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Hindi News भारत राष्ट्रीय Rajat Sharma's Blog: कई दुखद कहानियों को जन्म दे रहा है प्रवासी मजदूरों का पलायन

Rajat Sharma's Blog: कई दुखद कहानियों को जन्म दे रहा है प्रवासी मजदूरों का पलायन

यह किसी एक प्रवासी के परिवार की कहानी नहीं है। हजारों प्रवासी अभी भी सड़कों पर हैं, सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गांव जा रहे हैं।

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के लिए 3 लाख करोड़ रुपये की लाइफलाइन और संगठित क्षेत्र में आयकर दाताओं एवं कर्मचारियों को राहत देने की घोषणा के साथ ही आत्मनिर्भर भारत की तरफ पहला कदम बढ़ा दिया गया है। लेकिन लाखों प्रवासी मजदूरों का पलायन अभी भी जारी है और यह राज्य सरकारों के लिए चिंता का विषय बन गया है। बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने झकझोर देने वाले विजुअल्स में दिखाया था कि कैसे प्रवासी मजदूरों के परिजन और उनके सामान को ढो रही बैलगाड़ी में बैल के साथ एक आदमी भी जुता हुआ है। इस वीडियो ने मुझे झकझोर कर रख दिया। मुझे याद है कि पुरानी फिल्मों में हम देखते थे कि कैसे निर्दयी जमींदार भूमिहीन किसानों को बैलगाड़ियां खींचने या खेत जोतने के लिए मजबूर करते थे।

जब मुझे यह वायरल वीडियो मिला, मैंने इंदौर के अपने रिपोर्टर बाबू शेख से इसकी सत्यता की जांच करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि वीडियो को एक स्थानीय रिपोर्टर प्रवीण बदनिया ने लिया था, जो बुधवार को इंदौर देव गुरदिया बाईपास पर एक राहत कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे थे। बदनिया, जो कि प्रवासियों को भोजन बांटने में व्यस्त थे, ने देखा कि एक बैलगाड़ी को एक आदमी और एक बैल मिलकर खींच रहे हैं। यह प्रवासी परिवार जिसमें 2 भाई, बड़े भाई की पत्नी और बच्चे इंदौर के पास स्थित महू से आ रहे थे और इन्हें लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित पत्थर मुंडला इलाके तक जाना था।

दोनों भाइयों के पास 2 बैल थे और वे महू में बैलगाड़ी से माल ढोने के काम में लगे हुए थे। जब लॉकडाउन लागू किया गया, तो उनका काम ठप्प पड़ गया। परिवार के भरण-पोषण के लिए उन्हें एक बैल को बेचना पड़ा। इसके बाद परिवार ने अपने गांव लौटने का फैसला किया। चूंकि परिवार के पास सिर्फ एक ही बैल बचा था, इसलिए दोनों भाइयों ने बारी-बारी से बैलगाड़ी खींचने का फैसला किया। बड़े भाई की पत्नी ने भी बैलगाड़ी को खींचने में अपना योगदान दिया। वायरल वीडियो की खबर जब एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक पहुंची, तो उन्होंने अधिकारियों को तुरंत कार्रवाई करने का आदेश दिया। इसके बाद परिवार के लोगों को खाना दिया गया और पुलिस ने उन्हें उनके गांव पहुंचाया।

यह किसी एक प्रवासी के परिवार की कहानी नहीं है। हजारों प्रवासी अभी भी सड़कों पर हैं, सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गांव जा रहे हैं। हम यह नहीं कह सकते कि केंद्र या राज्य सरकारें प्रवासी मजदूरों की तकलीफ को नहीं समझती हैं। प्रवासी मजदूरों से कहा जा रहा है कि वे अब आगे न बढ़ें और जहां हैं वहीं रुक जाएं, क्योंकि अब फैक्ट्रियां खुलने वाली हैं और काम धंधा शुरू होने वाला है। लेकिन चाहे जो भी हो, ऐसा लगता है कि सरकारों और इन दुर्भाग्यपूर्ण प्रवासियों के बीच संचार की कमी है।

रेलवे ने अब तक लगभग 642 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं और 8 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्यों में भेजा है। अकेले यूपी में ही 5 लाख से ज्यादा प्रवासी लौट आए हैं। गुजरात की बात करें तो 200 से ज्यादा स्पेशल ट्रेनों में सवार होकर मजदूर अपने घरों को पहुंचे। संगठित और असंगठित क्षेत्रों में लगे हुए प्रवासी मजदूरों की संख्या के बारे में कोई निश्चित या विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक देश में प्रवासी मजदूरों की संख्या 14 करोड़ है। इन प्रवासियों का एक बड़ा हिस्सा अभी भी कारखानों और निर्माण कार्यों के फिर से शुरू होने के लिए शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों में इंतजार कर रहा है।

एक मोटे अनुमान के मुताबिक, लगभग एक करोड़ प्रवासी मजदूर अपने गृह राज्यों में लौटना चाहते हैं। चूंकि सभी को एक साथ ले जाना मुश्किल है, इसलिए हजारों प्रवासी मजदूरों ने पैदल ही निकलने का फैसला किया है। कई सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं जिनमें कई प्रवासी मजदूरों की मौत हुई है। बुधवार को कानपुर देहात के पास प्रवासी मजदूरों का ट्रक सड़क पर खड़े दूसरे ट्रक से जा टकराया, जिसमें 3 की मौत हो गई और 51 अन्य घायल हो गए। इन मजदूरों ने पैसे जमा करके अहमदाबाद से एक ट्रक किराए पर लिया थे। इस ट्रक पर सवार होकर वे लगभग 1100 किलोमीटर दूर स्थित अपने गृह जनपद यूपी के बलरामपुर पहुंचना चाहते थे। जब यह हादसा हुआ तो वे अपनी मंजिल से सिर्फ 350 किलोमीटर दूर थे। ओवरस्पीडिंग के चलते हुए इस हादसे में एक महिला और एक बच्चा भी अपनी जान गंवा बैठे।

जिन शहरों से प्रवासी मजदूर जा चुके हैं, वहां अधिकांश मामलों में ठेकेदारों और एम्प्लॉयर्स को दोषी ठहराया जाना चाहिए। लॉकडाउन लागू होने के तुरंत बाद ठेकेदारों ने एम्प्लॉयर्स से मजदूरों की मजदूरी इकट्ठा की और चंपत हो गए। कई अन्य मामलों में एम्प्लॉयर्स ने केंद्र और राज्य सरकार की अपील के बावजूद मजदूरों को उनका पैसा नहीं दिया। अब जबकि फैक्ट्रियां और काम-धंधा फिर से शुरू हो रहा है और रेलवे ने भी घोषणा कर दी है कि वह 22 मई से ट्रेनों के सामान्य परिचालन को फिर से शुरू करेंगे, तो हम जल्द ही रिवर्स माइग्रेशन के संकेत देखेंगे। आज नहीं तो कल, इन प्रवासी मजदूरों को अपनी आजीविका के लिए शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों में लौटना होगा। कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई अभी भी जारी रहेगी, लेकिन लोगों को वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सोशल डिस्टैंसिंग के नियमों का पालन करना होगा। (रजत शर्मा)

देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 13 मई 2020 का पूरा एपिसोड

 

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