाओं की तलाश में गांवों को छोड़कर शहरों का रुख कर रहे हैं। अधिकांश ग्रामीण इलाकों में स्कूल, अस्पताल, रोजगार के अवसर की कमी है जिसके चलते लोगों का गांवों से शहरों की ओर पालयन हो रहा है। इसलिए एक ही उपाय है कि गांवों का विकास किया जाए, इससे बहुत सी समस्याएं खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगी। (रजत शर्मा)