Rajat Sharma's Blog: दिल्ली के अस्पताल में लाशों के बीच दिखे मरीज, कौन है जवाबदेह?
क्या इन भयावह दृश्यों को देखने के बाद किसी की भी हिम्मत इस अस्पताल में जाने की होगी? मरीजों के उन रिश्तेदारों की हालत के बारे में सोचें जिन्होंने इन दृश्यों को देखा होगा।
बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने LNJP हॉस्पिटल, जो कि दिल्ली का सबसे बड़ा COVID समर्पित अस्पताल है, के विजुअल्स दिखाए थे। हमने दिखाया था कि कैसे कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज बेड पर लेटे हुए थे और नीचे या फिर उनके बगल के बेड्स पर लाशें पड़ी थीं। हमने COVID रोगियों के रिश्तेदारों के लिए बनाए गए विजिटिंग एरिया के भी दृश्य दिखाए जहां स्ट्रेचर पर 4 लाशें पड़ी हुई थीं। कुछ विजुअल्स कोरोना वायरस से संक्रमित उन मरीजों के भी थे जो सांस लेते हुए हांफ रहे थे। उनमें से एक शख्स का आधा शरीर बिस्तर पर था जबकि बाकी का हिस्सा नीचे झूल रहा था। एक और मरीज, जो सांस लेने के लिए जद्दोजहद कर रहा था, फर्श पर गिरा पड़ा था। वहां एक भी डॉक्टर, नर्स या अटेंडेंट मौजूद नहीं था।
मुझे दिल्ली के अस्पतालों में जिंदगी के लिए जूझ रहे COVID रोगियों से जुड़े वीडियो रोज मिलते रहते हैं। मैंने हमारे रिपोर्टर पवन नारा को इन वीडियो की सच्चाई जानने के लिए भेजने का फैसला किया। पवन ने जो बताया वह दिल दहला देने वाला था। ऊपर जिन दृश्यों का मैंने जिक्र किया है, वे किसी एक वॉर्ड के नहीं थे, बल्कि एलएनजेपी अस्पताल, जिसमें 2,000 से ज्यादा बेड होने का दावा किया गया था, के कम से कम 10 वॉर्डों का हाल यही था। इन दृश्यों को देखकर आपको अंदाजा हो गया होगा कि लोग क्यों सरकारी अस्पतालों में जाने से बचते हैं, और प्राइवेट अस्पतालों को प्राथमिकता देते हैं। आप समझ गए होंगे कि क्यों सरकारी अस्पतालों में बेड खाली पड़े हैं, जबकि प्राइवेट अस्पतालों में ज्यादातर बेड फुल हैं।
इन डरावने वीडियो (उनमें से एक में एक मरीज बगैर किसी कपड़े के बिस्तर पर पड़ा था) को देखकर तो ऐसा लगता है जैसे इन रोगियों को मरने के लिए अस्पताल लाया गया था। कोरोना वायरस से संक्रमित इन मरीजों को उनके रिश्तेदार इलाज के लिए लाए थे, और उन्हें लाशों के बीच तड़प-तड़पकर मरने के लिए छोड़ दिया गया।
इंडिया टीवी के कैमरे ने उन रास्तों को भी कैद किया जहां मरीज फर्श पर लेटे हुए थे, उल्टी कर रहे थे, लेकिन उनकी देखभाल के लिए कोई स्वास्थ्य कर्मचारी नहीं था। 15 मिनट के वीडियो में एक भी नर्स, डॉक्टर या वॉर्ड बॉय नजर नहीं आया। आप इसी से अस्पताल के मुर्दाघर के हालात के बारे में अंदाजा लगा सकते हैं। इन विजुअल्स को टेलिकास्ट करने से पहले हमें कुछ हिस्सों को एडिट करना पड़ा, क्योंकि हम उन्हें पब्लिक को नहीं दिखा सकते थे। इन्हें देखकर कोई भी आसानी से समझ सकता है कि क्यों दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के 2,500 बेड्स में से अधिकांश खाली पड़े हैं। ये वीडियो अस्पताल के अधिकारियों द्वारा की जा रही घोर लापरवाही का सबूत है।
इन विजुअल्स में कोई कोरोना वायरस से संक्रमित अधिकांश रोगियों को जीवन के लिए संघर्ष करते हुए देख सकता है। मरीजों के लिए न तो सैलाइन ड्रिप्स थीं, और न ही डॉक्टर किसी तरह की देखरेख कर रहे थे। लगभग बेहोशी की हालत में एक मरीज एक बिस्तर के नीचे पड़ा था, जिस पर एक महिला मरीज लेटी हुई थी। एक बुजुर्ग मरीज, जिनका शरीर जरा भी हरकत नहीं कर रहा था, पास के बिस्तर पर लेटे हुए थे। वह बुजुर्ग मरीज शायद अपनी आखिरी सांसें गिन रहे थे। ऐसा लगता है जैसे अस्पताल ने इलाज के नाम पर मरीजों को मरने के लिए छोड़ दिया है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को लोगों से कहा था कि यदि हेल्थ केयर में किसी तरह की कोई कमी दिखे तो बताएं। उन्होंने वादा किया था कि उनकी सरकार लोगों के सुझावों पर काम करेगी। अब समय आ गया है कि उनकी सरकार के लोग बैठकर इन वीडियो को देखें और इनका संज्ञान लें। दिल्ली सरकार को यह पता लगाना चाहिए कि एलएनजेपी अस्पताल के विजिटिंग एरिया में, जहां मरीजों के रिश्तेदार होते हैं, स्ट्रेचर पर लाशें क्यों रखी गई थीं। पिछले हफ्ते तक जब मैं मुंबई के KEM, सायन या कूपर अस्पतालों में लाशों के बीच लेटे हुए मरीजों के वीडियो देखता था, तब सोचता था कि दिल्ली के अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत बेहतर है। लेकिन ये दृश्य लोगों के दिमाग में डर बैठाने के लिए काफी हैं।
