Rajat Sharma's Blog: हाथरस रेप केस में न्यायपालिका ही सच्चाई सामने लाएगी
मीडिया के खिलाफ कार्रवाई करने की धमकी के बारे में मैं कहना चाहता हूं कि डंके की चोट पर सच बोलने से न हम कभी डरे हैं, और न डरेंगे।
यह लोकतंत्र के नाम पर एक भद्दा मजाक है कि हाथरस प्रशासन ने पूरे जिले को सील कर दिया है और 4 युवकों द्वारा 19 वर्षीय दलित लड़की के टॉर्चर और जघन्य गैंगरेप के बाद हुए उसके जबरन अंतिम संस्कार के मद्देनजर बाहरी लोगों के गांव में घुसने और लोगों के जमावड़े पर रोक लगा दी है। हाथरस में मीडिया पर बैन लगा दिया है, और जिले की सीमाओं को सील कर दिया गया है। पुलिस ने पीड़िता के गांव को एक किले में तब्दील कर दिया है। इस बारे में पुलिस महानिरीक्षक पीयूष मोरड़िया ने कहा, 'कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह फैसला लिया गया है।'
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने गुरुवार को सम्मन जारी कर राज्य सरकार के शीर्ष अधिकारियों को अदालत में उपस्थित होने को कहा है। जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस जसप्रीत सिंह की बेंच ने उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेश, अपर पुलिस महानिदेशक और हाथरस जिले के डीएम एवं एसपी को सम्मन जारी कर सभी से 12 अक्टूबर को अदालत में पेश होने और मामले में स्पष्टीकरण देने को कहा है। इसके साथ ही पीड़िता के परिवार के सदस्यों को भी अदालत में पेश होने का निर्देश दिया गया है।
हाई कोर्ट ने कहा कि इन घटनाओं ने 'हमारी अंतरात्मा को झकझोर दिया है। हम यह जानना चाहते हैं कि क्या पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों के मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन हुआ था? क्या राज्य प्रशासन ने दमनकारी, मनमाने और गैकरकानूनी तरीके से उनके अधिकारों का उल्लंघन किया, और यदि ऐसा है, तो यह एक ऐसा मामला होगा जिसमें न केवल जवाबदेही तय की जाएगी, बल्कि भविष्य में मार्गदर्शन के लिए कड़ी कार्रवाई की जररूत होगी।' हाई कोर्ट ने अपने आदेश में मेरे न्यूज शो ‘आज की बात’ का हवाला दिया, जिसमें मैंने वीडियो और ऑडियो के जरिए दिखाया था कि कैसे पुलिस और जिला प्रशासन ने परिवार के सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार किया और पीड़िता का दाह संस्कार किया।
हाई कोर्ट ने कहा, ‘इस संदर्भ में हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एक प्रोग्राम का भी जिक्र कर सकते हैं, जो 'आज की बात' नाम के कार्यक्रम में इंडिया टीवी पर दिखाई गई है। इस प्रोग्राम में एंकर रजत शर्मा ने मृतक पीड़िता के जबरन अंतिम संस्कार के मुद्दे की तरफ ध्यान दिलाया है। इस प्रोग्राम में जो वीडियो पीड़िता का शव गांव में आने और उसके दाह संस्कार के समय रिकॉर्ड किए गए हैं वे इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि पीड़िता के परिजनों के शामिल हुए बिना ही जबरन उसका दाह संस्कार किया गया, और वह भी आधी रात के वक्त, परिवार द्वारा पालन की जाने वाली धार्मिक मान्यताओं के विपरीत। परिवार के सदस्यों को यह कहते हुए भी दिखाया गया है कि सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय के पहले दाह संस्कार नहीं किया जाता है और पीड़िता के शव को उनके घर ले जाया जाए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।’
हाई कोर्ट ने कहा, 'हमारे सामने जो मामला है, जिसके बारे में हमने संज्ञान लिया है, वह सार्वजनिक महत्व और सार्वजनिक हित का है क्योंकि इसमें राज्य के अधिकारियों द्वारा मनमानी का आरोप शामिल है, जिसके चलते न सिर्फ पीड़िता बल्कि उसके परिजनों के भी आधारभूत मानवीय और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।' अदालत ने आगे कहा, ‘जैसा कि सामने है, इस अपराध को अंजाम देने वाले अपराधियों ने मृत पीड़िता के बेहद क्रूरता का व्यवहार किया था और उसके बाद क्या जो होने का आरोप लगा है, यदि वह सच है, तो यह परिवार की तकलीफों को बढ़ाने और उसके घावों पर नमक रगड़ने जैसा है। हम यह जानना चाहते हैं कि क्या राज्य प्रशासन ने मृतक के परिवार के उत्पीड़न और उन्हें उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने के लिए उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति का फायदा उठाया।’
