A
Hindi News भारत राष्ट्रीय Rajat Sharma’s Blog: जनता को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए कब तक इंतजार करना होगा?

Rajat Sharma’s Blog: जनता को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए कब तक इंतजार करना होगा?

समस्तीपुर के हॉस्पिटल में डॉक्टर तो मौजूद हैं, लेकिन वहां हालात ऐसे हैं जैसे लगता है कि मरीजों की मौत का इंतजाम कर दिया गया है।

Rajat Sharma Blog, Rajat Sharma Blog on Health Facilities, Rajat Sharma Blog on Bihar Health- India TV Hindi Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

आज मैं सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित दो प्रमुख मुद्दों के बारे में बात करना चाहूंगा। पहला मुद्दा अस्पतालों में इस्तेमाल किए हुए दस्तानों, मास्क और सीरिंज की रिसाइक्लिंग से जुड़ा हुआ है, और दूसरा हमारी खस्ताहाल ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं से संबंधित है। इन मुद्दों पर एक ऐसे समय में ध्यान देने की जरूरत है जब भारत को महामारी की उस कथित तीसरी लहर का सामना करने के लिए तैयार होना है, जो हमें निगलने के लिए तैयार बैठी है।

महामारी की दूसरी लहर अब ढलान पर है। गुरुवार को कोरोना का नए मामले घटकर 1.86 लाख पर पहुंच गए और सक्रिय मामलों की संख्या गिरकर 23.4 लाख हो गई। गुरुवार को 2.59 लाख से ज्यादा कोविड मरीजों को पूरी तरह से ठीक होने के बाद छुट्टी दे दी गई। ऐसे में अब रिकवरी रेट बढ़कर 90.34 फीसदी पर पहुंच गया है, जो कि संतोषजनक है।

ऐसे समय में जब देश भर के शहरों में अधिकांश लोग राज्य सरकारों द्वारा लागू लॉकडाउन के चलते घरों के अंदर हैं और कोविड के दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन कर रहे हैं, कुछ ऐसे धोखेबाज हैं जो पब्लिक हेल्थ के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और मेडिकल कचरे को रिसाइकिल करके उन्हें मार्केट में दोबारा बेच रहे हैं। दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को 850 किलोग्राम ग्लव्स के बड़े स्टॉक के साथ 3 लोगों को गिरफ्तार किया। इन ग्लव्स को अस्पतालों में इस्तेमाल करने के बाद कूड़े में फेंक दिया जाता था, और आरोपी इन्हें वहां से इकट्ठा कर धोते-पोंछते थे और पश्चिमी दिल्ली की मार्केट में दोबारा बेच देते थे। ग्लव्स का यह स्टॉक डाबरी और बिंदापुर में 2 फ्लैटों से जब्त किया गया था। मुखबिर से मिली सूचना के आधार पर पुलिस ने इन फ्लैट्स पर छापेमारी की थी।

ग्लव्स, मास्क, सीरिंज और कोविड टेस्ट किट इस महामारी का मुकाबला करने के लिए सबसे बड़े हथियार हैं। दिल्ली पुलिस ने जिन रिसाइकिल किए हुए ग्लव्स को जब्त किया, हो सकता है उन्हें डॉक्टरों ने सर्जरी के दौरान इस्तेमाल किया हो। यह भी हो सकता है कि उन्हें कोरोना के मरीजों ने पहना हो या स्वास्थ्य कर्मचारियों ने कोरोना संक्रमित मरीजों की देखभाल के दौरान इस्तेमाल किया हो। इन ग्लव्स को मेडिकल कचरे के रूप में फेंक दिया गया था, लेकिन बेईमान लोगों ने इनको रिसाइकिल करके पैसे बनाने की सोची। साफ है कि वे जनता के स्वास्थ्य के साथ खतरनाक खेल खेल रहे हैं।

कुछ हफ़्ते पहले हमने 'आज की बात' में दिखाया था कि कैसे मुंबई के पास उल्हासनगर की एक झुग्गी बस्ती में महिलाएं और बच्चे हाथों से गंदगी के बीच कोविड टेस्टिंग किट में इस्तेमाल होने वाली कॉटन स्ट्रिंग्स को गंदगी के बीच बना रहे थे। वहां हाइजीन का जरा भी ख्याल नहीं रखा जा रहा था। स्थानीय प्रशासन ने छापेमारी की और पूरे स्टॉक को जब्त कर लिया। इसके अलावा प्रशासन ने इन किट्स को खरीदने वाले संभावित डायग्नोस्टिक सेंटर्स की भी जांच की।

पुलिस द्वारा गुरुवार को जब्त किए गए रिसाइकिल्ड ग्लव्स दिल्ली के अस्पतालों से निकले मेडिकल कचरे से इकट्ठा किए गए थे। रिसाइकिल किए हुए ऐसे ग्लव्स की संख्या लाखों में थी। जरा सोचिए कि रिसाइकिल किए हुए इन ग्लव्स को खरीदने और पहनने वाले लोगों की जान से यह कितना बड़ा खिलवाड़ है। इन ग्लव्स को व्यापारियों से खरीदकर सस्ते दामों पर बेचने वाले बेईमान दुकानदारों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जरूरत है। ऐसे लोगों को प्रशासन द्वारा गिरफ्तार कर उनके खिलाफ कड़े से कड़े कानून का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। ऐसे लोगों को वायरस बेचने की, इन्फेक्शन बेचने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

