नशे के कारोबार के खिलाफ आवाज उठानेवाले शख्स रुपेश की दिनदहाड़े हत्या के बाद आमतौर पर शांत दिखनेवाला दक्षिण-पूर्वी दिल्ली का तैमूर नगर इलाका धधक उठा है। रूपेश को उस वक्त गोली मारी गई जब वह बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था। जिस वक्त रूपेश को गोली मारी गई उस वक्त दिल्ली पुलिस की पीसीआर वैन घटनास्थल से चंद कदमों की दूरी पर खड़ी थी। रुपेश के घरवाले और आस-पड़ोस के लोग भागकर पीसीआर के पास पहुंचे, लेकिन पुलिसकर्मियों ने मदद करने की बजाए 100 नंबर पर कॉल करने को कह दिया और पीसीआर वैन वहां से चली गई।
इससे नाराज लोगों का गुस्सा फूट पड़ा और सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर पड़े। भीड़ ने गाड़ियों में आग लगा दी और पथराव किया। स्थानीय लोगों का आरोप है कि इलाके में सक्रिय नशे के कारोबारियों के साथ कुछ पुलिसकर्मियों की सांठगांठ है। यहां तक की सोमवार को ड्रग्स बेचते हुए दो लोगों को स्थानीय लोगों ने रंगे हाथों पकड़ा और उसे पुलिस के हवाले कर दिया। इन दोनों के पास से ड्रग्स की पुड़िया भी बरामद हुई लेकिन लोगों ने बताया कि कुछ दूर ले जाकर पुलिस ने उन दोनों को छोड़ भी दिया। दुखद बात यह है कि दिल्ली पुलिस की जमीन पर जबरन बनाई गई अवैध झुग्गियां ड्रग्स कारोबारियों का अड्डा बन चुकी हैं और पुलिस अबतक इसे नजरअंदाज करती रही है।
जिस बात की तरफ मैं ध्यान दिलाना चाहता हूं वह यह है कि तैमूर नगर का इलाका सत्ता के केंद्र से ज्यादा दूर नहीं है। यह एम्स से मुश्किल से तीन कि.मी. और निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। कोई यह दावा नहीं कर सकता कि पुलिस को इस संदिग्ध कारोबार की जानकारी नहीं है। स्थानीय लोगों ने पुलिस में नशे के कारोबारियों को लेकर कई बार शिकायतें दर्ज कराई लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह नाकाबिले बर्दाश्त है।
दिल्ली पुलिस के कमिश्नर को इस मामले में काफी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और उन पुलिसवालों की पहचान करवानी चाहिए जो नशे के कारोबारियों के साथ मिले हुए हैं। ऐसे पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। (रजत शर्मा)
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