गुरुवार की रात ‘आज की बात’ में मैंने एक वीडियो दिखाया था जिसमें हाथरस के डीएम प्रवीन कुमार लक्षकार ने परिवार को यह कहते हुए अप्रत्यक्ष रूप से धमकाया था, ‘आप अपनी विश्वसनीयता खत्म मत कीजिए। मीडिया वाले आधे चले गए हैं, कल सुबह आधे निकल जाएंगे। हम आपके साथ खड़े हैं, अब आपकी इच्छा है कि आपको बयान बदलना है या नहीं। हम भी बदल सकते हैं।’ सेलफोन पर लिया गया यह वीडियो तुरंत वायरल हो गया। एक अन्य वीडियो में पीड़िता की भाभी घूंघट के अंदर से कहती सुनी गईं, 'वे हम पर दबाव डाल रहे हैं। वे कह रहे हैं कि अगर हमारी लड़की कोरोना वायरस से मर गई होती तो क्या उसे मुआवजा मिल पाता? वे कह रहे हैं कि मामला रफ़ा-दफ़ा होगा। हमें धमकियां मिल रही हैं, हमारे पापा को भी धमकाया जा रहा है।'
यह साफ है कि हाथरस के डीएम और एसपी की दिलचस्पी परिवार को न्याय दिलाने की बजाय मामले को दबाने में ज्यादा है। डीएम को परोक्ष धमकी देते हुए देखने के बाद क्या कोई गरीब परिवार ऐसे अधिकारियों से सत्य, न्याय और निष्पक्षता की उम्मीद कर सकता है? सिर्फ इतना ही नहीं, डीएम ने जिले में मीडिया की एंट्री पर बैन लगाने के आदेश जारी किए हैं। साफ है कि यूपी पुलिस मीडिया को धमकाकर सच्चाई को दबाने की कोशिश कर रही है।
एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार ने गुरुवार को कहा, 'फॉरेंसिक साइंस लैब की रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़िता के विसरा सैंपल में स्पर्म नहीं मिला। इस रिपोर्ट के मुताबिक, बलात्कार का कोई सबूत नहीं है। अधिकारियों द्वारा बयान दिए जाने के बावजूत मीडिया में कुछ गलत जानकारियां प्रसारित की गईं। सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने और जातीय हिंसा भड़काने के लिए कुछ लोग तथ्यों को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं। (पुलिस) विभाग को बदनाम करने की भी कोशिश की जा रही है और हम ऐसा करने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करेंगे।'
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कथित बलात्कार के 8 दिन बाद हुए मेडिकल एग्जामिनेशन की प्रक्रिया में खामियां थीं। यह स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है जिनके मुताबिक बलात्कार के मामलों में पीड़िता के प्राइवेट पार्ट्स की जांच जल्द से जल्द की जानी चाहिए।
मीडिया के खिलाफ कार्रवाई करने की धमकी के बारे में मैं कहना चाहता हूं कि डंके की चोट पर सच बोलने से न हम कभी डरे हैं, और न डरेंगे। जब बात बेटियों को न्याय दिलाने की हो, अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की हो, तो सबसे पहली आवाज मेरी होगी। पिछले तीन दिन से बार-बार उस बेटी की आवाज कान में गूंजती है कि खेत में काम कर रही थी, संदीप ने गला दबा दिया, मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की।
उस लड़की के पिता की बात लगातार कान में गूंजती है जो DM के सामने हाथ जोड़कर कह रहे हैं, 'साहब, सुबह तक रुक जाइए। बेटी की लाश को घर की चौखट तक ले चलिए। रात में अन्तिम संस्कार नहीं किया जाता। सुबह कर देंगे।' उस मां की आवाज कान में गूंजती है जो कह रही है, 'आखिरी बार विदा करने से पहले लड़की के हाथ में हल्दी लगानी है।' लेकिन डीएम कहता है कि अब और इंतजार नहीं होगा, अन्तिम संस्कार तो अभी होगा, रात में ही होगा।