और अब दूसरे मुद्दे पर आते हैं: हमारी खस्ताहाल ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाएं। गुरुवार की रात 'आज की बात' में हमने एक अस्पताल की टपकती छत और उखड़ते प्लास्टर की कुछ तस्वीरें दिखाई थीं। मॉनसून की बारिश के दौरान डॉक्टर और नर्स छाता लगाकर अपनी कुर्सियों पर बैठते हैं, और मरीज भी पानी की बौछारों से से बचने के लिए छतरियों का इस्तेमाल करते हैं।

Image Source : India TVबिहार के समस्तीपुर में कर्पूरी ठाकुर रेफरल हॉस्पिटल जर्जर हालत में है।

बिहार के समस्तीपुर जिले के ताजपुर में स्थित इस अस्पताल का नाम जननायक कर्पूरी ठाकुर रेफरल हॉस्पिटल है। हमारी रिपोर्टर गोनिका अरोड़ा इस समय बिहार के दौरे पर हैं और उन्होंने हमें उस जर्जर इमारत के वीडियो भेजे जिसमें यह अस्पताल चल रहा है। जब जिले के दूसरे अस्पतालों में मरीज का इलाज न हो पा रहा हो, हालत खराब हो, तो उसे बेहतर इलाज के लिए जिस बड़े हॉस्पिटल में रेफर किया जाता है उसे रेफरल हॉस्पिटल कहते हैं। लेकिन इस हॉस्पिटल को खुद इलाज की जरूरत है। हमारी रिपोर्टर ने देखा कि ज्यादातर खंभे और छज्जे बस किसी तरह लोहे के सरियों की वजह से टिके हैं और किसी भी वक्त गिर सकते हैं। फिर भी यह राज्य के स्वास्थ्य विभाग के रिकॉर्ड में एक ऑपरेशनल अस्पताल है।

जब हमारी रिपोर्टर ने वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारियों से इस अस्पताल की हालत के बारे में बात की, तो उन्होंने 'मामले को देखने' का वादा किया। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ पदों को सुशोभित करने वाले इन अधिकारियों की जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि अस्पताल ठीक से काम कर रहे हैं। उनको तनख्वाह इस बात की मिलती है कि वे अस्पतालों का ध्यान रखें, लेकिन उन्होंने अजीब तरह का अड़ियल रवैया दिखाया।

यह ऐसा एकलौता मामला नहीं है। बिहार के दरभंगा, मधुबनी समेत अन्य जिलों में भी अस्पतालों का यही हाल है। स्वास्थ्य केंद्रों में, जहां इंसानों का इलाज होने की उम्मीद की जाती है, वहां खंभों से जानवर बंधे मिलते हैं। अस्पतालों में जहां डॉक्टर को बैठना चाहिए, वहां भैंस बैठी मिलती है।

समस्तीपुर के हॉस्पिटल में डॉक्टर मौजूद हैं, तो वहां हालात ऐसे हैं जैसे लगता है कि मरीजों की मौत का इंतजाम कर दिया गया है। बिल्डिंग की हालत खस्ता है और यह खंडहर से कम नहीं है। छत कभी भी गिर सकती है और जगह-जगह पानी बहता है। चारों तरफ गंदगी का अंबार है और मरीज डर-सहमे रनजर आते हैं। इस अस्पताल के डॉक्टर भी काफी लाचार और परेशान हैं।

सवाल ये है कि जहां गाय बंधी हों, भूसा भरा हो, छत से पानी टपक रहा हो, छज्जे हवा में लटक रहे हों, क्या ऐसी बिल्डिंग्स को हॉस्पिटल कहना ठीक होगा? क्या राज्य के स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत वरिष्ठ डॉक्टरों को अपने आप पर जरा भी शर्म नहीं आती? बिहर में पिछले 15 साल से नीतीश कुमार की सरकार है, इसलिए उनकी सरकार को जवाब तो देना होगा।

अपनी रिपोर्ट देते हुए हमारी रिपोर्टर गोनिका अरोड़ा ने एक बात कही थी कि उन्हें इस हॉस्पिटल की हालत देखकर शर्म आती है। शर्म तो उनको आनी चाहिए जिनके ऊपर स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है। शर्म उन्हें आनी चाहिए जो पिछले 15 साल से बिहार पर राज कर रहे हैं।

जरा सोचिए, बिहार के अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों की हालत ऐसी है और राज्य कोविड महामारी से निपट रहा है। ऐसे में लोगों की जान कैसे बचेगी? सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत के सभी नागरिकों को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं कब मिलेंगी? उन्हें कब तक इंतजार करना होगा? (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 27 मई, 2021 का पूरा एपिसोड

Latest India News