Rajat Sharma Blog: किस तरह बदल रही है पवित्र मोक्षदायिनी गंगा
हममें से करोडों ऐसे भारतीय हैं, जो गंगा नदी की पूजा करते हैं। लेकिन हमने गंगा की पूजा और पवित्रता का अर्थ ये लगा लिया कि सारा कचरा, सारा कूड़ा गंगा में डाल दो...सबकुछ पवित्र हो जाएगा।
भारत की पवित्रतम नदी मानी जाने वाली गंगा 11 राज्यों की 50 करोड़ से ज्यादा की आबादी को पानी देती है, लेकिन दुख की बात यह है कि गंगा दुनिया की छठी सबसे प्रदूषित नदी है। सौ साल से भी ज्यादा समय से यह नदी उद्योगों से निकलनेवाले गंदे ज़हरीले पानी और इंसानों द्वारा गिराए जाने वाले कचरे से दूषित होती रही है। करोडों भारतीयों के लिए गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है, यह जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी है। गंगा नदी हमारे देश के लोगों के लिए एक जीवनरेखा की तरह है। हिंदू शास्त्रों में सभी नदियों में गंगा को पवित्रतम मानते हुए उसकी स्तुति की गई है।
1985 से 1989 के बीच जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत की थी। इस योजना पर 863 करोड़ रुपये बहा दिए गए पर हुआ कुछ नहीं। गंगा मैली की मैली रह गई, बल्कि यों कहें तो ज्यादा मैली हो गई। 2009 में यूपीए सरकार ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करते हुए नेशनल रिवर गंगा बेसिन अथॉरिटी का गठन किया था और विश्व बैंक ने गंगा की सफाई के लिए 2011 में एक अरब डॉलर को मंजूरी दी थी।
2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली तो उन्होंने नमामि गंगे और अविरल गंगा परियोजनाओं की शुरूआत की। जब नितिन गडकरी ने जल संसाधन और गंगा पुनर्जीवन मंत्री का कार्यभार संभाला तो उन्होंने वादा किया था कि मार्च 2019 तक गंगा का अधिकांश प्रदूषित हिस्सा साफ हो जाएगा।
गंगा की सफाई का रियलिटी चेक करने के लिए इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स वाराणसी, प्रयागराज और कानपुर गए और वहां की स्थिति का आकलन किया जिसे मंगलवार को 'आज की बात' शो में दिखाया गया। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की बात करें तो पूरे शहर में बड़े बदलाव का काम चल रहा है। शहर में लटकते हुए बिजली के तारों को हटा दिया गया है और वाराणसी के स्नान घाटों पर सफाई है। शहर से निकलने वाले करोड़ों लीटर गंदे पानी को गंगा में गिरानेवाले 30 नालों को बंद करने या उन्हें डायवर्ट करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के महामना मालवीय गंगा नदी विकास एवं जल संसाधन प्रबंधन शोध केंद्र के अध्यक्ष प्रोफेसर बी.डी. त्रिपाठी ने बताया कि वाराणसी में गंगा की सेहत में अब पहले से सुधार हुआ है और अधिकांश नालों का डाइवर्जन कर दिया गया है जिससे नालों का पानी गंगा में गिरना बंद हुआ है। राजघाट के पास स्थित शाही नाले को बन्द कर दिया गया है। लेकिन मॉनसून में जब कई जगह नाले जाम हो जाते हैं तो शहर का सीवर ओवर फ्लो हो जाता है और ऐसी स्थिति में सीवर का पानी गंगा में गिरता है। प्रोफेसर बी.डी. त्रिपाठी ने बताया कि आने वाले दिनों में अस्सी नाले को भी बन्द कर दिया जाएगा। लेकिन प्रोफेसर त्रिपाठी का कहना है कि यदि इस समस्या को जड़ से खत्म करना है तो वाराणसी में गंगा के पानी में बहाव लाना जरूरी है। चुनौतियां कम नहीं हैं, अभी भी कम से कम शहर के तीन बड़े नालों का पानी गंगा में सीधे तौर पर गिरता है। इन नालों के गंदे पानी को साफ करने के लिए फिलहाल कोई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट मौजूद नहीं है। हमारे रिपोर्टर ने पाया कि अस्सी नाले पर स्थित सीवेज पम्पिंग स्टेशन काम नहीं कर रहा था।
प्रयागराज में संगम के पास हमारे रिपोर्टर ने पाया कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम कर रहा था। कुंभ मेले की तैयारियां इस वक्त जोरों पर हैं और गंगा को साफ करने का काम युद्धस्तर पर चल रहा है। प्रयागराज शहर में ऐसे 64 नाले थे जिनका गंदा पानी गंगा में गिरता था। लेकिन सात सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित कर गंगा में गिरनेवाली गंदगी को कम किया गया है। शहर के 32 नालों को अबतक बंद किया जा चुका है।
गंगा नदी में सबसे बड़ा बदलाव उसके सबसे प्रदूषित क्षेत्र कानपुर के पास देखने को मिला। यहां एशिया का सबसे बड़ा नाला कहे जानेवाले सीसामऊ नाले को बंद कर दिया गया है। इस नाले से 14 करोड़ लीटर गंदा पानी प्रतिदिन गंगा में गिरता था। पहले शहर के 16 नालों से गंदा पानी गंगा में गिरता था लेकिन अब इनमें से अधिकांश को या तो बंद कर दिया गया है या फिर इसे डायवर्ट किया गया है।
हममें से करोडों ऐसे भारतीय हैं, जो गंगा नदी की पूजा करते हैं। लेकिन हमने गंगा की पूजा और पवित्रता का अर्थ ये लगा लिया कि सारा कचरा, सारा कूड़ा गंगा में डाल दो...सबकुछ पवित्र हो जाएगा। यह अंधविश्वास सदियों से यहां प्रचलित है। नितिन गडकरी की इस बात के लिए तारीफ करनी चाहिए कि उन्होंने नमामी गंगे और अविरल गंगा परियोजना को काफी तेज गति से आगे बढ़ाया। इस परियोजना पर काम करते समय उन्होंने सरकार की सोच और काम करने के तरीके को बड़े पैमाने पर बदला।
अब जरूरत है गंगा को लेकर लोगों की सोच बदलने की। अगर हमलोग चाहते हैं हमारी नदियां जीवित और साफ रह सके, तो आइये हम सब मिलकर नदियों में कूड़ा या गंदगी नहीं फेंकने का संकल्प लें। हमारे सामने लंदन की टेम्स औऱ पेरिस की सीन नदी ऐसे उदाहरण हैं, जिन्हें साफ करने में लोगों ने बड़ी भूमिका अदा की। अहमदाबाद में नर्मदा के सुंदर किनारे भी इस बात का उदाहरण हैं कि सरकार चाह ले तो नदी को साफ किया जा सकता है और इन्हें प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है। बस जरूरत इस बात की है कि जब जनता इसमें भागीदार बने। आइये हम सभी नदियों को साफ करने के इस राष्ट्रीय मुहिम का हिस्सा बनें। (रजत शर्मा)
देखें, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 25 दिसंबर 2018 का पूरा एपिसोड