सोचिए, बेटी की लाश सामने पड़ी हो, मां-बाप, भाई-बहन उसका चेहरा न देख पाएं। वे घर में कैद हों और बेटी की लाश को जला दिया जाए तो उन पर क्या बीती होगी। और जब वे अपना दर्द मीडिया से शेयर करते हैं, पुलिस के दावों की हकीकत बताते हैं, तो DM फिर गांव में पहुंचता है और परिवार वालों से कहता है कि 'मीडिया के चक्कर में मत पड़ो, ये आज हैं, कल जाएंगे, हम यही रहेंगे आपके साथ।' DM की बात सिर्फ 13-14 सेकेन्ड की है, लेकिन प्रशासन की मंशा का सबूत है। हाथरस की बेटी के परिवार के पिछले 17 दिन कैसे गुजरें होंगे, प्रशासन का रवैया कैसा रहा होगा, परिवार ने बेटी की मौत के गम के साथ और कैसी-कैसी तकलीफ झेली होगी, इसका अंदाजा DM की 14 सेकेन्ड की बात से हो जाता है।
एडीजी साहब की बातें सुनकर मुझे ऐसा लगा जैसे इन अफसरों को जनता की सेवा करने की नहीं, जनता को सताने की ट्रेनिंग दी गई है। इन अफसरों के बयान देखकर लगा जैसे इनका सच से कोई वास्ता नहीं हैं, इन्हें झूठ बोलने में महारात हासिल है। और जब झूठ से बात नहीं बनती तो ये कुर्सी का रौब दिखाते हैं वर्दी की धौंस दिखाते हैं, आम लोगों को डंडे की ताकत दिखाकर डराते हैं। और जो इनकी बात जनता तक पहुंचाता है, जो इनकी असलियत उजागर करता है, उन्हें ये लोग कानून का डर दिखाने की कोशिश करते हैं, अदालती कार्रवाई में घसीटने की धमकी देते हैं।
मैं तो कहूंगा कि पुलिस को अपनी ताकत इस केस को दबाने में नहीं, मीडिया को डराने में नहीं, हाथरस की बेटी को इंसाफ दिलाने में लगानी चाहिए। आज इस देश की हर बेटी पूछ रही है कि उसे कब तक डर कर जीना होगा। पुलिस को सच छिपाने की बजाए आगे आकर हमारी बेटियों को हिम्मत दिलाने की कोशिश करनी चाहिए। सच सामने लाने की कोशिश करनी चाहिए। अगर पुलिस का यही रवैया रहा, अगर पुलिस इसी तरह से झूठ बोलती रही, मामले को रफा-दफा करने में लगी रही तो किस लड़की की हिम्मत होगी कि पुलिस के सामने अपनी शिकायत दर्ज कराए? कौन से मां-बाप में हिम्मत होगी कि वे पुलिस से मदद मांगें? सबको लगेगा कि कुछ ना कहना बेहतर है।
जब निर्भया का केस हुआ था तब देश भर से आवाज आई थी। कानून बदला था तो लगा था कि अब देश की किसी बहन-बेटी के साथ जुल्म नहीं होगा। अपराध होगा तो जल्दी सजा मिलेगी, सख्त सजा मिलेगी। लेकिन निर्भया के केस में भी दरिंदों को फांसी के तख्ते तक पहुंचाने में 7 साल लग गए। योगी आदित्यनाथ ने वादा किया कि हाथरस केस में SIT 7 दिन में रिपोर्ट देगी लेकिन मैं उनसे कहना चाहता हूं कि बात तो तब बनेगी जब बलात्कार करने वालों को, हत्या करने वालों को फास्ट ट्रैक कोर्ट से जल्दी सजा मिलेगी, सख्त सजा मिलेगी। अगर यूपी की सरकार ये कर पाई तो अपराधियों के मन में खौफ पैदा होगा, और ये खौफ बहुत जरूरी है। जब तक अपराध करने वालों के दिलोदिमाग में डर नहीं होगा, सजा का खौफ नहीं होगा, अदालत का डर नहीं होगा, तब तक इस पर काबू पाना मुश्किल है।
अंत में मैं हाथरस मामले में तुरंत स्वत: संज्ञान लेने और यूपी के वरिष्ठ अधिकारियों को तथ्यों के साथ अदालत में तलब करने के लिए अपनी न्यायपालिका को सल्यूट करना चाहता हूं। आम आदमी न्यापालिका और हमारे जजों की इज्जत करता है। पूरी दुनिया में हमारी न्यायपालिका की धाक है। जिस मामले को पूरा प्रशासन, पुलिस दबाने में लगी है, उसे हाईकोर्ट के जजों ने सुन लिया। हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश के देखते हुए, जिसका जिक्र मैंने शुरुआत में किया था, ऐसा लग रहा है जैसे जजेज ने लड़की के दर्द को, उसके परिवार की पीड़ा को महसूस किया है, और पुलिस के रवैए को समझ लिया है।
अब मुझे पूरा यकीन हो गया है कि हाथरस की इस बेटी को न्याय मिलेगा, इंसाफ होगा और जल्दी होगा। अब पुलिस गरीबों की आवाज दबा नहीं पाएगी। दुख की बात ये है कि पुलिस ने अपनी नाकामी, अपनी लापरवाही को छिपाने के लिए लड़की की लाश को रात के अंधेरे में जबरदस्ती जला दिया। अब कोई सबूत नहीं है, अब सिर्फ चिता की राख बची है और नेता अब इस लड़की की चिता की राख पर सियासत कर रहे हैं। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 01 अक्टूबर, 2020 का पूरा एपिसोड