LNJP अस्पताल के COVID वॉर्ड गंभीर रूप से बीमार रोगियों के इलाज के लिए हैं, लेकिन वीडियो में साफ नजर आ रहा है कि प्रैक्टिकली उनका कोई इलाज नहीं किया जा रहा है। एक बार जब गंभीर रूप से बीमार मरीज इस अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं, तो उनके रिश्तेदारों को उनसे मिलने की इजाजत नहीं होती है। ऑक्सिजन लेवल गिरते जाने के साथ ही मरीजों को मरने के लिए छोड़ दिया जाता है और जैसे ही किसी मरीज की मौत होती है, वार्ड बॉय आता है और शव को स्ट्रेचर पर लादकर शवगृह में चला जाता है। चूंकि शवगृह पूरी तरह भर गए हैं, लाशें स्ट्रेचर पर खुले में ही पड़ी हैं।
दिल्ली सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, LNJP अस्पताल के कुल 2,000 बेड्स में 771 पर मरीज हैं और 1,200 से अधिक बेड खाली हैं। साफ है कि इस तरह की बातें फैल गई हैं कि यहां मरीजों की ठीक से देखभाल नहीं की जाती जिसके चलते लोग गंभीर रूप से बीमार मरीजों को इस अस्पताल में लाने से बचते हैं। यदि दिल्ली के सबसे बड़े COVID समर्पित अस्पताल के हालात ऐसे हैं, तो बेहतर है कि कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज घर पर ही रहें, जहां उनके परिवार के लोग कम से कम उनकी अच्छे से देखभाल तो करेंगे।
इंडिया टीवी की रिपोर्टर दीक्षा पांडे ने एलएनजेपी अस्पताल के बाहर इंतजार कर रहे रिश्तेदारों से बात की। वे अपने मरीजों के बारे में जानकारी लेने के लिए वहां आए हुए थे। एक युवती ने बताया कि उसके पिता ने फोन पर कहा था कि वह अपने वॉर्ड में लाशों के बीच पड़े हुए हैं और उनकी देखभाल के लिए वहां कोई नहीं है। युवती के पिता खुद को उस नरक से निकालने के लिए मिन्नतें कर रहे थे। 7 दिन बाद युवती को बताया गया कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। क्या इन भयावह दृश्यों को देखने के बाद किसी की भी हिम्मत इस अस्पताल में जाने की होगी? मरीजों के उन रिश्तेदारों की हालत के बारे में सोचें जिन्होंने इन दृश्यों को देखा होगा। मुझे अस्पताल के एक अधिकारी के शब्द याद आ रहे हैं जिन्होंने ये वीडियो देखने के बाद कहा था, ‘मैं अवाक हूं।’
यदि देश की राजधानी के सबसे बड़े COVID समर्पित अस्पताल की हालत यह है, तो बाकी के अस्पतालों के बारे में कल्पना ही की जा सकती है। मैंने ये सभी वीडियो दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को भेजे हैं। उन्होंने हमारे रिपोर्टर से कहा है कि वह कार्रवाई करेंगे और उन्होंने वीडियो भेजने के लिए हमें धन्यवाद दिया। सरकार को कार्रवाई जरूर करनी चाहिए, लेकिन मेरा सवाल थोड़ा अलग है। यदि दिल्ली सरकार के सबसे बड़े अस्पताल में ऐसे हालात थे, यदि वहां हद दर्जे का कुप्रबंधन और लापरवाही थी, तो ऐसा कैसे हो सकता है कि दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री को इसकी भनक तक नहीं लगी? क्या उन्हें उनके अधिकारी गुमराह कर रहे थे? इसके लिए किसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए?
दिल्ली सरकार को निश्चित रूप से कार्रवाई करनी चाहिए, लेकिन इस अस्पताल में हेल्थ केयर की स्थिति सुधारने के लिए तत्काल आवश्यक कदम भी उठाने चाहिए। कम से कम कोरोना वायरस से संक्रमित उन 751 रोगियों को तो बचा लें जो अभी भी इस अस्पताल में जिंदगी के लिए जूझ रहे हैं। कम से कम इन मरीजों के परिजनों को किसी तरह का आश्वासन और संबल तो दें। सरकार के नाकाम होने पर लोग अपने मरीजों को सरकारी अस्पतालों में भेजना बंद कर देंगे, क्योंकि हेल्थ केयर सिस्टम पर से उनका भरोसा तेजी से उठता जा रहा है। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 10 जून 2020 का पूरा एपिसोड